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शनिवार, 28 मार्च 2015

भारतीय परेट मेँ ज्यादातर प्रोटोकल अंग्रेजोँ से प्रेरित है

भारत मेँ स्वतंत्रता दिवस व गणतन्त्र दिवस जैसे खास मौकोँ पर परेट मेँ जो प्रोटोकल होता है उसमेँ से ज्यादातर व्रिटिश परंपरा से प्रेरित है । व्रितानी सेना कि यह प्रोटोकॉल युनानीओँ को देखकर बनाया गया था ।
‪#‎ वायाँ_पैर_पहले‬Left right left
*भारतीय संस्कृति मेँ गृह प्रवेश जैसे शुभ अवसर पर दाँये पैर पहले रखाजाता है पर सेना मेँ वायाँ पैर , इसलिये लेफ्ट राईट लेफ्ट शब्द प्रचलित हुआ है ।
‪#‎ चियर्स‬और ‪#‎ टोस्ट‬
* भारतीय नौसेना से कोई उच्च अफिसर अथवा नौसेना चीफ किसी पार्टी मेँ सामिल होते हुए गर उन्हे ड्रिक लेना होता है तो आम सैनिक जमीन मेँ बैठकर ड्रिँक लेकर उनका सम्मान बढ़ाते है । मूल रूप से यह परंपरा भी व्रिटिशरोँ कि देन है । इस विषय पर
कहाजाता है कि किँग जोर्ज 4 अपने नौसेना से मिलने जब विशालकाय जहाजोँ मेँ जाते थे तब सैनिक उनके सम्मान मेँ खड़े होकर खाली प्याली उँचा दिखाते । तब किँग उन्हे कहते कि आप लोगोँ को युँ खड़े होने कि जरुरत नहीँ , तुम्हारी वफादारी पर मुझे पुरा भरोसा है । इसतरह यह चियर्सवाली परंपरा ब्रिटिस सेना मेँ शुरुहुआ ।
#टोस्ट
किँग जॉर्ज 4थे जब एकबार जहाज मेँ सैनिकोँ से मिलने आ रहे थे तब उनका सिर जहाज कि एक रुम कि प्रवेश द्वार पर जोर से टकरागया ! वह वेहोश हो गये थे ! थोड़े स्वस्थ होने पर जमिन पर बैठकर हि उन्होने सैनिकोँ से बातचीत कि ! अब राजा के आगे भला सैनिक कैसे बैठ सकते थे ? पर राजा के बोलने पर वो भी जमिन पर बैठ गये ! उस दिन ब्रिटिस सैन्य किसी भी उच्च अधिकारी के आनेपर जमिन पर बैठकर टोस्ट करता है !!!
*मरुन रंग कि हेट
मरुन रंग सेना कि रंग नहीँ मानाजाता पर भारतीय हवाई दल के पेराशुट जवान मरुन रंग कि केप पहनते है ।
‪#‎ सर_फेड्रीक_व्रा उनीँग‬
ने ब्रिटिस शासन के समय भारतीय सेना से खास सैन्योँ को चुनकर हवाई दल बनाया था ! नोर्थ आफ्रिका मेँ जब वह अपने जवानोँ को साथ गये थे उन्होने देखा कि उन जवानोँ मेँ जोश कम था ! उन्होने जब इसबात का जिक्र अपनी बीवी जानीमानी औपनैसिक
‪#‎ केफेने_दु_मोरीअ र‬
को बताया उन्होने मरुन रंग कि सिफारिस कि ! ब्राउनिँग ने ऐसा हि किया
और उसदिन से आजतक इस जथ्था नेँ कई जंगोँ मेँ अपने जोश का पदर्शन किया !
आज हेट की जगह कैप नेँ ले ली पर रंग तो मरुन ही है !
‪#‎ सलाम‬सल्युटवाली परंपरा
सल्युट करनेवाली पद्धति के बारे मेँ बहुत कम लोग हि जानते होगेँ ! सलाम यह बताने के लिये कियाजाता है कि सलाम करनेवाला राजा या मुख्य अतिथी का वफादार है ! सैनिक अपने हाथ दिखाता हे वह बिना शस्त्र के होता है और वो सल्युट करते हुए प्रमाण करता है कि वो मुख्य अतिथी तथा राजा के हमलावरोँ मेँ से नहीँ है ।
नौसेना मेँ सैनिक सलाम करते समय एक हाथ पीठ पिछे कर देते है !
राजा के जमाने मेँ जहाज पर हमेशा काम चलता रहता था ,जवानोँ के हाथ मेँ ग्रीस ,कालादाग और तेल जैसी चिजेँ लगकर गंदा हो जायाकरता था ! अब राजा और दुसरे राजकर्मचारीओँ को गंदे हाथ न दिखाने के लिये वायाँ हाथ पीठपिछे छुपादिया जाता था
! नौसेना के सैनिक आज भी ऐसे ही सलाम करते है ।
‪#‎ अलग_अलग_रेजिमेँ ट‬
ब्रिटेन मेँ प्राचीन कहावत है कि सैनिक कभी देश के लिये नहीँ लढ़ा करते ! वे अपने रेजिमेँट ,वटालियन ,कंपनी ,प्लाटुन अथवा अपनेदल के मुख्य के लिये लढ़ता है और मरजाता है । इसलिये ब्रिटिस सेना मेँ अलग अलग रेजिमेँट बनाया गया ! जबकी भारतीय सैनिक प्राचीनकाल से अपने देश ,मातृभूमिके लिये लढ़ते आ रहे है । और आज हमारे सेना मेँ यह रेजिमेँटवाली संस्कृति घुसगया है ।
कुछ और ब्रिटस सैन्य परंपरा भी है जो आज भी हमारे भारतीय सेना मेँ पायाजाता है ।
जैसे
1. प्रधानमंत्री को 100 और अन्य अधिकारीओँ को 50 सैनिक गार्ड अफ ओनर देते है
2.एयरफोर्स कि सैन्य भोज मेँ उच्च अफसरोँ के भोजन करने व घर लौटने के बाद कोई सैनिक मेस छोड़ सकता है ।
3.परेड मेँ बिना शस्त्र के मार्च करनेवाले एकमिनिट मेँ 116 और बंदुक के साथ परेट करनेवाले एक मिनिटमेँ 120 कदम चलते है ।
4.कर्नल और अन्य उच्च अधिकारी गले मेँ कोई हमला न करेँ इसलिये लाल रंग के मफलर बांधते है , इस मफलर को गार्जेट पेचीस कहते है ।
5.गढ़वाल और गुर्खा राईफल्स जवान डवल फेल्ट हेट लगाते है ।
6.रेजिमेँट का कमर पट्टा का रंग भी अलग अलग होता है

