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शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

गजानन माधव मुक्तिवोध..... एक परिचय !

13 नवेम्बर 1917 मेँ मध्यप्रदेश के ग्वालियर सहर नजदिक जन्मेँ गजानन माधव मुक्तिवोध जी सिर्फ 46 वर्षोँ तक जीँदा रहे पर इन 46 वर्षोँ मेँ उन्होने आधुनिक हिँदी साहित्य को एक नया मोड़ दिया । उनके पिता पोलिस विभाग मेँ इंस्पेक्टर थे और उनकी बारबार बदली से मुक्तिवोध जी को काफि परेशानीओँ का सामना करना पड़ा । 1930 मेँ उजैन से मीडल कि परीक्षा दिया पर विफल हुए । उनकी प्रख्यात कविता "अंधेरे मेँ" को आधुनिक हिँदी कविता मेँ माष्टरपिस कहाजाता है । 1957 मेँ उन्होने यह काव्य लिखना शुरुकिया और 1964 मेँ उनके मृत्यु पश्चात यह प्रकाश मेँ आया । आज भी इस ग्रंथ पर प्रगतिशील कवि समाज मेँ मतान्तर देखने को मिलता है । कई प्रकार के भावनाओँ से वहति इस कविता मेँ मुक्तिवोध जी नेँ आजादी बाद नया सपनाओँ के बीच ब्याप्त अराजकता और अंधकार कि बात करते है । अंधेरे मेँ कि तरह उनका ब्रह्मराक्षस नामक कविता भी काफि लोकप्रिय हुआ एबं इस कविता का नाट्यरुपान्तरण भी किया गया था । कहाजाता हे कि मुक्तिवोध पर दोस्तोयेवेस्की ,लियो टॉल्सटोय और मेक्सिम् गोर्की आदिओँ का बौधिक प्रभाव पड़ा था और शायद इसलिये उनके साहित्य रचनाओँ मेँ समाजवाद दिखजाता है ।
उन्होने स्वयं दो पुस्तकोँ का प्रकाशन किया था 1.कामायनी एक पुर्नविचार और 2.भारतीय इतिहास एबं संस्कृति विषय पर एक पाठ्य पुस्तक ।
वे अचेतन अवस्था मेँ लकवाग्रस्त हो गये थे तभी उनका एक पुस्तक प्रकाशित हुआ "एक साहित्य कि डायरी" । "अंधेरे मेँ" और "चाँद का मुँह तेढ़ा" आदि कुछ कविता उनके मृत्यु के पश्चात प्रकाशित हुआ था । उनकी अन्य एक काव्य संग्रह "भुरी भुरी खाक धुल" भी लोगोँ के द्वारा आदृत हुआ । उनकी तमाम सर्जन मुक्तिवोध रचनावली के नाम से 6 खंड़ोँ मेँ प्रकाशित हुआ है । कविता उपराँत उनके द्वारा रचित विवेचन लेख भी जनादृत हुआ जैसे कविता का आत्मसंघर्ष , नये साहित्य का सौँदर्यशास्त्र,समीक्षा कि समस्याएँ आदि । उन्होने काठ का सपना , विपात्र एवं सतह से उठता आदमी नाम से काहानी भी लिखा है । 1981 मेँ मणि कौल नेँ उनकि कहानी सतह से उठता आदमी पर एक फिल्म बनाया था जिसे कान फिल्म फेस्टिवाल मेँ दिखायागया था । 11 सेप्टेम्बर 1964 मेँ सिर्फ 46 वर्ष जिँदा रहनेवाले इस साहित्य साधक नेँ दुनिया को अलविदा कहदिया ।