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गुरुवार, 13 नवंबर 2014

अंत मेँ जीत सत्य और न्याय कि होती है

भारत पर हमलाकरनेवाले जातिओँ मेँ ज्यादातर या तो लुप्त हो गया दुर्वल होकर विखर गये ।
सबसे पहला उदाहरण ग्रीक् है
आज कहनेभर को ग्रीस और उसकी संस्कृति जीवित है ।
ज्यादातर ग्रीसवासी अब रोमान कैथोलिक है और ख्रीस्ट धर्म के अनुयायी रहगये हे ।
हुण ,कुशाण और सातवाहन भारतीय बनकर यहीँ के हो गये ।
फिर आये तुर्क इनका एक बडा तवक्का आज भी दुनिया मेँ अपने धाक जमाने के चक्कर मेँ लगा हुआ है जबकि तुर्कलोगोँ का देश तुर्कि इन सब लफडोँ से दुर चैन ओ अमन कि बात करता है । तो इनमेँ आपसी मतभेद हे और ये कुछ दिनोँतक ऐसे ही लढ़ते रहेगेँ ।

भारत मेँ मंगोल और मोगलोँ नेँ भी हमाला किया और अपने अपने परंपरा और संस्कृति को भारत मेँ छोडगये ।
मोगलोँ नेँ भारत मेँ ही अपना अंतिम शाँस लिया और आज इनके वारिस खुद को बादशाह और साहिव आदि कहकर घुमते फिरते मिलजाते है ।
17वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेनसहित अनेकों युरोपीय देशों, जो कि भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होनें देश में स्थापित शासित प्रदेश, जो कि आपस में युद्ध करने में व्यस्त थे, का लाभ प्राप्त किया । अंग्रेज दुसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और 1840 ई तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए । परंतु इन हारामखोर अंग्रेजोँ कि दुर्दशा देखिये ,,व्रिटेन तथा दुसरे युरोपीय देशोँ के लोगोँ से बना कॉकटेल कलचराल कंट्री ("cultural Cocktail country america" ) :-D :-D :-D

अमरिका नेँ अंग्रेज व अन्य युरोपीय देशोँ को न्युवर्लड से खदेड कर ही दमलिया । अब भारत व दुसरे एसिआन और अफ्रिकी देशोँ मेँ इनको मार भगाया । भारत मेँ तो 1945 के बाद के हालात से डर कर अंग्रेज भाग खडे हुए । आज अंग्रेज और अंग्रेजी जिँदा तो है पर अंग्रेज अपने छोटे से देश मेँ और अंग्रेजी अपनी औकात मेँ रहकर छटपटा रहे है बस । कभी सूर्यास्त न होनेवाला साम्राज्य अब अपने ही देश मेँ अलगाव का वोझ लेते फिरता है । भारत पर बुरे आँख रखनेवाले काल के आगे बरबाद हो गये उन्हे होना ही था । क्युँकि आखरी मेँ जीत सत्य व न्याय कि होती है ।

कश्यपनारद जन्मकथा

हरिवंशपुराण मेँ नारदजी की उत्पत्तिकथा वर्णित है । उस कथा का सारांश यह है कि सृष्टि के आरम्भ मेँ ब्रह्माजी के सात मानस पुत्रोँ मेँ एक देवर्षि नारद थे , जो बडे भगवद भक्त थे । जिस समय आदि प्रजापति दक्ष ने मैथुनी सृष्टि रची और वीरणा नामक प्रजापति की आसिक्री नामी कन्याके गर्भ से पाँच सहस्र पुत्र, जो हर्यश्व कहलाते है , उत्पन्न किये एवं उनको सृष्टि बढ़ाने की आज्ञा दी , उस समय उन हर्यश्वोँ को देवर्षि नारद ने गर्भवास के दुःखोँ का वर्णन करते हुए सृष्टि कि बृद्धि होने से रोक दिया । फिर दक्षप्रजापति नेँ सवलाक्षोँ को सृष्टि कर इस कार्य के लिये प्रेरित किया । परंतु इन्हे भी देवर्षि नारद द्वारा परमाधाम की ज्ञानपोदेश प्राप्त हुआ और वे सभी परमगति प्राप्त हो गये । तब दक्षप्रजापति क्रोधित हो गये और नारदजी को श्राप दे दिया कि वे तत् क्षणात् भश्म हो जाय । नारदजी ने उन्हे अज मुख लाभ का श्राप देकर अभिशाप के आग मेँ जलगये ।
अब देवलोक मेँ हलचल मचगयी च्युँकि नारदजी के बिना देवोँ के प्राथना पर परमपिता ब्रह्मा नेँ दक्षप्रजापति को समझाते हुए कहा "हे प्रजापते ! आप नारद को जीवित किजिये । क्युँकि बिना नारद के सृष्टि का काम नहीँ चल सकता ।'
इसपर दक्षप्रजापतिने कहा-- नारद भश्म हुए शरीर से तो जी नहीँ सकता ,क्युँकि हमारा श्राप अन्यथा नहीँ होगा ,परंत्नु हम आपकी आज्ञा का उलंघन भी नहीँ कर सकता ! अतएब इस विषय पर दुसरे उपाय करता हुँ । यह कहकर दक्षप्रजापति नेँ अपनी एक कन्या ब्रह्माजी को दी और कि इसीके गर्भ से नारद का जन्म होगा । ब्रह्माजी नेँ उस कन्या को कश्यप को दे दिया । उसी कन्या के गर्भ से नारद का जन्म हुआ व वे आगे चलकर कश्यपनारद के नाम से जानेगये । कश्यप नारद कि यह कथा नारद पुराण मेँ नारद जी को ब्रह्माजी के मुख से सुनाया गया है ।

आभार :- गीताप्रेस गोरखपुर