नेहरु का पंचशील नीति विफल होना भारत को भारी पड़गया ।

नेहरू चीन से दोस्ती के लिए बहुत ज्यादा उत्सुक थे । वे चीन को खुश करने के लिए
कई तरह के उपाय कर रहे थे । नेहरू ने 1953 में अमेरिका की उस पेशकश को ठुकरा
दिया था, जिसमें भारत से सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल होने
को कहा गया था । इसकी जगह नेहरू ने चीन को सुरक्षा परिषद में शामिल करने की
सलाह दे डाली थी । अगर नेहरू ने उस पेशकश को स्वीकार कर लिया होता तो कई दशकों
पहले भारत सामरिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहद मजबूत देश के तौर पर उभर
चुका होता । आज भारत को सुरक्षा परिसद मेँ स्थायी सदस्यता के लिये कभी अमेरिका तो कभी G समूह राष्ट्र तथा युरोपियन राष्ट्रोँ को मनवाना पड़रहा है और यह अत्यन्त दूर्भाग्यपूर्ण है । हालांकि
नेहरू चीन की शातिराना चालों को पढ़ने में नाकाम रहे । उनके ज्यादातर मंत्री अयोग्य थे और इस बात को बिके मेनन जैसे रक्षामंत्री के भारतीय शस्त्रागारोँ को बंदकरने ,भारत चीन सीमा सेना वापस लाने जैसी आदेश देने से प्रमाणित होता है । चीन के साथ विवादों को
सुलझाने के लिए भले नेहरुने 'पंचशील' समझौते के तहत तिब्बत पर चीन के हक को
मंजूरी भी दी थी पर नेहरू का चीन पर भरोसा भारत पर बहुत भारी पड़ा । 1962
में चीन ने भारत पर हमला बोल दिया । आज़ादी के बाद भारत आज तक सिर्फ एक लड़ाई
हारा है । यह वही जंग थी, जिसमें भारत को नीचा देखना पड़ा। नेहरू का हिंदी चीनी
भाई-भाई का नारा किसी काम न आया और चीन के साथ जंग में बड़ी संख्या में भारत
ने अपने वीर सपूत खोए । कितने हि माताओँ बहनोँ ने नापाप्रदेश मेँ अपना इज्जत गबाया । आखिर मेँ शेषभारत के नारीओँ ने जब देखा भारत हार रहा है ,उन्होने अपने अभूषणोँ को सरकार को दान दिया ताकी उस सोने के बदोलौत भार गोलावारुद खरिद सके । भारत के पलटवार से चीन को समझ आया कि भारतीय झुकनेवाले नहीँ है वो आखरी दमतक लढ़ेगेँ । तब अंतराष्ट्रिय दवाब के आगे झुककर चीन नेँ युद्ध खत्म कि घोषणा यह करते हुए कि की तिबत्त और बाकी जीतेगये हिस्से पर अब उसका कब्जा है और भारत के इस कमजोर प्रधानमंत्री ने वजाय लढ़ने के इसे स्विकार कर लिया तब जब हमारे सैनिक जीत रहे थे । 1954 से चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने
तिब्बत में अपने विस्तार का जो सिलसिला शुरू किया, वह आज भी जारी है । दुनिया की छत कहे जाने वाले तिब्बत में चीन के खिलाफ आंदोलन आज भी चल रहा है।
तिब्बत में चीन के पांव पसारने का नतीजा यह हुआ है कि आज उसके हौसले बुलंद हैं
और वह न सिर्फ गाहे ब गाहे वास्तविक नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर रहा है बल्कि
अरुणाचल प्रदेश को तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा बताता है। नेहरू की वह गलती आज
भारत पर बहुत भारी पड़ रही है और भारत को चाहिये की वो चीन जैसे दोगले देशोँ को उन्ही के अंदाज मेँ जवाब देँ तब इनके अक्ल ठिकाने आयेगी ।

