ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 27 फ़रवरी 2017

बंगाली साहित्यकार बुद्धीजीवीओं ओडिआ भाषा को मार देने का षडयन्त्र रचा था..........

1866 अकाल तथा अंग्रेजी आक्रोश को झेल रहे ओडिआ लोगों के खिलाफ उनके अपने ही पडोशी भाईओं ने षडयन्त्र रचे थे....

Odia भाषा का कत्ल करदेना ...
यही उनका असली मसद था....

कान्तिलाल भटाचार्य ने इसकी नींव
यह कहते हुए रख दिया....

"ओडिआ ऐक् स्वतंत्रो भाषा नोय्,
इटा बांग्लादेर एकटा उपभाषा"

इसी विषय पर एक किताब भी छपा
Archive .com मे एक किताब इसी नामसे बंगाली मे उपलब्ध है....

राजेन्द्र लाल मित्र ....
पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने ओडिशा के प्रत्नतत्व पर गहन शोध किया और इसपर अपना किताब भी लिखडाला....

उन्होने
एकबार कहा था....

"जबतक ओडिआ भाषा विलुप्त नहीं हो जाती ओडिआओं का विकाश असम्भव है"

उमाचरण हलदार बाबु को बंगाल ओडिशा एकत्रीकरण मे खास रुची थी
वह चाहते थे इस एकता हेतु उत्कलीय-ओडिआ लिपि कि बली चढादिया जाय.....

उनका बयान था
ओडिआ को बंगाली लिपि मे लिखा जाय.....
ज्ञात रहे बंगालीओं का बर्तमान लिपि কখগঘঙচছ मात्र 200 साल पुराना है....
इन लोगों ने उत्कलीय-ओडिआ लिपि से काफी हदतक मिलता जुलता अपना प्राचीन लिपि त्याग दिया था....
अब वो चाहते थे हम भी वैसा करें.....

राजाकृष्ण मुखोपाध्याय....महाराज ने तो यहाँ तक कहदिया था कि
समुचे बंगाल मे बंगाली को ही केवल मात्र शिक्षा क्षेत्र मे अग्राधिकार मिले
और बाकी ओडिआ विहारी भाषाएं जाएं तेल लेने.......

20 फरवरी 2014 मे ଓଡିଆ ओडिआ भाषा को शास्त्रीय मान्यता साबित करता है....
यह
सच्चाई....
1.*बंगाली खुद कई उपभाषाओं को इकट्ठा करके बनाया गया एक भाषा है
ओडिआ इसके उपरी भाषाओं मे से एक है.....
2.*ओडिआ आर्य भाषाओं मे संस्कृत के बाद सबसे अधिक शास्त्रीय तथा 6 भारतीय मौलिक भाषाओं मे से एक है...

3.*इस भाषा को राष्ट्रिय स्तर के शिक्षण संस्थानो़ मे भी पढाया जाय....
इसको सभी सरकारी कार्यालयों मे लागु किया जाय......

(डॉ. देवाशीश जेठी जी के वाल से.....)