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बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

हंसिबा नाचिबा खेलिबा करोति ध्यानम्

"हंसिबा नाचिबा खेलिबा करोति ध्यानम्"

एकबार ओशो ने यह प्रवचन दिया था । 
मैंने जब इसे पहली बार पढ़ा तो अपने मन हीं मन में सोचने लगा अरे यार 
ये तो आधा ओड़िआ आधा संस्कृत है । 

ओड़िआ भाषामें 
हसिवा = हसना 
नाचिवा = नाचना
खेळिवा = खेलना 
(ओडिशा के लोग क्रिया प्रत्यय बा को 'वा' उच्चारण करते हैं परंतु लिखने के समय धातुशब्द के साथ 'बा' प्रत्यय लगाते है । ओड़िआ लिपि में पहले ब,व(ବ,ଵ) के लिए एक अक्षर व्यवहार होता था ओड़िआ में 'ବ' )

वहीं ओशो प्रवचन में करोति ध्यानम् संस्कृत है

इससे पता चलता है कि ओशो ओड़िआ भाषा जानते थे च्यूंकि क्रिया प्रत्यय 'वा/बा' भारत में केवल जीवित भाषा ओड़िआ भाषा में प्रचलित है ।

हां कभी ओडिशा में पाली भाषा प्रचलित थीं उसमें भी 'वा' क्रिया प्रत्यय हुआ करता था तथा सिंहली(श्रीलंका की भाषा) में भी 'वा' क्रिया प्रत्यय मिलता है । 

सबसे पहले ओडिशा के राजाओं ने हीं श्रीलंका व मालदीव में मूल भूखंड़ से शासन किया था पहली से पांचवीं शताब्दी तक । 

इसलिए श्रीलंका में पाली भाषा प्रचलित हुआ फिर वह इलु बना और अन्ततः वह इलु भाषा सिंहली व धिवेशी बना । 

पाली भाषा ओड़िआ भाषा की पूर्व प्रशासनिक रुप है । आजसे दो हजार वर्ष पूर्व पाली पूर्व ओडिशा तथा उड्र (उड्रमागधी) पश्चिम ओडिशा में कथित भाषा हुआ करता था । 

बादमें पश्चिमी ओडिशा कि उड्र भाषा ने पाली को अपने में आत्मसात करलिया व आधुनिक ओड़िआ भाषा का जन्म हुआ । ओड़िआ भाषा चारवार मानकीकरण हुआ है । यह दुसरा मानकीकरण था ।


रविवार, 21 अगस्त 2022

धंधे का भेद(चंदामामा)

शिलंगेरी गांव का धर्मानंद अपनी पत्नी और पुत्री के साथ एक विशेष पुण्यस्थली के तीर्थ पर अपने गांव से रवाना हुआ । उस पुण्यस्थली तक पहुंचने के लिए एक नदी को पार करना पड़ता था । नदी के किनारे पहुंचे तो वहां पहले ही कुछ यात्री इंतज़ार में दिखें । उन्हें भी नदी पार जाना था । वहां एक नाव भी थी । नाव का मल्लाह भी वहीं था । धर्मानंद ने उससे पूछा , " भाई , पार ले जाने के कितने पैसे लोगे ? ' " ' एक रुपया , फी यात्री , " मल्लाह ने उत्तर दिया । नदी में पानी काफी था । बल्कि उसका कोई ओर छोर ही दिख नहीं रहा था । धर्मानंद को हैरानी हुई । केवल एक रुपया ! खैर , वह मल्लाह से कुछ नहीं बोला और अपनी पत्नी और बेटी के साथ नाव में जा बैठा । बाकी यात्री भी बैठ गये ।

 नदी पार करने के बाद सब यात्री देव दर्शन के लिए वहां के मंदिर पर पहुंचे और दर्शन करने के बाद वापस नदी किनारे आ गये । दरअसल , उन्हें उसी दिन वापस नदी पार जाना था , क्योंकि मंदिर पर रुकने की कोई व्यवस्था न थी और न ही वहां भोजन की कोई व्यवस्था थी । उधर अंधेरा भी उतरने को और वे अंधेरे में किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे । मल्लाह अपनी नाव के साथ वापस जाने को तैयार था , लेकिन अब वह फी यात्री पांच रुपये मांग रहा था । " यह क्या ? " धर्मानंद को फिर हैरानी हुई । " उधर से आये तो केवल एक रुपया फी यात्री मांगा , और अब पांच रुपये फी यात्री मांग रहे हो ! तुम्हारा मतलब है , अब हम तुम्हें तीन रुपये के बजाय पंद्रह रुपये दें ? हद कर रहे हो ! " " ' आप परेशान क्यों होते हैं , हुज़ूर ! आपको भी अब यह इत्ती सी बात बतानी पड़ेगी ? यह तो धंधे का भेद है " उत्तर देते हुए मल्लाह मंद - मंद मुस्करा रहा था । -