बंदे मातरम् प्रथम आंतरीक प्रहार मुस्लिम लीग ने किया था

वंकिम चंद्र चेटर्जी कि ऐतिहासिक नवलकथा आनन्दमठ से लिया गया प्रसिद्ध बंदे मातरम गीत भारतीयोँ के लिये केवल मात्र एक गीत नहीँ है अपितु मातृभुमि की प्रेम मेँ स्वयं को ओतप्रोत कर लेनेवाली शक्ति है । बंदे मातरम से प्रेरित होकर ओडिआओँ ने बंदे उत्कल जननी नामक गीत की रचना की और यह भी ओड़िशा राज्य मेँ काफी मशहुर हुआ था । परंतु व्रिटिस राज को वंदेमातरम शब्द से नफरत था और इसलिये 1905 मेँ पूर्व बंगाल के लेफ्टनेँट गवर्नर नेँ एक आदेश जाहिर करते हुए कहा था कि बंदे मातरम कोई उच्चारण न करे ऐसा करना अपराध है । परंतु प्रथम वक्त इस राष्ट्रगीत पर आँतरिक प्रहार 1923 मेँ कंग्रेस का काकीनाडा अधिवेशन मेँ हुआ । सुप्रसिद्ध गायक विष्णु दिगंवर पलुस्कर कंग्रेस के उद्घाटन अधिवेशन मेँ बंदे मातरम गीत गाने के लिये मंच पर जाने लगे तो उनको अधिवेशन अध्यक्ष मौलाना मोहम्मद अलीनेँ रोक कर कहा कि इस्लाम मेँ संगीत बर्जित है इसलिये वो यहाँ गीत गाने के लिये अनुमति नहीँ देगेँ । समग्र सभा स्तभ्ध हो गया पर पलुस्कर टस् से मस् न हुए ,मौलाना को उन्होने कडक शब्दोँ
मेँ कहा कि भारतीय जातीय कंग्रेस पर किसी संप्रदाय विशेष का जागिर नहीँ चलता । ये स्थान कोई मसजिद भी नहीँ है कि कोई मुझे इस गीत को गाने के लिये रोक सकता है और न ही आपके पास ऐसा अधिकार है कि आप मुझपर धौँस जमाये । गीत गाया गया और उसी दिन से पाकिस्तान का विजरोपण हो गया । ये मौलाना मोहम्मद अली खिलाफत आंदोलन के अग्रज नेता थे और मुस्लिम लीग बनानेवाली विचारधारा के जनक भी । इस घटना के बाद अग्रेँजोँ को मुस्लिम लीग को अपने तरफ करने का मौका मिलगया और लीग को आर्थिक सहायता करनेवाला सत्ता । अब कंग्रेस के लिये बंदे मातरम रास्ते का काँटा बनचुका था क्युँकि मुसलमानोँ को अपने साथ करना था । जो कंग्रेस अंग्रेजोँ के लाठी गोली से कत्लेआम से नहीँ डरी थी उसके पाँव लीग के सामने बंदेमातरम को लेकर डगमगाने लगी । आखिरकार कंग्रेस लीग के आगे झुकगया और मुसलमानोँ को राजी करने के लिये उसे "सारे जहाँ से अछा हिन्दोस्तान हमारा" राष्ट्रिय गीत बनाना पड़ा । पाकिस्तान के जनक महम्मद इकवाल नेँ यह गीत लिखा था । पाकिस्तान बनने पर इन्होने एक और गीत लिखा था "मुस्लिम है हम वतन है सारा जहाँ हमारा " । 1937 मेँ कंग्रेस प्रान्तिय विधानसभा चुनाव मेँ विजयी हुआ और परंपरा के अनुसार कामकाज कि शुरुवात वंदेमातरम् कि जयनाद के साथ शुरु हुआ । अब लीग के सभ्योँ को यह बात खटक गई और उन्होने इसे मुद्दा बनाकर हंगामा पर उतर आये । लीगवाले कंग्रेस शासित राज्योँ को हिन्दुराज्य कहने लगे जैसे आज बिजेपी के साथ हो रहा है । लीग नेँ अपने कार्यकर्ताओँ के लिये फरमान जाहिर किया कि कोई भी सदस्य इस बंदेमातरम् गीत से कोई सबंध न रखे । अब कंग्रेस को डर सताने लगा जो अबतक कायम है कि अंग्रेज हिन्दु मुस्लिम एकता के बीना भारत को सत्ता न सौँपे तो ?
