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रविवार, 30 अक्तूबर 2016

युरोप मे भारतीय ग्रन्थ

युरोप मेँ मध्यकालीन भारतीय साहित्य का प्रचार प्रसार 17वीँ सदी मेँ
हुआ माना जाता है ।
उन्ही दिनोँ एक भारतीय विद्वान के मदद से
आव्रहाम लाजर ने भर्तुहरी के काव्य को पूर्तगाल मेँ अनुवाद किया था ।

ख्री. 1699 मेँ जेरुट फादर
जोहान अगष्ट भारत आए
और
संस्कृत व्याकरण का रोमन भाषा मे अनुवाद किया
लेकिन भाद मे
उन्होने
संस्कृत पर 2 शोध ग्रंथ भी लिख डाला । वहीँ
चार्लस् विलिकिन्स ने भगवत गीता तथा अभिज्ञान शकुंतळम् का
अंग्रेजी अनुवाद किया था ।
इतना ही नहीँ
विलिकिन्स ने संस्कृत भाषा को
कई युरोपियन को सिखाया भी !

विलिकिन्स के अनुवाद आधार पर
विलियम जोनस ने अभिज्ञान शंकुतंळम् को अंग्रेजी मेँ नाट्यरुप दिया
1789 मे  !

जर्मन् मेँ जर्ज पाष्टर ने 1791 मेँ शकुंतला नाटक का अनुवाद कराया ।

कालिदास अब मरणोपरनान्त युरोप मे लोकप्रिय हो गये थे ।

1792 मेँ जोनस ने ही ऋतुसंहार का अनुवाद किया

उसके बाद अमरकोष निरुक्त निघण्टु
तथा अन्य वैदिक शास्त्र समेत अष्टाधायी
का भी जर्मन अंग्रेजी मे अनुवाद कराया गया ।

19वीँ सदी मेँ 10 उपनिषद लाटिन अंग्रेजी मे अनुवादित हो लोकप्रिय हुआ ।

माक्समुलर ने 1849 से 1875 के समयकाल मे ऋकवेद का अनुवाद किया था
वहीँ
ओडिशियो प्रिन सेपस नामसे एक विद्वाध ने वैदिक संकलन पुस्तक भी लिखा था ।

फिर
पाश्चात्य विद्वानोँ का ध्यान वेद पर केन्द्रित हो गया ।

Winternitz ,keith ,macdonell
जैसे पाश्चात्य विद्वानोँ ने भारत पर कई उपादेय ग्रंथ लिखे ।

1852 मे History of indian literature प्रकाशित हुआ ।
इसी क्रम मे
1858 को
माक्समुलर ने अपना सबसे
उपादेय ग्रंथ
History of ancient sanskrit literature लिखा था ।

फिर भी पाश्चात्य जनसमाज मे
भारतीय प्रजा
वर्षोँ सपेरे कहलाए
च्युँकि
वहाँ 19वीँ सदी तक भोगवाद का ही असर छाया रहा आज भी है

लोहार्गल


राजस्थान के झुंझुनु जिल्ला मे
लोहार्गल नामक एक जगह है ।

कहते है
पाण्डव वंधु महाभारत युद्ध के बाद स्वजन हत्या दोष से मुक्ति हेतु श्रीकृष्ण के शरणापन्न हुए

तब श्रीकृष्ण ने उन्हेँ भारतवर्ष मे तीर्थाटन करने को कहा
ओर
ये भी कि जहाँ तुम्हारे अस्त्र अदृश्य हो जाएगेँ
तुम पापमुक्त हो जाओगे ।

पूर्व भारत ,दक्षिण भारत मेँ विभिन्न तीर्थस्थलोँ मे भ्रमण करते हुए
वे जब
राजस्थान के
इसी लोहार्गल मे अपने पूर्वज
तथा हतभ्राताओँ को
तर्पण देने को जल मे उतरे
एक अदभुत घटना घटा !

पांडवोँ के सारे अस्त्र गल गये

तभी
लौह+अर्गल=लौहर्गल
से आधुनिक लोहार्गल शब्द बना हो !

उस प्राचीन घटना को याद करने हेतु आज भी यहाँ के पवित्र
सूर्यकुण्ड ,भीमकुण्ड मे
सूर्यपराग व चन्द्रग्रहण के शुभ अवसर पर मेला लगता है ।

लोक विश्वास है
यहाँ पूर्वजोँ कि अस्थीओँ का विसर्जन करने पर वो गल जाते है
तथा
पितरोँ को परम गति प्राप्त होते है ।