(किशन आर्य)

गुरुवार, 18 अगस्त 2022

दायित्व किसे सौंपें ?(रामकृष्ण शास्त्री)


एक गांव में मदनसिंह नाम का एक पहलवान रहता था । उसने अनेक कुश्तियां लड़ीं , अनेक पहलवानों को धूल चटायी और अनेक पुरस्कार प्राप्त किये । यह सब कुछ गांव के मुखिया से छिपा न था । 

इसलिए उसने मदनसिंह के कहने पर फौरन उसे गांव के पंचायत का चौकीदार नियुक्त कर दिया । - मदनसिंह को गांव की तरफ से कर वसूली का काम सौंपा गया , जिसे वह बड़ी ईमानदारी के साथ करता था । लेकिन एक रात चोरों ने मौका पाकर पंचायत घर का ताला तोड़ा और वहां से इकट्ठी का गयी तमाम राशि लेकर चंपत हो गये । मुखिया को जब इसकी खबर मिली तो उसका पारा एकदम चढ़ गया । उसने मदनसिंह को बुलवाया और उससे पूछा , 


" उन चोरों को तुमने क्यों नहीं पकड़ा ? क्यों नहीं तुमने उनका मुकाबला किया ? आखिर , बात क्या थी ? ” 

इस पर मदनसिंह ने बड़े सहज भाव से कहा , " मालिक , जब मैं कुश्ती लड़ता हूं तो लोग सीटियां बजा बजा कर मेरी हिम्मत बंधाते हैं । वे तालियां पीटते हैं जिससे अपने मुकाबले पर आये दूसरे पहलवान को पटकने के लिए मुझ में तूफानी जोश भर जाता है । रात को चोर जब पंचायत का खज़ाना लूटने लगे , तो उस समय मुझे जोश दिलाने वाला कोई नहीं था । इसीलिए मैंने उनका सामना नहीं किया । मैं क्या करूं , लाचर था । "

 और यह कहकर मदनसिंह अपनी मूंछों पर ताव देने लगा । मदनसिंह की बात सुनकर मुखिया की आँखें खुलीं । उसे पहली बार इस बात का एहसास हुआ कि किसी की शक्ल - सूरत देखकरं ही उसे दायित्व नहीं सौंप देना चाहिए , उसके स्वभाव को जानना भी बहुत ज़रूरी है ।
 
लेखक - रामकृष्ण शास्त्री

मंगलवार, 17 मई 2022

ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है

ज्ञानवापी एक मुसलिम या आरबी ,पार्सी ,तुर्क शब्द नहीं है ।  ज्ञानवापी शब्द  ज्ञान तथा वापी शब्द से बना है ।

समुचा विश्व यह जानता हीं होगा कि 'ज्ञान' शब्द मूळतः एक संस्कृत शब्द है । परन्तु कई लोग संभवतः वापी शब्दके बारे में नहीं जानते होंगे ‌ । यह शब्द कहां से किस भाषा से आया है और इसका अर्थ क्या है बहुतों को नहीं पता होगा...

हिन्दी शब्दसागर शब्दकोषमें  वापी शब्दका  अर्थ छोटा जळाशय़ व बावली लिखा हुआ है ‌। वापी या बावली सिडीयोंवाली कूंए होती हैं जिसे ओड़िआ भाषा में बाम्फी कहाजाता है ।

हिन्दीकी वापी या बावली तथा ओड़िआ भाषाकी बाम्फी शब्द संस्कृत वापि शब्द के साथ समोद्धृत है  । अद्यपि  संस्कृत भाषामें भी   वापि व वापी दोनों शब्दोंका प्रयोग होता है ‌।  इसलिए स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि वापी शब्द मूलतः एक संस्कृत शब्द है ।

"जळाशय़ोत्सर्गतत्त्वम्" शास्त्रमें वापि या वापीकी लक्षण इसतरह उल्लेख किया गया है...

