पाण्डवोँ कि अज्ञातवासको विफल करनेके लिये दूर्योधन
मामाशकुनीसे विचारविमर्श करते और उनके कहे अनुसार
पुरोचनपुत्र गौरमुखको पाण्डवोँको खोजने के लिये नियुक्त करते है ....
जाने से पूर्व गौरमुख को मामाशकुनी कह रहे है.....
कि...
जो भी व्यक्तिविशेष तुम्हारे द्वारा माँग करने पर आश्वीन्माह मे आम्रफलला देगेँ उन्हे तुम पाण्डवही समझना !
चारमाह तक खोजने पर अन्ततः गौरमुख को पाण्डव अस्कन्दवनमे मिलजाते और वो उनके अतिथि बनते है !!!
अतिथि ब्राह्मण वेशधारी गौरमुख युधिष्ठिरको परिपक्व आम्र फल माँगते है
ये सुनकर युधिष्ठिर चिन्तित हो जाते ....
ये जानते हुए भी कि असमयमे आम्रफल नहीँ मिलेगा ,जैष्ठ पण्डुपुत्र उनके सभी अनुज भ्राताओँ को आम लाने के लिये भेजदेते है !
हालाँकि लाख प्रयत्न करने पर भी अनुजोँ को आम्रफल नहीँ मिलपाता केबल मात्र एक
गुठली ही मिलता है ....
अन्त मे युधिष्ठिर समेत पँचपाण्डव श्रीकृष्णको स्मरण करते और उन्हे साक्षात मानकर सत्य करते है !!!
उनके सत्य करने पर वो गुठली से पौधा और पौधे से वृक्ष मे रुपान्तरित होता है..,
और
देखते ही देखते वो वृक्ष कच्चे आम्रफलोँ से लद जाता है ....
फिर देवीदौपदी सत्य करती है....
उनके सत्य करते ही आम्रफल परिपक्व हो जाते....
युधिष्ठिर आम्रफल ब्राह्मणवेशधारीगौरमुख को प्रदान करते है
तब छद्म ब्राह्मण कहते है कि वे स्नान पश्चात इसे भक्षण करेगेँ और मौका देखकर वाहाँ से निकल लेते है ।
अब कृष्ण तो कृष्ण है.....
उनके नज़र से कौन बचपाया है.... !!!
रस्ते मे मायावी अपने माया के बल पर गौरमुख को मोह मे ड़ाल देते और उससे आम्रफल को चुरा ले जाते...
Source-Sarla Mahabharat
[[ओड़िआ भाषा के आदिकवि सारलादासजी ने पंद्रहवी सदी मे ओड़िआ महाभारत लिखा था....ओड़िआ महाभारत व्यास रचित महाभारत का कार्बन कॉपि नहीँ है....इस ग्रंथ मे कवि ने कई उत्कलीय कथा कहानीओँ को भी सामिल किया है...]]