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मंगलवार, 2 जून 2015

पिँजौर ....

शिवालिक पर्वतमाला अंचल मेँ स्थित पंजपुरा क्षेत्र को अज्ञातवास हेतु पांडव बंधुओँ द्वारा चयन किया गया था । पंजपुरा उन दिनोँ मत्स्य देश के अंतर्गत पड़ता था .यहाँ राजा विराट का राज चलता था ।
पांडवोँ ने पंजपुरा को अज्ञातवास के लिये चयन तो कर लिया परंतु दुविधा ये थी कि 1 वर्षतक दूर्योधन के गुप्तचरोँ से कैसे छुपाजाय किसी को उनपर संदेह न हो । अंत मेँ युद्धिष्ठिर नेँ छद्म रुप से नाम व भेष बदलकर विराट नगर मेँ एक वर्ष का समय व्यतित करने का सुझाव दिया । सभी नेँ इसपर मोहर लगा दी और इसतरह पांडव विराट नगर मेँ अज्ञातवास का 1 वर्ष बिताने लगे ।

महाभारत का यही पंजपुरा कालान्तर मेँ पंचपुरा बना और फिर अपभ्रंष हो कर के पिँजौर Pinjore बनगया । बर्तमान भारत मेँ पिँजौर हरियाणा राज्य कि पंचकुला जिल्ला मेँ आता है ।
पांडवो द्वारा प्रायः 300 से भी अधिक बावड़ीयोँ का निर्माण किया गया था । जनश्रुति है कि पांडव बंधु प्रतिदिन एक बावड़ी का निर्माण करते थे, यहाँ आप भीम द्वारा बड़े बड़े पत्थरोँ को रखा हुआ देख सकते है ।

पिँजौर मेँ मंदिरोँ के अलावा एक मस्जिद और गुरुद्वारा भी है ।
पिँजौर गुरुद्वारा का निर्माण महाराजा रणजीत सिँह ने करवाया था ।

1574 विक्रमी उदासी तिसरी मेँ सिखोँ के पहले गुरु श्रीगुरुनानक देवजी भी पिँजौर आए थे । उस समय यहाँ घनघोर जंगल था । गुरु साहिब ने धारामंडल बैठकर आराधना की थी और गुरु ग्रंथ साहिब के श्लोक लिख लिख पढ़िया तेता काढ़िया का उच्चारण किया था । कहा जाता है कि यहाँ की एक बावड़ी मेँ गुरु साहिब ने राजा भुआणा जिसके जन्म से ही कलाई तक हाथ थे ,को हाथ धोकर आने को कहा था और राजा भिआणा के हाथ भले चंगे हो गे थे ।

पिँजौर मेँ राजस्थानी व मौगली कलाओँ के मिश्रण से बना पिँजौर गार्डेन का मोगल काल के प्रकृतिप्रेमी सरदार फिदेई खाँ द्वारा बनाया गया था ।
हालांकि इसी गार्डेनवाली जगह पर 1030 तक एक उद्यान हुआ करता था जो बादमेँ रखरखाव कि कमीओँ के कारण कदावर दिखने लगा था ।
फिदेई खाँ द्वारा 1672 से 1675 तक इसे नेया रुप दिलवाया गया । इसके अलवा पिँजौर एचएमटि[ the Hindustan Machine Tools]फैक्टरी के लिये भी भारत भर मेँ जाना जाता है ।