“नव्यवर्द्धमानधृतो वशिष्ठः ।
शतेन धनुर्भिः पुष्करिणी ।
त्रिभिः शतैर्दीर्घिका । चतुर्भिर्द्रोणः । पञ्चभिस्तडागः । द्रोणाद्दशगुणा वापी । तेन चतुर्द्दिक्षु पञ्चत्रिंशद्धस्तान्यूनतायां द्वादशशतहस्तान्तरान्यूनत्वेन दीर्घिका । चतुर्द्दिक्षु चत्वारिंशद्धस्तान्यूनतायां षोडशशतहस्तान्तरान्यूनत्वेन द्रोणः । चतुर्द्दिक्षु त्रिंशदधिकशतहस्तान्यूनतायां षोडशसहस्रहस्तान्तरान्यूनत्वेन वापी” । (इति जळाशयोत्सर्गतत्त्वम्)

वापि वा वापी खननके फळ विषय पर भी कळ्पतरौ वाय़ुपुराणमें बताया गया है की...

“यो वापीमथवा कूपं देशे वारिविवर्ज्जिते ।
खानयेत् स दिवं याति बिन्दौ बिन्दौ शतं समाः ॥”

वापि या वापीके जल के सम्बन्धमें राजबल्लभ ग्रन्थमें उल्लेख है

“याप्यं गुरु कटु क्षारं पित्तळं कफवातजित् ।”

वापि या वापी खनन के सम्बन्धमें शास्त्रों में दिङ्निषेध विषयक उल्लेख भी है

जैसे,  —
“वापीकूपतडागं वा प्रासादं वा निकेतनम् ।
न कुर्य्याद्वृद्धिकामस्तु अनळानिळनैरृते ॥ आग्नेय्यां मनसस्तापो नैरृते क्रूरकर्म्मकृत् ।
   वायव्यां बळवित्तञ्च पीयमाने जळे प्रिये ॥
      स्थानस्य पावके भागे वापीकूपतड़ागकम् ।
          अग्निदाहं सदा कुर्य्यात् समानुषचतुष्पदाम् ॥
               नैरृते पीयमानन्तु आत्मना दुःखितो भवेत् ।
                     कन्यापि तज्जळं पीत्वा पतिं गृह्णाति कामतः ॥”
                    (इति देवीपुराणे नन्दाकुण्डप्रवेशाध्यायः )

उसी प्रकार धरती पर  वापि या वापी निर्माण द्वारा क्या क्या लाभ होता है उसपर भी अग्निपुराणमें विस्तृत उल्लेख मिलता है ।

"शर्म्मिळ उवाच ।”

“तडागोदकवापीनां कृतानामिह यत् फळम् । विशेषेण पितृश्रेष्ठ वक्तुमर्हस्यशेषतः ॥”

“यम उवाच ।”

“धर्म्मस्यार्थस्य कामस्य यशसश्च द्बिजोत्तम ।
तड़ागं सुप्रभूताम्बु परमायतनं स्मृतम् ॥
देवताः पितरो नागा गन्धर्व्वा यक्षराक्षसाः ।
पशुपक्षिमनुष्याश्च संश्रयन्ति जळाशयम् ॥
कृत्स्नं तारयते वंशं पश्य खाते जळाशये ।
गावः पिबन्ति पानीयं मनुष्याः पशवस्तथा ॥
शरदृतौ तड़ागेषु सलिळं यस्य तिष्ठति ।
अग्निष्टोमफळं तस्य प्रवदन्ति मनीषिणः ॥
येषां शिशिरकाळे तु पानीयं प्रतितिष्ठति ।
वाजपेयातिसत्राभ्यां फळं बिन्दन्ति मानवाः ॥
वसन्ते चैव ग्रीष्मे तु सलिळं यस्य तिष्ठति ।
राजसूयांश्वमेधाभ्यां स फळं समुपाश्नुते ॥
तड़ागं सर्व्वसत्त्वानां जीवनन्तु दिवानिशम् ।
तस्मात् सर्व्वात्मना वत्स तड़ागमिह कारयेत् ॥
कृत्स्नं हि तारयेद्बंशं पुरुषस्य न संशयः ।
सावतारः कृतः कूपः सम्प्रभूतजळस्तथा ॥
यस्य स्वादुजळं कूपे पिबन्ति सततं जनाः ।
स नरो विरजो लोके देववद्दिवि मोदते ॥
पीत्वैवेक्षुरसं क्षीरं दधि मधु सुरासवम् ।
तावत् पिपासा नापैति यावत्तोयं न पीयते ॥
जीवन्ति चान्नरहिता दिवसानि बहून्यपि । तृषितस्तोयरहितो दिनमेकं न जीवति ॥
तस्माद्ददाति यो नित्यं पानीयं प्राणिनामिह ।
स ददाति नरः प्राणान् माभूत्ते ह्यत्र संशयः ॥
प्राणदानात् परं नाम नान्यद्दानं हि विद्यते ।
तस्माद्वापीश्च कूपांश्च तडागानि च कारयेत् ॥
सवृक्षाणि ह विप्रर्षे यदीच्छेत् श्रियमात्मनः ।
शुष्कं परनिपानन्तु यः कारयति शक्तितः ।
सन्तारयति भूय़ोऽपि द्विगुणं तस्य वै फळम् ॥ ”