तो कंग्रेस ने मुस्लिम तुष्टिकरण के लिये बंदेमातरम् को राष्ट्रगान कि पदवी से हटाकर अन्य गीतोँ के श्रेशीओँ मेँ ला खड़ा किया और बंदेमातरम् कविता से केवल पहले चार पंक्तिओँ का गाया जाय लोगोँ से इसतरह कि अनुरोध किया गया । बर्तमान भारत मेँ कंग्रेस मुस्लिम लीग का रोल निभा रहा है और बिजेपी पराधीन भारत कि उस वेवश कंग्रेस कि तरह बर्ताप करने लगा है । समय आ गया है कि हम भारतीय हिन्दुओँ को अपने सभ्यता संसकृति को बचाने के लिये बड़े कदम उठाने होगेँ अरबी संस्कृति प्रेमीओँ को गर भारतीय संस्कृति सभ्यता से दिक्कतेँ आ रही है तो वे अरब चले जाय अथवा पाकिस्तान या बंगलादेश । नागफनी का वर्षावन मेँ जीवन व्यतित करना आसान कहाँ है ???

केड cade बनगया केक cake :-

ब्रेड मेँ वेराईटी तो था पर उसमेँ स्विटनेस या मिठास कि कमी थी ।
उन दिनोँ इटालियन मूल कि केड अमरिका मेँ नयी नयी स्थायी हुई थी । वो अकसर व्रेड को लेकर किचन मेँ प्रयोग करती रहती थी । उसकी बेटे को ब्रेड बड़ा पसंद था । एक दिन उसने ब्रेड मेँ अलग तरह का Sweetness मिलाया । यह मिठा ब्रेड़ केड की बैटे को पसंद आया । वह अब रोज रोज इसे नास्ता के लिये स्कुल ले जाता था । उसके दोस्तोँ ने जब इसे खाया तो उन्हे भी वह मिठा ब्रेड अछा लगा । कुछ ही दोनोँ मेँ समुचे स्कुल मेँ यह मिठा ब्रेड ,केड के नाम से मशहुर हुआ । धीरे धीरे स्कुल के छात्रोँ कि माँओँ ने केड को उसके इस अनोखे मिठा ब्रेड का रेसिपी देने के लिये रिक्वेस्ट करना शुरुकिया । केड नेँ भी लोगोँ को रेसीपि बतादिया । उसने कभी भी इसको छुपाने कि कोशिश न की । उसकी इस विनर्मता के वजह से लोगोँ ने इस मिठे ब्रेड को केड के नाम से ग्रहण किया । आगे चलकर केड शब्द अपभ्रंश हो कर केक बनगया और आज उसे इसी नाम से जानते है ।
(एक italian ब्लॉगर के लेख से)
"EXTRA SHOT"
केक के नामकरण को लेकर अक्सफोर्ड डिक्सनारी और विकिपिडिया कहता है कि
Cake शब्द मूलतः नोर्स भाषा से आया है । नोर्स मेँ ब्रेड के लिये एक शब्द है KAKA जाहिर है यह केक नहीँ है ।
ऐतिहासिकोँ कि माने तो दुनिया मेँ सबसे पहला केक इजिप्ट मेँ बना था परंतु वो बर्तमान के केक से बिलकुल भिन्न था अतएब मुझे इटालियन ब्लॉगर कि बात मेँ सच्चाई दिखा ।

