युरोप मेँ मध्यकालीन भारतीय साहित्य का प्रचार प्रसार 17वीँ सदी मेँ
हुआ माना जाता है ।
उन्ही दिनोँ एक भारतीय विद्वान के मदद से
आव्रहाम लाजर ने भर्तुहरी के काव्य को पूर्तगाल मेँ अनुवाद किया था ।
ख्री. 1699 मेँ जेरुट फादर
जोहान अगष्ट भारत आए
और
संस्कृत व्याकरण का रोमन भाषा मे अनुवाद किया
लेकिन भाद मे
उन्होने
संस्कृत पर 2 शोध ग्रंथ भी लिख डाला । वहीँ
चार्लस् विलिकिन्स ने भगवत गीता तथा अभिज्ञान शकुंतळम् का
अंग्रेजी अनुवाद किया था ।
इतना ही नहीँ
विलिकिन्स ने संस्कृत भाषा को
कई युरोपियन को सिखाया भी !
विलिकिन्स के अनुवाद आधार पर
विलियम जोनस ने अभिज्ञान शंकुतंळम् को अंग्रेजी मेँ नाट्यरुप दिया
1789 मे !
जर्मन् मेँ जर्ज पाष्टर ने 1791 मेँ शकुंतला नाटक का अनुवाद कराया ।
कालिदास अब मरणोपरनान्त युरोप मे लोकप्रिय हो गये थे ।
1792 मेँ जोनस ने ही ऋतुसंहार का अनुवाद किया
उसके बाद अमरकोष निरुक्त निघण्टु
तथा अन्य वैदिक शास्त्र समेत अष्टाधायी
का भी जर्मन अंग्रेजी मे अनुवाद कराया गया ।
19वीँ सदी मेँ 10 उपनिषद लाटिन अंग्रेजी मे अनुवादित हो लोकप्रिय हुआ ।
माक्समुलर ने 1849 से 1875 के समयकाल मे ऋकवेद का अनुवाद किया था
वहीँ
ओडिशियो प्रिन सेपस नामसे एक विद्वाध ने वैदिक संकलन पुस्तक भी लिखा था ।
फिर
पाश्चात्य विद्वानोँ का ध्यान वेद पर केन्द्रित हो गया ।
Winternitz ,keith ,macdonell
जैसे पाश्चात्य विद्वानोँ ने भारत पर कई उपादेय ग्रंथ लिखे ।
1852 मे History of indian literature प्रकाशित हुआ ।
इसी क्रम मे
1858 को
माक्समुलर ने अपना सबसे
उपादेय ग्रंथ
History of ancient sanskrit literature लिखा था ।
फिर भी पाश्चात्य जनसमाज मे
भारतीय प्रजा
वर्षोँ सपेरे कहलाए
च्युँकि
वहाँ 19वीँ सदी तक भोगवाद का ही असर छाया रहा आज भी है