(इति वह्निपुराणे तडागवृक्षप्रशंसानामाध्यायः ॥)

अतः विभिन्न शास्त्रों में वापि तथा वापी शब्दके प्रय़ोग से स्पष्ट होता है कि यह एक संस्कृत शब्द है।

कळ्पद्रुम संस्कृत अभिधान के अनुसार
"वापि + कृदिकारादिति ङीष्" = वापी

वहीं वापि शब्दके सम्बन्धमें वहां कहा गया है

"उप्यते पद्मादिकमस्यामिति । वप् + “वसिवपियजिराजिव्रजीति”

ओडि़आ पूर्ण्णचन्द्र भाषाकोषरमें भी वापि शब्दकी इसी निरुक्तिमतको समर्थन किया गया है और उल्लेख किया गया है कि  वप् धातुसे बुनने अर्थमे वापि शब्दको निष्पन्न कियागया है  । पूर्वकालमें जहां पद्मादि पुष्पके वीजों को वपन किया जाता था उसे वापि या वापी कहा जाता था

दीर्घिका; पोखर; दीर्घी; चकौरनुमा लम्बी पोखर; जलाशयको वापि/वापी कुहाजाता था और चतुष्कोण प्रस्तर निर्मित बृहत् कूपको भी लोग वापि/वापी कहाकरते थे ।

इसलिए स्पष्ट है कि ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है । इसका पहले ज्ञानरूपक वापी या कूपके अर्थमें सम्भवतया नामकरण हुआ था ‌ । बहुत सम्भव पहले के ज़माने में ज्ञानवापी मन्दिर ज्ञानका पीठ रहा होगा जिसे सनातन धर्मके नाश करने हेतु बाहर से आनेवाले आक्रान्ताओं ने तोड़कर उसके  उपर मसजिद बना दिया होगा ।  सेंकड़ों वर्षों तक सनातनी हिन्दूओं को यहां मस्जिद बनाकर अंधेरे में रखागया परन्तु अब सच्चाई खुलने लगी है ‌ ।

लेखक —शिशिर साहु मनोज

तथ्य
©पूर्ण्णचन्द्र भाषाकोष
© हिन्दी शब्दसागर
©संस्कृत कळ्पद्रुम अभिधान

रविवार, 10 सितंबर 2017

●●मन ही मित है तेरा मन ही शत्रु●●

एकबार एक अमेरिकी कैदीके साथ एक परिक्षण किया गया....

उसे पहले एक जहरीले साप के बारे में जानकारी दियागया फिर एक व्यक्ति उसके सामने उसी नस्ल का एक सांप लेकर आया.....

उसे बताया गया कि
इसी साप के द्वारा उसे कटवाया जाएगा....

फिर उसके
आखों में पट्टी बांधकर उसे
बिठाया गया
ओर उसे एक अन्य बिनजहरीले साप से कटवाया गया....

व्यक्ति मरगया.....
उसके अंगों में जहर फैल गया था
लेकिन ये जहर उस सांप कि नहीं थी....

उस कैदी के मस्तिष्क ने वह जहर बनाया था....
वो भी सिर्फ डर के कारण.....