देवी का रात्रभ्रमण

एक गाँव मेँ एक देवी को लोग प्रत्यक्ष मानाकरते थे । देवी अपने भक्तोँ को अपनी दिव्य शक्तिओँ का आभास किया करती थी । देवी के पास हर तरह का बलि दिया जाता था , परंतु वर्ष मेँ केवल एक दिन को छोड़कर बाकी दिनोँ मेँ देवी को उनके भक्त बड़े भक्तिभाव से फल और बिभिन्न प्रकार के शाकभाजी आदि को भोग लगाने के लिये अर्पण किया करते थे ।
देखते देखते 20वीँ सदी खत्म हुआ और 21वी सदी के 2005 साल मेँ उसगाँव मेँ देवी नेँ अपना प्रत्यक्ष चमत्कार दिखाना शुरुकरदिया । अब लोगोँ के खेत और बाड़ी से शाकसब्जी अपने आप गायब होनेलगा और हर रोज सुबह देवी मंदिर के निकट सब्जी का बचाहुआ अदरकारी अंश गिराहुआ पायाजाता था ।
रामुकाका जो देवी के बड़े भक्त थे गाँव मेँ इसे देवी का चमत्कार कहते फिर रहे थे ,उन्होने लोगोँ को यकिन दिलादिया था कि यह सब देवी हीँ कर रहीँ है ।
देखते देखते एक वर्ष बीतगया , गाँव मेँ रोज रात को चमत्कार होता था ,ज्यादातर लोग देवी के रात्रभ्रमण करनेवाली बात करने लगे थे । रात 8 बजे के बाद उस छोटे से गाँव मेँ एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता था । फिर एक रोज एक अजीब सा घटना घटा, रात का वक्त था ,गर्मीओँ के दिनोँ मेँ भी लोग देवी के डर से घर मेँ सो रहे थे । उसदिन रात को ठिक 1 बजे किसी औरत की और फिर एक मर्द के चिल्लाने कि आवाज आयी । उस छोटे से गाँव मेँ वो आर्त्तनाद किसी भयानक गर्जना कि तरह प्रतीत हो रहा था ,,,कुछ लोग हिम्मत करते हुए आवाज आ रहे दिशा कि और बढ़ने लगे ।
उन्होने देखा कि देव राय काका के घर के पश्चिमी दिशा मेँ लाल रंग कि साड़ी पहनी हुई कोई औरत बुत बनकर खड़ी हुई है ।
इससे पहले कि लोग उस औरत के बारे मेँ अपना राय बनाते ,
उनकी नजर निचे वेहोश हुए एक व्यक्ति पर पड़ा ! हालांकि लोग अब डरे हुए थे , वो उस औरत को देवी मानने लगे थे । तो कोई भी उन दोनोँ के नजदिक जानेँ के लिये तैयार न था !!!
फिर रामसरण काका वहाँ आये, वो बड़े निर्भिक नीडर व्यक्ति थे । उन्होने नजदिक जा कर देखा कि वो औरत कोई और नहीँ देव राय कि पत्नी है और निचे गिरा हुआ व्यक्ति जो उस घर के दिवार के निकट सुरंग बनारहा था ,पड़ोशी गाँव का सुखवंतलाल था ।
देवराय जी के मित्र होने के कारण रामसरण काका नेँ देवरायजी की पत्नी का बचाव करते हुए कहा "गाँववालो
भगवन जो कुछ भी करता है अपने भक्त द्वारा करवाता है । देवीनेँ देखा कि हमलोगोँ ने कई सदी तक उनका सेवा बड़े हर्श उल्लास के साथ किया । अतएब देवी आपको कष्ट न हो इसलिये हर रात आपके बाड़ी से साक सब्जिओँ के ले जाती थी । अब देवी का तो अपना शरीर है नहीँ तो उस ज्योतिर्मयी ने इस पवित्र नारी को अपने पवित्र कर्म के लिये एक जरिया बनाया ।
अब क्या था गाँव के लोग उस देवी की स्तुति गान करने लगे ! धूप नैवेद्य से गगन पवन सुबासित हो गया कल तक जहाँ देव राय लघुशंका करते थे वो रातोँरात एक पवित्र स्थान बनगया ।
दो चार दिन के बाद जब मेँ रामसरण काका से मिला और इस बारे मेँ पुछने पर असल बात पताचला ।
देव राय जी के पूर्वज कभी गाँव के जमिदार हुआ करते थे परंतु अंग्रेजोँ के चलेजाने के पश्चात गरीबी नेँ उनके वंश को निगल लिया । जैसेतैसे करके देव राय नेँ एक सरकारी नौकरी कर ली थी जिसके वजह से गाँव मेँ उनका कुछ इज्जत बचपाया था । अब च्युँकि उन्होने अपने जीवन मेँ गरीबी को नजदिक से देखा था महशुश किया था वो वक्त के साथ साथ थोड़े लालची हो गये थे । मातापिता के स्वर्गवास के बाद वो नित्यान्त अकेले हो गये और घर के कामकाज मेँ उनका मन नहीँ लगता था । ऐसे मेँ पिछले वर्ष उनका विवाह संपन्न हो गया और उस नववधू नेँ शाक सब्जी के लिये 1 वर्षतक देवी का नाटक खेला ।
उस रात को जब देवराय कि पत्नी सब्जी चुराकर लौट रही थी उसने एक आदमी को अपने घर के नजदिक सुरंग खोदते देखा और डरकर वहाँ स्तभ्ध हो खड़ी होकर रहगयी थी ।
उस रात के बाद उस गाँव मेँ
लोगोँ के हावभाव मेँ एक बदलाव देखागया ।।
लोग अब चैन कि निँद शोने लगे
च्युँकि उस कस्बे का सबसे बड़ा चोर जेल मेँ था और गाँव के प्रत्यक्ष देवी नेँ रात्रभ्रमण करना छोड़ दिया था ।

