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शनिवार, 15 अगस्त 2015

अमरुद और मेरी उलझन.....

तिन दिन पूर्व मैने दो अमरुद के पैड़ लगाएँ
फिर अचानक मनमे क्या ख्याल आया.,. अमरुद के बारे मेँ गुगल पर रिसर्च करने बैठगया ।

17वीँ सदी मेँ मार्टेल प्रजाति कि
ये मिठा स्वादिष्ठ फल युरोपियन व्यापारीओँ के साथ भारत आया !

विदेशी आये और चले भी गये परंतु ये (Guava) वृक्ष करीब करीब 300 वर्षोँ से समुचे भारत के जमीनोँ पर कब्जा कर बैठा है ।

पतानहीँ क्युँ पर इस वृक्ष के खिलाफ आजतक #कट्टर
#स्वदेशी
#समर्थक #आन्दोलनकारीओ ने कोई विरोध नहीँ कि न इसपर संसदमे #कंग्रेसी ओ ने कभी हल्ला गुल्ला मचाया है ।

अब मैँ समझचुका था कि
मैने अमरुद का पौधा लगाकर बहत बड़ी गलती कर दी है......

ये बिलकुल ऐसा ही है
कि जैसे आप फेसबुक पर
#राजीव_दिक्षित जी के कट्टर समर्थक हो और बिना जानकारी आपने एक विदेशी द्रव्य को स्वदेशी समझकर इस्तेमाल कर लिया !!!

मेरे दिल को इस नयी जानकारी से गहरा धक्का तो लगा ही था और बचाकुचा जो अमरुद के लिये थोड़ी बहत ललक् बची हुई थी
उसे हमारे प्यारे चाचाजी के बातोँ ने पूर्णतः निर्मूलन् करदिया !!!

उन्होने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक अवैज्ञानिक(?) बात कहीँ
कि
"जिस तरह विदेशी संस्कृति
भारतीय समाज के लिये ज़हर साबित हुई है
उसी प्रकार ये विदेशी वृक्षोँ के द्वारा अत्सर्जरित Oxygen मे तथा उनके फलोँ मे मौजुद जहरीले तत्व (पोषक तत्व ) हमेँ पीढ़ी दर पिढ़ी कमजोर बना रहे है ।
'असल बात तो दरसल ये हे कि अंग्रेजोँ को इस वृक्ष कि बुराईओँ के बारे मे पता था परंतु ये चालक व्यापारी लोग जानवुझकर इसे भारतीयोँ को कमजोर बनाने के लिये छोड़गये है ताकि बाद मेँ फिर आ कर हम पर राज करसके ।"

फिर चाचाजी ने इस वृक्ष से जुड़ी एक सामाजिक मुद्दे कि और मुझे ध्यान दिलाते हुए
बताया
"देखो मनुआ
ए जो तुम आज इत्ते अमरुद के पौधे पोत रहे हो का सोचे हो कल को इस से अछा दिन आ जावेगा :]] अरे बचुआ तनिक समझदार बनो '
कलको तोहरे बच्चे होवेगेँ
हमरी तो तिन लौँडे हे ही....
कल को इन अमरुद के वृक्षोँ को लेकर के वो आपसमेँ महाभारत कर गये तो
का करपाओगे ? बचाने जाओगे तो उलटे तुमपर पड़ने का डर है मुझे ...."
ना...ये मेरे बच्चे ही कौरव है मे जानता हुँ
इसलिये कहरहा था
जो भी करो सोच समझकर करो"





तिन दिन पूर्व मैने दो अमरुद के पैड़ लगाएँ फिर अचानक मनमे क्या ख्याल आया.,. अमरुद के बारे मेँ गुगल पर रिसर्च करने बैठगया । 17वीँ सदी मेँ मार्टेल प्रजाति कि ये मिठा स्वादिष्ठ फल युरोपियन व्यापारीओँ के साथ भारत आया ! विदेशी आये और चले भी गये परंतु ये (Guava) वृक्ष करीब करीब 300 वर्षोँ से समुचे भारत के जमीनोँ पर कब्जा कर बैठा है । पतानहीँ क्युँ पर इस वृक्ष के खिलाफ आजतक #कट्टर #स्वदेशी #समर्थक #आन्दोलनकारीओ ने कोई विरोध नहीँ कि न इसपर संसदमे #कंग्रेसी ओ ने कभी हल्ला गुल्ला मचाया है । अब मैँ समझचुका था कि मैने अमरुद का पौधा लगाकर बहत बड़ी गलती कर दी है...... ये बिलकुल ऐसा ही है कि जैसे आप फेसबुक पर #राजीव_दिक्षित जी के कट्टर समर्थक हो और बिना जानकारी आपने एक विदेशी द्रव्य को स्वदेशी समझकर इस्तेमाल कर लिया !!! मेरे दिल को इस नयी जानकारी से गहरा धक्का तो लगा ही था और बचाकुचा जो अमरुद के लिये थोड़ी बहत ललक् बची हुई थी उसे हमारे प्यारे चाचाजी के बातोँ ने पूर्णतः निर्मूलन् करदिया !!! उन्होने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ एक अवैज्ञानिक(?) बात कहीँ कि "जिस तरह विदेशी संस्कृति भारतीय समाज के लिये ज़हर साबित हुई है उसी प्रकार ये विदेशी वृक्षोँ के द्वारा अत्सर्जरित Oxygen मे तथा उनके फलोँ मे मौजुद जहरीले तत्व (पोषक तत्व ) हमेँ पीढ़ी दर पिढ़ी कमजोर बना रहे है । 'असल बात तो दरसल ये हे कि अंग्रेजोँ को इस वृक्ष कि बुराईओँ के बारे मे पता था परंतु ये चालक व्यापारी लोग जानवुझकर इसे भारतीयोँ को कमजोर बनाने के लिये छोड़गये है ताकि बाद मेँ फिर आ कर हम पर राज करसके ।" फिर चाचाजी ने इस वृक्ष से जुड़ी एक सामाजिक मुद्दे कि और मुझे ध्यान दिलाते हुए बताया "देखो मनुआ ए जो तुम आज इत्ते अमरुद के पौधे पोत रहे हो का सोचे हो कल को इस से अछा दिन आ जावेगा :]] अरे बचुआ तनिक समझदार बनो ' कलको तोहरे बच्चे होवेगेँ हमरी तो तिन लौँडे हे ही.... कल को इन अमरुद के वृक्षोँ को लेकर के वो आपसमेँ महाभारत कर गये तो का करपाओगे ? बचाने जाओगे तो उलटे तुमपर पड़ने का डर है मुझे ...." ना...ये मेरे बच्चे ही कौरव है मे जानता हुँ इसलिये कहरहा था जो भी करो सोच समझकर करो"