यानी बात साफ है
हमारा मन ही मित्र है ओर मन ही शत्रु
ओर मन कहाँ है ?
मस्तिष्क में.....

हृदय में बस ब्लड शुद्ध होता है
मानव सभी बिचार कार्य अपने मन में करता है....

सोमवार, 24 जुलाई 2017

नमन

तो चलिए #नमन शब्द का पोस्टमार्टम करते है

नम्  धातु शब्द में भाव अर्थमें अन प्रत्यय लगने से नमन शब्द बना....

नम् धातु शब्द
१.प्रणाम करने
२.नत होना यानी झुकने
३.शब्द करने
तथा
४.नीचे गिरने के लिए प्रयुक्त होता है ।

इस तरह से देखा जाए तो
नमन शब्द के कई अर्थ है

१.झुकना
२.नमस्करण, प्रणाम
३.नरम होना
४.वश होना......

"यानी वो व्यक्ति जो नमन करता है
वह पहले आदर सहित झुकता है
फिर प्रणाम करता है
ओर तब बहुत जरुरी है कि
प्रणाम करनेवाले व्यक्ति का  हृदय नरम हो तथा नमन करनेवाले व्यक्ति के द्वारा उसका हृदय वशीभूत हो....."

😀😀😀😀

खैर आप लोग तो बस हसीं मजाक​में एक दुसरे को "नमन रहेगा" कहरहे हो
लेकिन क्या आपको पता है कि
नमन एक #Palindrome word भी  है !!!!!!!

ओडिआ में हम इसे  #विलोमपद शब्द कहते है
#सरस
#समास
#कटक
जैसे शब्दों से लेकर के लंबे लंबे बाक्य
जैसे
"अजा कटक जाअ"
"बणि टा कुटा कु टाणिब"

इन्हें चाहें
आगे से  बोलो या पिछे से
शब्द तथा वाक्य एक ही रहेगा....

तो पिछले दिनों
इस शब्द नें फेसबुक पर काफ़ी नाम कमाया
हालांकि tolerate /असहिष्णु  /पेटीकोट
जैसे शब्दों जितना फैमस तो नहीं हुआ लेकिन उनसे
कम भी नहीं था.....

खैर तोह  *नमन* शब्द क्यों ख़ास है आप जान ही गये होगें....

रविवार, 2 जुलाई 2017

भारत में इमली

भारत में मिठे से ज्यादा खट्टे फल दिखजाते....
आम को लोग चाहें कितना ही मिठा कह लें है तो वो एक खट्टा फल ही ...
mangifera यानी आम जाति के सभी फलों का जन्म च्युंकि भारत में हुआ
इसलिए इसे राष्ट्रीय फल का दर्जा प्राप्त है
लेकिन अकेला आम ही ऐसा खट्टा फलोंवाला वृक्ष नहीं है जो भारतीय भूभागों का मूलनिवासी रहा हो ।
Tamarindus indica यानी कि इमली भी एक मूल भारतीय वृक्ष है । युरोपिय लोग इसके अरवी नाम #तमार से इसे जानते थे जिसका मतलब होता है इंडियन डेट् ।
संस्कृत में इसके कई नाम मिलजाते है
जैसे #अम्लिका,#चूत्रिका,#चिंचिका,#चिंच,#दन्तशठा तथा #तिन्तिडि.....

संस्कृत के #तिंतिडी शब्दसे odia में #तिन्तिलि व #तिन्तुली शब्द का जन्म हुआ है
वही शब्द बाद में ओर बदलकर #तेन्तुली बनगया....
तेन्तुली से मिलता जुलता शब्द आसामीया भाषामें प्रचलित हे #चेंतुली
लेकिन ओडिआमें इसके अलावा भी इमलीका एक ओर नाम है
#कइँआ #कँया
कहते है इस शब्द का जन्म एक द्रविड़ शब्द
#पुलिकाइ से हुआ है ।
यहां पुलि शब्द लुप्त हो केवल कइ/काइ बचगया ओर बादमें वही कइ/काइ शब्द अपभ्रंश के वजह से बदलकर कइँआ या कँया हुआ ।
इस बात का सबसे बडा सबुत
आज भी तामिलनाडु में लोग इमली को #पुलि
कहते है ।
पुराने हिंदीमें चिंच तथा अम्ली शब्द पहले इमली के लिए प्रचलन में था
बादमें अम्ली शब्द अपभ्रंश होकै इमली शब्द बनगया है ।
चिंच को मराठी लोग बहुतायत में व्यवहार करते है
चिंच से मिलता-जुलता एक शब्द तेलुगु में इमली के लिए है #चिंट
वैसे तेलुगु लोग इमलीको चिंतापांडु भी कहते है 😎

द पिपल्स टैक्स

आज एक फेसबुकिए  ने 1908 में ब्रिटन संसद द्वारा पारित किए गये "द पिपल्स टैक्स" के बारे में अपना बहुमूल्य ज्ञान बांटा .....

