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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2017

सुवर्णरेखा नदी उत्पति जनसृति

अयोध्या के सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के एक पुत्र निमि ने विदेह/मिथिला जनपद मे अपना राज्य स्थापित किया,इसकी राजधानी तब जयन्तनगर हुआ करता था ।
निमि कि उपाधी विदेह थी इसलिए इस क्षेत्र का नाम कालान्तर मे विदेह रखागया ।
परवर्त्तीकाल मे इसी वंश मे मिथि नामक शक्तिशाली राजपुरुष का आविर्भाव हुआ । वह इतने दयालु प्रजापालक राजा थे कि जनता  उन्हे जनक,बापु पिता मानने लगी....
इससे विदेह नरेश को नुतन उपनाम प्राप्त हुआ #जनक तथा यह क्षेत्र मिथिला भी कहलाया.....
आनेवाले कई पीढीओं ने इसी जनक उपनाम को ही स्वयं का उपाधी बनाए रखा.....
विदेह के जनकों मे कुछ बडे प्रतापी
और यशस्वी हुए ।
त्रेतया युग मे श्रीराम के समय विदेह में #सीरध्वज जनक का राज था...
माता श्रीलक्ष्मी ने इन्ही के यहाँ देवी सीताजी के रुप मे जन्म लिया था...

सीताजी के जन्म को लेकर कथा है कि उन्हे भूमि मे हल जोतकर
जनक सीरध्वज ने एक पेटी मे पाया था । हल को मैथिली मे सीत कहते है इसलिए उनका नाम सीता रखागया.....
इसी कथा के साथ
झाडखंड के
पिसाक नगरी से जन्मीं सूवर्णरेखा नदी कि उत्पति प्रसंग जुडा जाता है...

जनसृति है कि एकबार जब विदेह मगध कोशल अंग आदि भूभागों मे भयानक अकाल पडा....
तब
राजर्षी जनक को उनके कुलगुरु ने एक परिष्कृत भूमि पर हल जोतने को कहा....
वह पिसाक नगरी मे आये उन्होने यहाँ हल चलाया जिससे एक तरफ सीताजी आविर्भूत हुई वहीं दुसरी ओर जल कि एक धार निकला जिससे समुचे क्षेत्र मे अकाल से लोगों को राहत मिला....
सूवर्णरेखा नदी का जन्म च्युंकि श्रीलक्ष्मी के साथ हुआ था इसलिए इसके वालु कणों मे आज भी सोना मिलता है.....
सूवर्णरेखा का एक नाम हिरण्यरेखा भी है...
हिरण्यभूम क्षेत्र मे प्रवाहित होने के कारण ऐसा नामकरण हुआ माना जाता है.....

महानदी तो मरने ही वाली है लेकिन सुवर्णरेखा को इंसानों ने धीरे धीरे मरने के लिए "स्लो पॉएजन" दे दिया है...

मानव एक समय नदीओं को माता कहकर उनकी पूजा किया करते थे
आज वही उनके मौत के मुख्य सुत्रधार बने है.....