ये लाइमलाइट क्या है ?

सामान्यतः कोई अगर लगातर काम करते रहता है या चर्चा मेँ रहता हो तो कहाजाता है कि आजकल यह व्यक्ति बड़े लाईमलाईट/LIMELIGHT मेँ है ! अब लाइम या नीम्बु और लाईट यानी रोशनी का भला आपस मेँ क्या लेनादेना ? क्युँ न इसे ओरेजंलाइट या ऐपललाइट न कहजाय !!लेकिन अगर आप लाइमलाइट के बदले ऑरेँजलाईट और ऐपललाईट बोलेगेँ तो ग्रीस के राजा व थियटरका खोज करनेवालोँ को बुरा लगजायेगा । ये उनका अपमान करने जैसा होगा परंतु क्युँ ?
लाईमलाईट शब्द 1825मेँ ग्रीस मेँ खोजा गया था या युँ कहे प्रचलन मेँ लाया गया था । अब उन दिनोँ हर रोज शाम को मनोरंजन के लिये नाटक का आयोजन कियाजाता था और रात होने से पहले पहल नाटक खत्म करदियाजाता था । 1825 मेँ चुना कि सिलिण्डर से आग और आग से प्रकाश उत्पन करने कि कोशिश कियागया । ये प्रकाश स्टेज पर गिरया जाता था और इसे काफि लोगोँ ने पसंद किया । इसे लोगोँ ने लाईम लाईट नाम दिया !
इस लाइमलाइट इफेक्ट को 1820 मेँ Goldsworth y Gurney नेँ खोजा था ।
सामान्य रूप से रॉबर्ट हरे को भी इसे खोजने का क्रेडिट दियाजाता है खासकर उनके "ऑक्सी हाइड्रोजन नाल," के साथ अपने काम के आधार पर।
1825 में, एक Scottishengineer, थॉमस ड्रमंड (1797-1840), माइकल फैराडे द्वारा इस आशय का एक प्रदर्शन को देखा और उन्होने इसे अधिक खोज के लिये उत्कृष्ट पाया । Drummond नेँ इसमेँ एक उपयोगी और महत्वपूर्ण बदलाव 1826 मेँ किया और इस वजह से कभी कभी इसे Drummond Light भी कहाजाता है । जनसाधारणोँ के बीच इसका सर्ब प्रथम उपयोग
Herne Bay Pier, Kent पर 3 October 1836 रात को किया गया था । उसदिन इसे magician Ching Lau Lauro द्वारा मैजिक दिखाने के लिये उपयोग किया गया था ।

मुस्लिम लीग भारत के लिये आस्तिन का साँप था......