हमारे मट्ठा दद्दा बताते है
कि इस टैक्स के लगजाने से ब्रितानी समाज ने उसका इसलिए विरोध किया च्युंकि
सरकार ने जनता पर कम् टैक्स लगाया था 😀😀😀😀

जबकी सच्चाई कुछ ओर है
इस ऐतिहासिक किताब के मुताबिक
The people's tax एक war tax था
जो जब १९०६ में लाया गया देशभर भारी बवाल मचा था ...

29 अप्रैल 1909 को डेविड लॉयड जॉर्ज द्वारा ब्रिटिश संसद में इस बजट को पेश किया गया था। तब पार्लामेंट में लॉयड जॉर्ज ने तर्क दिया था कि  "द पीपल्स टैक्स" से गरीबी को समाप्त करदिया जाएगा ।
उन्होंने कुछ इस प्रकार इसकी सराहना की:-

"This is a war Budget. It is for raising money to wage implacable warfare against poverty and squalidness. I cannot help hoping and believing that before this generation has passed away, we shall have advanced a great step towards that good time, when poverty, and the wretchedness and human degradation which always follows in its camp, will be as remote to the people of this country as the wolves which once infested its forests."
इसका हिंदी भावार्थ कुछ युं है...

यह एक युद्ध बजट है । यह गरीबी और झूठ के खिलाफ कपटपूर्ण युद्ध को खत्म करने लिए धन जुटाने हेतु लाया गया है ।
मैं उम्मीद कर रहा हूं कि इस पीढ़ी के मरजाने से पहले पहल
हम आशा कर सकते हैं कि उस अच्छे समय की दिशा में एक महान कदम उठाचुके होगें ।
ओर तब  गरीबी,नीचता और मानवीय पतन जो हमेशा अपने शिविर में होता है,वह सब लोगों से बहुत दूर होगी । ओर तब लोग याद करते हुए कहेगें  देखो हम वो भेड़िये है जो एक समय अपने जंगलों में ही पीड़ित थे ।

तीन साल तक चले बाद विवाद के बाद
House of Commons ने 1909 में इसे मंजूरी दे दी लेकिन  House of Lords ने इसे चुनावों के चलते April 1910 तक ब्लॉक कर दिया । चुनाव के बाद ये कर लागु
हो गया और १९२० तक जारी रहा ।
इस
बजट में लिबरल कल्याण सुधारों को फंड देने के लिए कई प्रस्तावित कर बढ़ने हेतु कानुन शामिल थे ।
इन करों में आम नागरिक पर  नौ पेंसे आयकर का बृद्धि  किया गया था......

£ 2,000 से कम आय वाले आय पर पाउंड (9 डी या 3.75%), जो कि आज के पैसे में £ 1, 000 के बराबर था आयकर लगा  -ओर एक शिलिंग पर  (12 डी, या 5%) की ऊंची दर £ 2,000 से अधिक की आय पर प्रस्तावित थी ,
और 6D (अतिरिक्त 2.5%) अधिभार या "सुपर कर" उनपर लगता था जो £ 5000 (£ 470,000 आज ) से या £3,000 (£280,000 ) से ज्यादा कमाते थे ।
इस कर में Succession tax या death duties भी भरने होते थे ओर इसमें
नौसेना के पुनर्मिलन पर कर बृद्धि  का प्रस्ताव भी दिया गया था ।

इब्स bill कि सबसे बडी बात जिसके लिए वर्षों विरोध हुआ वो था भूमि सुधार कानुन । इसके तहत ब्रिटिश लोगों के भूमि का पून: आवंटन होना था । तो च्युंकि कंजरवेटिव लोग जो कि देशके बडे बडे भूमिओं के मालिक हुआ करते थे इसका विरोध करने लगे ।
ओर इस तरह आम आदमी से लेकर अमीर तक हरकोई इसके खिलाफ हो गया था ।

खैर ब्रिटिश पार्लियामेंट अपने उटपटांग कर के कारण सारे विश्व में फैमस है
ये लोग एक समय स्कॉटलैंड पर विंडो टैक्स लगादिए थे
यही बात उन लोगों ने पराधीन अमरीका में करना चाहा था जो बादमें अमरीका के स्वतंत्रता का सर्वप्रथम कारण बना ....

