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बुधवार, 7 सितंबर 2016

जब ZERO दिया भारत ने

अरबी गणितज्ञ मोहम्मद अल रख्वारजिमी ने 820ईस्वी मे भारतीय अंकोँ को अरबीओँ से परिचय कराया ।
उसने गणित पर महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी ।
उसने अंकगणित मेँ हिन्दी अंकोँ का किस प्रकार उपयोग किया जाए उसके पुरे निर्देश दिए ।
उषके सौ वर्ष बाद
एक फ्राँसिसी युवक जेरबर्ट को स्पेन मे ये अरबी अंक मिला
वो फ्राँस लौटा
अन्ततः
उसने रोमन अंक के बदले
भारतीय अंको का परिचय
रोम से कराया ।
रोमवासी फिर भी रोमन अंक इस्तेमाल करते रहे
और जेरबर्ट को चमत्कारी पुरुष मानकर उन्हे
सिल्वेस्टर 2 नामसे पोप बनादिया गया ।
जेरबर्ट
एक ओर चमत्कार करते
Saint बनजाते !
खैर
ऐसे अंधेरे युगमेँ
2 शताब्दिआँ बीतगयीँ
फिर
लियानारदो फिबोनाची का आगमन हुआ
वो इटली के पिसा सहरका अधिवासी था ।
उसने अफ्रिका का दौरा किया
वहाँ उसका परिचय भारतीय अंकगणित तथा शुन्य से हुआ ।
1202 मे लियोरनारदो फिबोनाची ने एक किताब लिखी
जिसमेँ उसने अरबी अंकोँ के साथ शुन्य के चिन्ह का भी उपयोग किया ।
इतालवी व्यापारीओँ ने इसे भी अरबी अंक समझा
वो अरबी अंकोँ को सिफर कहते थे ।
वो शून्य को झेपीरो कहने लगे
क्योँकि उनके लिए ऐसा उच्चारण ज्यादे सरल था
आगे यही झेपीरो शब्द बदलकर झीरो ZERO हो गया और यह अब शून्य के चिन्ह के लिए इस्तेमाल होनेवाला सबसे आम शब्द है ।