पराधीन भारत मेँ मुस्लिम लिग भारत के लिये आस्तिन के साँप जैसा था । कट्टरवादी मुस्लिम इस संस्था या दल को अपने हितैशी समझने लगे च्युँकि ये लोग हमेशा से हिन्दु स्वार्थ के खिलाफ बोलते थे ।
इसी क्रम मेँ मुस्लिम लीग नेँ हिन्दीभाषा पर अंकुश लगाना शुरुकरदिया । लीग हिन्दी को हिन्दु आधिपत्य का प्रतिक मानने लगी । लीग ने यहाँतक कहदिया कि अगर कंग्रेस उर्दु को राष्ट्रभाषा के तौर पर मान्यता देगा तो हम कंग्रेस को साहयता करेगेँ । सभी कट्टरवादी नेताओँ नेँ उर्दु के सम्मान मेँ नया कहावत या मुहावरा बना लिया था "ये उर्दु का जनाजा है जरा शान से निकालेँ" । हिँदी के विरोध मेँ ये लोग उर्दु के नामपर समाजिक दिवार खड़ाकरने कि कोशिश करने मेँ लगगये थे । जबकि हकीकत यह था कि उर्दु फार्सी भाषा से प्रभावित हिन्दी थी , उर्दु हिन्दु या मुसलमानोँ कि अधिकार कि चीज नहीँ है । उर्दु शायरोँ कि नजाकत एबं नफासत भरी शैली को पल्लवित और पुष्पित करने के लिये हिन्दु विद्वानोँ नेँ खुब खुब सहयोग दिया था । वहीँ कई मुस्लिम लेखकोँने अपने कृतिओँ मेँ संस्कृत निष्ठ
हिन्दी का उपयोग किया था । इस भाषाई लढ़ाई मेँ एकबार फिर कंग्रेस को झुकना पड़ा । समझौता हुआ हिन्दी एबं उर्दु के शब्द भंडार को मिलाकर हिन्दोस्तानी नामक एक नयी दोगली खिचड़ी माषा का प्रस्ताव रखागया और कंग्रेस नेँ इसे स्वीकार करलिया ।
माध्यम गर वर्णसंकर बनजाय तो फिर इस माध्यम के द्वारा दियाजानेवाला निज संस्कृति का परिचय भी दूषित हो जाता है ।
बालकोँ के लिये नवकल्पित
हिन्दोस्तानी पाठ्यपुस्तकोँ मेँ श्रीराम ,वादशाह राम बनगये और सीताजी वेगम सीता कहलायी । लक्षण शाहजादा लक्षण एबं मुनि वसिष्ठ मौलाना वसिष्ठ बनादिये गये । हिन्दी को विकलांग बनाने कि कोशिश मेँ लीग लगभग सफल हो गया पर ऐसा करते हुए उसने अनजाने मेँ RSS नामक राष्ट्रवादी संघ के जन्म का कारक बना । वो बच्चे जो इन पाठ्यपुस्तकोँ के बदलने पर परेशान थे आगे चलकर उनसभी नेँ मिलकर राष्ट्रिय स्वयं सहायक संघ बनाया और आजतक इन दोगले लोगोँ के फिलाफ लढ़ रहे है ।

बिच्छुओँ पर कुछ रोचक तथ्य

==> विश्वभर मेँ बिच्छुओँ का लगभग 1570 प्रजाति पायी जाती हे और उन मेँ से केवल 25 प्रकार के बिच्छु हि जहरीले होते है । अबतक 11 प्रजातिओँ का जीवास्म भी मिला है जो लुप्त हो चुके है ।
==> ज्यादातर जहरीले बिच्छु मेक्सिको ,ब्राजिल ,उत्तर अफ्रिका , भारत जैसे वर्षावन एबं उष्ण कटिवंधीय क्षेत्रोँ मेँ पाये जाते है ।
==> बिन-जेहरी बिछुओँ के काटने से मधुमक्षी के ड़ंक से कम पीड़ा होता है ।बिच्छु के जहर मेँ पायाजानेवाला रसायन
को आजकल कैँसर के दवाओँ मेँ इस्तेमाल किया जा रहा है ।
==> Antarctica ,ocenia , और न्युजिलैँड के अलवा यह दुनिया के हर कोने मेँ पायेजाने लगे है । मध्ययुग तक इंलण्ड मेँ भी बिच्छु नहीँ थे ,
==> बिच्छुओँ का सर्वपुरातन जीवास्म 430 Million वर्ष पूर्व Silurian era का है बताया जाता हे ।
==> आम तौर पर बिच्छु गर्म तापमान मेँ रहना पसंद करते है पर इन्हे साईवेरिया और कैनेडा मेँ भी देखा गया है ।
==> एक मादा बिछु एक बार मेँ 30 से 100 बच्चोँ तक को जन्म दे सकती है । माँ के पिठ मेँ एक माह तक घुमने के बाद चलने लायक हो जाते है ।

