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सोमवार, 4 जुलाई 2016

सर्वं विष्णुमयं जगत्

जग वैरागी साधु संसारी लोगोँ को पागल लगते है ।
ऐसे ही कभी कहीँ एक साधु हुआ करते थे !
वो प्रायः मौन रहते
तब भी जब कोई उनके भेषभुषा को देखके व्यंग्य वाण चलाए
अथवा पागल समझते हुए पत्थर मार उन्हे क्षताक्त करे !
एक दिन वे साधु किसी गाँव मे
भिक्षान्न संग्रह
पूर्वक लौट रहे थे कि
उन्होने देखा कोई कुत्ता
उनके पिछे पिछे चला आ रहा है ।
उन महात्मा ने उस आवारा कुत्ते पर सवार हो साथ लिए एक वरगत के पैड के निचे भिक्षान्न भोजन करना शुरुकरदिया ।
दुपहरिआ मे
धुप से बचने के लिए वहाँ कुछ लोग आराम कर रहे थे
वो लोग इस नज़ारे को देख सहसा ठहाके लगाके हसने लगे....
अब साधु ठहरे मनमौजी राग द्वेष रहित
वे भी हँसने लगे
लोग हैरान !!!
अन्त मे साधु ने कहा
विष्ण्युपरि स्थितो विष्णुः
विष्णु खादति विष्णवे ।।
कथं हससि रे विष्णो ।
सर्वं विष्णुमयं जगत् ।।

पादना ये प्रकृति कि पुकार है

पादना
ये प्रकृति कि पुकार है
अब अपानवायु को हम रोक तो नहीँ सकते न
निकल गया सो निकल गया !
हाँ तो एक बार एक ग्रृप मे
मैनेँ मोदी - दिग्गविजय पाद प्रसंग पर एक जोक चैँप दिया था
ओर तब उस सभ्य समाज के
कट्टर मुखिया ने हमे ठेँगा देखाते
हुए
कहा था
खबरदार !!
इहा माताएँ बहनेँ
भी है
ऐसे उलजलुल पोस्टिआने से बचेँ !!
मैँ कंफ्युज हुँ
शायद महिलाएँ
लघुशंका दीर्घशंका
और पर्द्दन आदि नित्यकर्म करती ही नहीँ
उनका इंजन पुरुषोँ से बिलकुल भिन्न होता होगा ।
मुझे पता नहीँ शायद ऐसा ही हो !!
खैर तब
मैने अपनी गलती मान ली
और उन दिग्गजोँ के आगे स्वयं को सरेँडर कर दिया !
जोक ये था
"एकबार मोदीजी पत्रकारोँ से बात कर रहे थे
और किसी ने उनके आगे दिग्गविजय का नाम ले लिया
मोदी ने कुछ कहे बगैर
पाद दिया
अगले दिन देश भर मे पतरकारोँ ने इसे मुख्य मुद्दा बनादिया
कि देखो
मोदी ने दिगविजय के मुँह पर पाद दिया !"
संस्कृत शब्द ‪#‎ पर्द्दन‬से हिन्दी बाग्ला मे ‪#‎ पाद‬
ओड़िआ मे ‪#‎ पाड़‬
तथा
अंग्रेजी मे ‪#‎ Fart‬शब्द प्रचलन मे आया ।
वैसे
जानवरोँ मे शियार और गिदड
सबसे उत्कट गंधयुक्त अपानवायु छोड़ने के लिए जाने जाते है ।
बचपन मे 5 बच्चे साथ साथ बैठे हो और उनमे से कोई
पाद दे तो
एक काठी घुमैके
मुहावरा बोलके जिसके पास अन्तिम शब्द खत्म होता था
उसे ही दोषी करार दिया जाता था

पंचम RD Berman

'सा, रे, गा, मा, पा,धा,नी'
ये "पा" सनातनीओँ का पंचम तान है ।

हमारा सुबह का शुरवात इसी
पंचम तान से होता हे
जब काक पक्षी
'का' 'का' कर के हमेँ निँद से जगाता है ।
_ _
लेकिन सोचो
मैँ आज ये सब क्युँ बता रहा हुँ

च्युँकि आज है
म्युजिक मैस्त्रो पंचम दा
Rahul Dev Burman जी
का Birth Day
संगीतकार

सचीन देव बर्मन ने देखा जब जब उनका बेटा रोता है
पंचम तान मे रोता है
इसलिए आर डी बर्मन जी का नाम पंचम पड़ा !

