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बुधवार, 22 फ़रवरी 2023

हंसिबा नाचिबा खेलिबा करोति ध्यानम्

"हंसिबा नाचिबा खेलिबा करोति ध्यानम्"

एकबार ओशो ने यह प्रवचन दिया था । 
मैंने जब इसे पहली बार पढ़ा तो अपने मन हीं मन में सोचने लगा अरे यार 
ये तो आधा ओड़िआ आधा संस्कृत है । 

ओड़िआ भाषामें 
हसिवा = हसना 
नाचिवा = नाचना
खेळिवा = खेलना 
(ओडिशा के लोग क्रिया प्रत्यय बा को 'वा' उच्चारण करते हैं परंतु लिखने के समय धातुशब्द के साथ 'बा' प्रत्यय लगाते है । ओड़िआ लिपि में पहले ब,व(ବ,ଵ) के लिए एक अक्षर व्यवहार होता था ओड़िआ में 'ବ' )

वहीं ओशो प्रवचन में करोति ध्यानम् संस्कृत है

इससे पता चलता है कि ओशो ओड़िआ भाषा जानते थे च्यूंकि क्रिया प्रत्यय 'वा/बा' भारत में केवल जीवित भाषा ओड़िआ भाषा में प्रचलित है ।

हां कभी ओडिशा में पाली भाषा प्रचलित थीं उसमें भी 'वा' क्रिया प्रत्यय हुआ करता था तथा सिंहली(श्रीलंका की भाषा) में भी 'वा' क्रिया प्रत्यय मिलता है । 

सबसे पहले ओडिशा के राजाओं ने हीं श्रीलंका व मालदीव में मूल भूखंड़ से शासन किया था पहली से पांचवीं शताब्दी तक । 

इसलिए श्रीलंका में पाली भाषा प्रचलित हुआ फिर वह इलु बना और अन्ततः वह इलु भाषा सिंहली व धिवेशी बना । 

पाली भाषा ओड़िआ भाषा की पूर्व प्रशासनिक रुप है । आजसे दो हजार वर्ष पूर्व पाली पूर्व ओडिशा तथा उड्र (उड्रमागधी) पश्चिम ओडिशा में कथित भाषा हुआ करता था । 

बादमें पश्चिमी ओडिशा कि उड्र भाषा ने पाली को अपने में आत्मसात करलिया व आधुनिक ओड़िआ भाषा का जन्म हुआ । ओड़िआ भाषा चारवार मानकीकरण हुआ है । यह दुसरा मानकीकरण था ।