इस विषय पर और
जानकारी के लिए विकिपीडिया में देखें

https://en.m.wikipedia.org/wiki/People's_Budget?_e_pi_=7%2CPAGE_ID10%2C7612528509

शुक्रवार, 30 जून 2017

ब्राह्मी लिपि ही भारतीय लिपियों कि मूल है

≥ब्राह्मी लिपि भातिप्रोलु लिपि में बदलकर बादमें
आधुनिक तेलुगु लिपि में बदला है

≥कन्नड भाषा कि लिपि कदम्ब लिपि से १०वीं सदी में जन्मी ओर कदम्ब लिपि ३ शदीमें ब्राह्मीलिपि से

≥तामिल लिपि भी दक्षिण ब्राह्मी लिपि से जन्मी है ओर  कदंब लिपि द्वारा प्रभावित हुई है

≥मलायलम भाषा कि बर्तमान लिपि ग्रंथ लिपि से जन्मी । दक्षिण ब्राह्मी लिपि  बदलकर पल्लव लिपि बना जिससे बादमें ग्रंथलिपि का जन्म हुआ । वहीं दुसरी ओर पल्लव लिपि से तामिल प्रभावित सिंहली लिपि  जन्मा था

≥ आजका ओडिआ लिपि १० वीं सदीके आसपास प्राचीन कलिंगलिपि से जन्मा ओर कलिंगलिपि ब्राह्मी लिपि से जन्मा है । कलिंग लिपि तथा दक्षिण के कदम्ब लिपि में काफी समानताएं देखागया है ।

≥ बर्तमान बंगाली मैथिली आसामी लिपिओं का जन्म गुप्त लिपि से हुआ है ओर गुप्त लिपि ब्राह्मी लिपि से जन्मा है

≥ ब्राह्मी लिपि बदलकर गुप्त लिपि बना उस गुप्त लिपि से नागरी लिपि का जन्म हुआ ओर देवनागरी उसी नागरी लिपि का बदला हुआ आधुनिक रुप है । इस नागरी लिपि से आधुनिक गुजराती ओर मराठी कि मोडी लिपिका जन्म हुआ था ।

≥पंजाबमें ब्राह्मी से जन्मा गुप्त लिपि बदलकर सारदा लिपि बनी, सारदा फिर लंडा लिपि में बदलकर अंततः गुरमुखी लिपि बनकर उभरी ....

≥बर्मा कि बर्मीज लिपि का जन्म
Pyu तथा Mon लिपि से हुआ ओर यह दोनों लिपिओं पर कलिंगलिपि,गुप्तलिपि,कदम्ब लिपि तथा पल्लव लिपि से प्रभावित मानेजाते है
बहरहाल बर्मीज लिपिके मूलमें भी ब्राह्मी लिपि ही है इसबात से सभी सहमत होगें !!!

≥ थाइलैंड कि आधुनिक थाई लिपि खमेरलिपि से जन्मा
खमेर लिपि पल्लव तथा कलिंग लिपि से प्रभावित है ओर इसका मूल भी ब्राह्मी को ही माना जाता है

भारतमें आधुनिक मुंडा/मुंडारी भाषा परिवार का सांताली लिपि आलचिकि (ᱟᱥᱝᱫᱷᱡᱡ) ही अकेला इकलौता ऐसा लिपि है जिसे ओडिशा में जन्में श्री रघुनाथ मुर्मू जी ने डेवलप किया था । यह भारत का अन्यतम आधुनिक लिपि है

तो जैसा कि हमने देखा
भारतवर्ष में प्रचलित बडे  भाषाएं​ ओर उनके शब्द चाहें जितने भी अलग हो जाये
लेकिन उन सभी लिपिओं का मूल ब्राह्मी लिपि ही रहा है ।

