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शनिवार, 13 जून 2015

सत्सगं का लाभ

दशार्ण देश मेँ एक राजा हुए थे वज्रबाहु । वज्रबाहु की पत्नी सुमति अपने नवजात शिशु के साथ किसी असाध्य रोगसे ग्रस्त हो गयी । यह देख दुष्टबुद्धि राजाने उसे वनमेँ त्याग दिया । अनेक प्रकारके कष्ट भोगती हुई वह आगे बढ़ी । बहुत दूर जानेपर उसे एक नगर मिला । उस नगरका रक्षक पद्माकर नामका एक महाजन था । उसकी दासी ने रानी पर दया की और उसे अपने स्वामी के यहाँ आश्रय दिलाया । पद्माकर रानीको माता के समान आदर के दृष्टि से देखता था ,उसने दोनोँ मा बेटे को स्वस्थ करने हेतु बड़े वैद्योँ को नियुक्त किया परंतु पुत्र बच न सका मर ही गया ।
पुत्र के मृत्यु पश्चात् रानी चिँतित व्यथित रहने लगी ।
एक दिन उस और प्रशिद्ध शिवयोगी ऋषभ जी का आना हुआ । रानी को विलाप करती देख उन्होने उसे समझाया हे पुत्री !
तुम इतना क्योँ रो रही हो ? फेन के समान इस शरीरकी मृत्यु होने पर विदुषी कन्याएँ शोक नहीँ करती !
जीव अव्यक्त से उत्पन होता है और अव्यक्तमेँ लीन हो जाता है केवल मध्य मे बुलबुले की भाँति व्यक्त सा प्रतीत होता है ।

शिवयोगीके तत्वभरे उपदेशोँ को सुनकर रानी ने कहा भगवन् ! जिसका एकमात्र पुत्र मरगया हो जिसे प्रिय बन्धीओँने त्याग दिया हो और जो महान रोग से अत्यन्त पीड़ित हो ऐसी मुझ अभागिन के लिये मृत्यु के अतिरिक्त और कौन गति है ? इसलिये मेँ इस शिशु के साथ ही प्राण त्याग देना चाहती हुँ ! मृत्यु के समय जो आपका दर्शन हो गया .मेँ इतने से ही कृतार्थ हो गयी !

रानी की बात सुनकर दयानिधान शिवयोगी शिवमन्त्रसे अभिमन्त्रित भस्म लेकर बालकके पास गये और उसे उन्होनेँ उसके मुँहमेँ ड़ाल दिया । विभूति के पड़ते ही वह मराहुआ बालक जीवत हो उठा ।
भस्म के प्रभाव से माँ पुत्रोँ का देह भी दिव्य हो गये उनके सारे रोग मिटगये ।

ऋषभने रानी से कहा बेटी जबतक तुम इस संसार मेँ जीवित रहोगी वृद्धावस्था तुम्हारा स्पर्श नहीँ करेगी । तुम दोनोँ दीर्घकालतक जीवित रहो । तुम्हारा यह पुत्र भद्रायु नामसे विख्यात होगा और अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लेगा ।

ऋषभ देव प्रस्थान कर गये

भद्रायु उसी वैश्यराजके घर मेँ बढ़ने लगा । वैश्या का भी एक पुत्र था उसका नाम पद्मकार वैश्य ने सुनय रखा था ।
दोनोँ कुमारोँ मेँ बड़ा स्नेह हो गया था । जब राजकुमार का सोलहवाँ वर्ष पुरा हुआ , तब ऋषभ मुनि पुनः वहाँ पधारे ।

इधर वज्रबाहु के दशार्ण राज्य मेँ शत्रुओँ ने लुटपाट करना चालुकरदिया । यहाँतक कि सुंदर महल से रानीओँ का हरण कर राजा को बंदी बनालिया गया ।

जब राजपुत्र को यह बात ज्ञात हुआ उसने सदलबल दशार्ण देश कि और कुच कर दिया ।
शत्रृओँ के विनाश व पिता को मुक्त करके वे दशार्ण राज्य के राजा बने

और परवर्ती काल मेँ वे भद्रायु के नामसे समग्र भारतवर्ष के चक्रवर्ती सम्राट बने ....

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