पश्चिम कि मशहुर लवष्टोरी

पश्चीम की मशहुर लवष्टोरी !!

==> 1936 मेँ इंलण्ड के राजा एडवर्ड 8 नेँ राजगद्दी छोड़ते हुए कहा था "मेँ ये राजगद्दी छोड़रहा हुँ क्युँकि मेँ जानता हुँ जिस स्री से प्रेम कर रहा हुँ उससे मेरी शादी होनेवाला है और ये दोनोँ बात एक साथ इंलण्ड मेँ होना संभव नहीँ । राजा एडवर्ड 8 कि प्रेमिका अमेरिकन महिला वेलिस सिम्पसन थी और उनका इससे पहले दो बार तलाख हो चुका था । ये प्रेम प्रकरण की चर्चा उन दिनोँ पुरे युरोप और अमरिका मेँ छाया हुआ था । 1972 मेँ एड़वर्ड की मौत होने तक इस प्रेमीयुगल नेँ फ्राँस मेँ वक्त गुजारा था ।

==> रोमन साम्राज्य का सेनापति एन्टोनी एबं इजिप्त की महारानी क्लियोपेट्रा के बीच युद्ध हुआ था । परंतु सिजर के मृत्यु पश्चात उन दोनोँ के बीच प्यार हो गया था । उनदोनोँ ने साथ अत्महत्या की और उनके इस दर्द भरी गाथा से प्रेरणा लेकर सेक्सपियर नेँ करुण नाटक लिखा ।

==> हलिवुड़ हास्यकलाकार ज्योर्ज र्न्स और ग्रेसी एलेन 1922 मेँ एक दूसरे से मिले ,1926 मेँ शादी की और 40 वर्षतक साथ रहे । इस हास्यकलाकार जोड़ी नेँ रेडिओ टेलिविजन , फिल्मोँ मेँ कामकिया और करोड़ो लोगोँ को हसाया । 1964 मेँ गंभीर विमारी होने के चलते ग्रेसी की मौत हो गई । ग्रेसी के जाने के बाद ज्योर्ज रोज उसके कबर पर जाते उससे बाते करते पायेजाते थे । उन्होने फिर शादी नहीँ की 100 वर्षतक जीवित रहनेवाले ज्योर्ज नेँ आखरीकार दुनिया को अलबिदा कहदिया ।

==> आमेरिका के द्वितीय प्रमुख ज्योन एड्म्स और उनकी पत्नी एबिगैल के बीच गाढ़ प्रेम जीवन पर्यन्त रहा था । 54 वर्ष की वैवाहिक जीवन मेँ कईबार उन्हे एक दुसरे से दूर होना होता था । बिछड़न के इन दिनोँ मेँ लिखेगये खतोँ पर अध्ययन करने पर पताचलता है की वे दोनोँ एक दुसरे को खुब चाहते थे ।
==> पियरी और मेरी क्युरी प्रसिद्ध वैज्ञानिक है इस दंपति ने साथ मिलकर X ROY कि खोज कि थी । विज्ञान के वजह से वो दोनोँ एक दुसरे के नजदिक आये और शादी कर लिया था । जब पियरी ने मेरी को प्रपोज किया तो मेरी नेँ इसे नकार दिया था । क्युँकि मेरी को उनके मूल वतन पोलांड जाना था ,पियरी नेँ मेरी को समझाया की वो भी उनके साथ पोलंड जायेगेँ भले इसके लिये उन्हे विज्ञान छोड़ना पड़े । इसके वाद मेरी नेँ शादी के लिये हाँ करदिया । इसके बाद मेरी क्युरी और पियरी क्युरी नेँ साथ मिलकर भौतिक शास्त्र व रसायन शास्त्र मेँ साथ मिलकर काम किया और नोवेल प्राईज भी जीता ।