तो सभी भारतवासियों से आंतरिक निवेदन है कि वो किसी भी भारतीय लिपियों का अपमान न करें

बुधवार, 28 जून 2017

आस्ट्रोसाइटिक भाषाएं-विश्व कि सबसे प्राचीन भाषाएं----

इस देश में सेंकडो भाषाएं बोली जाती है
लेकिन उनमें सबसे प्राचीन तो द्राविड़-अनार्य भाषा परिवार के
ऑस्ट्रोसाईटिक भाषाएं हीं निर्विवादित माने जा सकते है ।
लोग आर्य भाषाओं को ही श्रेष्ठ मानते है ओर यह उनका नीजी विचार हो सकता है लेकिन
ये बात अब किसी से छिपी नहीं है कि आदिवासियों कि भाषाएं हीं इस देश की सबसे प्राचीन भाषाएं है ।

हाल ही में किये गये वर्गीकरण के मुताबिक सोम-खमेर के पर्याय बड़े हैं.... च्युंकि यह एक
महाद्वीपीय भाषा परिवार है....
इन भाषाओं को बोलने वाले अधिवासी (रेसिडेंट्स)
दक्षिण पूर्व एशिया के भारत, बांग्लादेश, नेपाल,मोरेशियस् और चीन की दक्षिणी सीमा में फैले हुए हैं।
आस्ट्रोकियाटिक शब्द मूलतः लाटिन है ओर "दक्षिण" और "एशिया" दो शब्दों के संधि से बना है ....

इसका आक्षरिक अर्थ हे "दक्षिण एशिया"।
इन भाषाओं में, केवल वियतनामी,
खमेर, और सोम में लंबे समय से स्थापित रिकॉर्ड इतिहास है, और केवल वियतनामी और खमेर में आधुनिक राष्ट्रीय भाषाओं के रूप में आधिकारिक दर्जा प्राप्त है ।
उपनिवेश स्तर पर, खासी को मेघालय में आधिकारिक स्थिति मिली हुई है जबकि संथाली,
हो और मुंदरी झारखंड की आधिकारिक भाषा हैं जिसमें सांताली भाषा भारतीय संबिधान के आधिकारीक २२भाषाओं में भी सामिल है....

वहीं
म्यामांर में, Wa भाषा को वहां के Wa राज्त में आधिकारिक दर्जा प्राप्त है ।  बाकी अस्ट्रोसाईटिक भाषाएं अल्पसंख्यक समूहों द्वारा बोली जाती हैं और उनको आधिकारिक स्थिति नहीं मिली है....

भाषाविदों​को अबतक १६८  Austroasiatic भाषाओं के बारे में पता है जो कि १३ निर्विवादित उपपरिवारों में बंटे हुए है (कुछ भाषावि १४वां उपपरिवार के तौर पर Shompen को भी जोडते है ),
निम्न में उनके नाम इस प्रकार है:-
•Munda
•Khasi – Palaungic
•Khmuic
•Pakanic
•Vietic
•Katuic
•Bahnaric
•Khmer
•Pearic
•Nicobarese
•Aslian
•Monic
ओर
•Shompen ।।।।।।।

वैसे सांस्कृतिक नियमानुसार यह भाषाएं २ उपपरिवारों में विभक्त किये जाते रहे है
१=>सोम-खमेर और
२=>मुंडा
हालांकि, एक हालिया वर्गीकरण के हिसाब से तीन समूह है -मुंडा, मोन-खमेर और अन्य...... 
ज्यादातर भाषाविद इस बात से एकमत हे कि
ऑस्ट्रोआशियाटिक भाषाओं का मूलभाषा भारत में ही जन्मा था जो बादमें माईग्रेसन के वजह से​ बांग्लादेश, नेपाल और दक्षिणपूर्व एशिया में फैला था....
अश्ट्रोसाईटिक भाषाएं बोलनेवाले
प्राचीन अधिवासी च्युंकि अपने पड़ोसी इंडो-आर्यन, ताई-कदई,चीनी-तिब्बती,द्रविड़ियन, ऑस्ट्रोनियन, और दक्षिण पूर्व एशिया की स्वायत्त भाषा के से प्रभावित हुए है अतः आज इनमें काफी पारस्परिक अंतर आ गया है फिर भी मूल शब्द मिल ही जाते है ....

(क्रमशः)