मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
गुरुवार, 18 जुलाई 2013
पतितपावन और सिँहद्वार की कथा
अतीत में भगवान जगन्नाथ के मंदिर के उपर कई बार मुस्लिम शासकों ने हमलेँ किये ।1800 सदी के दौरान राजा रामचंद्र देव उड़ीसा के शासक थे. लेकिन हर समय उड़ीसा शक्तिशाली सूबेदार तकी खान द्वारा हमले के आतंक का सामना कर रहा था.एक वार तो उसने रथ पर ही आग लगा दि थी । प्रकृति से तकी खान एक हिंदू विरोधी स्वभाव का व्यक्ति था. वो भगवान जगन्नाथ के मंदिर को ध्वस्त करने के इरादे के साथ हमेशा कोशिश करता रहा. उस समय उड़ीसा के कुछ भाग मुसलमानों के शासन में भी था. राजा रामचंद्र देव भगवान जगन्नाथ के मंदिर की सुरक्षा के लिए चिंतित थे ।अंत में संधि हुआ । जिसके आनुसार रामचंद्रदेव को इस्लाम स्वीकार करना और तकी खान की बहन से शादीकरनी पडी । भगवान जगन्नाथ के मंदिर तो सुरक्षित हो गया लेकिन राजा रामचंद्र देव नेँ मंदिर और जगन्नाथ के उपर मिले विषेशाधिकार को हमेशा के लिये खो दिया । अब वो मंदिर मेँ प्रवेश नहीँ कर सकते थे । वो भगवान को पास से देख सके इसके लिये सिँह द्वार (शेर के दरवाजे) का निर्माण किया गया । तब से कोई भी दुसरे धर्म के व्यक्ति जो मन्दिर मेँ प्रवेश नहीँ कर सकता वो यहाँ से भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकता है । (जय जगन्नाथ)@sisirpagla.blogspot.com
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