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शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

क्षमा अवतार महर्षि पराशर

त्रेतायुग मे राजा त्रिशंकु के यज्ञ मंडप पर राजर्षी विश्वामित्र व महर्षि वशिष्ट पुत्र #शक्ति मे आपसी कलह हो जाता है ।

इससे क्रोधावेश मेँ आकर ऋषि विश्वामित्र बशिष्ट पुत्र नाश का भयानक श्राप दे देते है ।

श्राप के प्रभाव के चलते शक्ति समस्त वशिष्ट पुत्र दैत्योँ के हातोँ मारे जाते ।

ऐसी ही दुःखद परिस्तीति मे शक्ति कि पत्नी को एक पुत्ररत्न कि प्राप्ति होता है ।

महर्षि वशिष्ट उनका नाम #पराशर रखते है ।

बड़े होने पर एक दिन पराशर को यह पुरानी बात ज्ञात हो जाता है ।
लक्षप्राप्ति के लिये पराशर सदाशिव कि घोर तपस्या करते है और सिद्धि लाभ करलेने के पश्चात् वो विश्व विनाश कि तैयारीओँ मे लगजाते !

परंतु महर्षि वशिष्ट उन्हे ऐसा करने से रोकते है वो पराशर जी को जीव कल्याण माधव कल्याण का सुउपदेश देते हे ।
हालाँकि पराशर राक्षस सत्र यज्ञ आयोजन करते है इससे एक एक करके राक्षसोँ का यज्ञ मे मौत हेने लगता है ।

महर्षी वशिष्ट को जब इसबात का पताचलता है वे यज्ञस्थली मे आकर के अपने पौत्र को क्षमावान होने का उपदेश देते है । इससे महर्षी पराशर राक्षस सत्र यज्ञ को रोकते हुए दैत्योँ को क्षमा करदेते है !

तभी वहाँ राक्षस कुल के परम प्रशिद्ध मुनि पुस्य का आगमन होता है ।
वे महर्षी पराशर कि क्षमाशीलता से खुश हो उन्हे विष्णुभक्त होने का आशिर्वाद देते है ।

आगे चलकर विशिष्ट पौत्र महर्षि पराशर विष्णुपुराण कि रचना करते है ।