कुछ लोगोँ के हिसाब से
R.D Burman के बालपन मे एकबार सचीन दा के घर
दादामुनी अशोक कुमार गये हुए
थे
अशोक दा ने देखा
आर डी बर्मन वहाँ पा पा पा
कर रहे थे
और इसलिए अशोक दा ने उनका निक् नेम पंचम रखा ।


पंचम दा जब 13 के थे
एक बार
लताजी उनके यहाँ आई हुई थी
पंचम दा ने जैसे ही जाना वह लताजी है
दौडे अटोग्राफ के लिए
पंचम दा ने लताजी से कहा
क्या आप मुझे अपना अटोग्राफ देगी ?
लताजी ने तब पंचम को जो आशिर्वाद दिया
आगे चल के वे इत्ते बड़े कंपोजर बने
आज दुनिया जानता है ।
ऐसे
बहुत कम मिशालेँ है
कि बाप भी ग्रेट , बेटा भी ग्रेट
हो
राहुल देव बर्मन दुनिया के ऐसे अकेले इकलौते कंपोजर है
जिनके कंपोजिसन मे
उनके पिता यानी सचीन देव बर्मन ने एक गाना गाया था !
युँ तो
Bollywood मे कंपोजर अनेकोँ हुए है
लेकिन उनके तरह म्युजिकाल एक्सपेरिमेँट
करनेवाला न हुआ न है ।
ये ग्रामी आवार्डवालोँ कि बद् किस्मती है कि
उन्होने R.D Burman के प्रतिभा को नजर अंदाज करदिया !
"मेरे सामने वाले खिडकी मेँ"
से
"एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा" तक
उनके ज्यादातर गानेँ
आज भी उतनी ही लोकप्रिय जितने कल थे ।

बंगाल कि रानी रासमणी


कोलकत्ता के प्रशिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर से आप सभी परिचित होगेँ
लेकिन क्या आप जानते
है ......
इसकी प्रतिष्ठात्री एक नारी थी ।
स्वर्गीया रानी रासमणी माडे
ने यह मंदिर बनवाया था !
अति दरिद्र कैवर्त परवार मे इनका जन्म हुआ
ये अपनी युवाकाल मे परम रुपवती थीँ !
कोलकत्ता के ही एक अमीर युवक रामचंद्र माडे का
दिल इन पर आ गया !
दोनोँ ने
उस समय कि कट्टरवादी समाज से लड़ झगड़ के व्याह रचाया
कुछ काल तक उनका
दाम्पत्य जीवन सुखमय रहा
लेकिन 1836 साल मे रामचंद्र जी इन्हे और दुनिया को छोड़ गए ।
साधारण स्त्री होती तो इतने सारे विपत्तिओँ के आगे दाम तोड़ देती
लेकिन विचक्षण बुद्धि
संपन्न रासमणी खुद झुकी
न किसी को झुकने दिया !
बाल्यकाल गरीबी मे बिता था
इसलिये इन्हे गरीबोँ का दुःख दर्द का एहसास था
अतः धर्मपरायणा तेजस्वनी
गरीबोँ के उपकार व्रत मे दीक्षिता हो गई !
कुछ वर्षोँ मे देवी रासमणी माडे कोलकत्ता सहर मे इतनी प्रसिद्ध
हो गई कि
साधारण जनता उन्हे रानी माँ
पुकारने लगे ।
राजपरिवार कि न होकर भी
इनकी परोपकारिता दानशीलता
से प्रभावित हो
लोग
उनको रानी उपाधी
प्रदान किए थे !
परवर्त्तीकाल मे अनेकानेक लोगोँ को ख्रिस्तियन होते देख
रानी रासमणी माडे ने हिन्दु धर्म परम हित साधनार्थे
कई छोटे बड़े मंदिरो का निर्माण करवाया
जिसमे दक्षिणेश्वर काली मंदिर अन्यतम है ।
ध्यान रहे यह वही मंदिर है
जहाँ श्री रामकृष्ण परमहंस जी
पूजक होने के साथ साथ उद्योगी
बालकोँ को सनातन धर्म के विषय मे शिक्षा भी देते थे !
आगे चलकर इन्ही श्रीरामकृष्ण परमहंस जी के पाद पद्म मे ज्ञान आहरण कर
बिबेकानन्द विश्व प्रसिद्ध हुए !