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शनिवार, 8 अगस्त 2015

जनसृतिओँ मेँ गंजाम जिल्ला की मालतीगड़

पुरी गजपति राजा (संभवतः मुकुन्ददेव)
और उनके कनिष्ठ पुत्र के बीच किसीबात पर परस्पर मनोमालिन्य और फिर झगड़ा हो गया ।
इससे व्यथित हो राजपुत्र ने कुछ मित्रोँ को साथ लेकर घुमुसुर राज्य मेँ प्रवेश किया ।
अपना अलग राजनवर बनाने के लिये राजपुत्र ने निकटस्थ मालती पर्वत के निकट राजप्रासाद का निर्माण करवाया और इस क्षेत्र का नाम रखा मालतीगढ़ !
छोटो बड़े कुछ गाँव पर अधिकार करके वो राज करने लगा ।
इसी मालतीगढ़ के पूर्वीदिशा मेँ एक और राज्य था उसका नाम था जउगड़ !
कुछवर्षोँ बात जउगड़ के साथ सीमाविवाद हुआ और समाधान न मिलनेपर युद्ध छिड़गया ।
मालतीगड़ के राजा ने अपने कन्ध व सउरा जैसे आदिवासी सैन्योँ को साथ लेकर युद्ध के लिये जउगड़ कि और रवाना हो गये पर
"जाने से पहले महारानी को उन्होने पथ्थर से बना बड़ा दीप मेँ अग्नी प्रज्वलीत करते हुए कहा ये दीप जबतक जलता रहेगा तुम मेरी विजय कि उम्मिद रखना । यदि ये दीप बुझगया तो तुम इसमेँ कुदकर अपना सतीत्व रक्षा करना ।
राजा ने उस वृहद दीप कि रक्षा हेतु दो विश्वासी पाइक सैनिक नियुक्त किया ।
अब राजा युद्धभूमि कि और कुच कर गये !
अनेक दिनोँ तक युद्ध चला परंतु जउगड़ को जीत पाने मेँ मालतीगड़ के राजा विफल हुए ।
च्युँकि जउगड़ की द्वार जउ नामकी एक खास पदार्थ के आवरण से ढ़का था इसलिये इसपर किसी अस्त्र व गोलाबारुद का कोइ असर नहीँ हो पाता था ।

एक दिन मालतीगड़ राजा रात को जउगड़ मेँ भेस बदलकर घुसगये

हर जगह युद्ध कि बातेँ हो रही थी....
राजा ने सुना एक व्यक्ति कहरहा था
जउगड़ कि दिवार तोड़ना तबतक मुस्किल है जबतब उसमेँ जउ नामका द्रव्य लगा हुआ है
यदि इस द्रव्य को हटादिया जाय तबजाकरके मालतीगढ़ राजा इस राज्य को जीत पाएगेँ ।

राजा ने वैसा ही किया
और
दिवार तोड़ कर नवर मेँ प्रवेश कर गये ।
उधर जउगड़ के राजा ने देखा विपत्ति सम्मुख है
हार निश्चित है परंतु तबतक जउगड़ राजा ने मालतीगड़ को बरबाद करने की तैयारी कर ली थी !
जउगड़ हार भी जायेगा तब भी मालतीगड़ का अन्त निश्चित था । युद्ध के प्रारम्भिक दिनोँ मेँ ही
जउगड़ के राजा ने लोग भेजकर मालतीगड़ की लगातार जलरही दीप को बुझादिया था ।
अब रानी भी दुःखी हो सती हो गयी । युद्ध मेँ
मालतीगड़ का विजय हुआ ,राजा नवर लौटे तो देखा उनका सबकुछ लुट चुका है ।
प्रियतमा पत्नी की वियोग से वो नित्यान्त व्यथित हुए और निश्चय कर लिया च्युँकि उनके लिये रानी ने आत्मदाह किया वो भी उसी पथ्थर दीप मेँ कुदकर प्राणत्याग करेगेँ ।
राजकर्मचारीओँ ने बहुत समझाया पर राजा अटल रहे और वही किया ।
मालतीगड़ अब अराजक हो गया था ।
ये जानकर घुमुसुर के भंज राजा ने सैसन्य आ कर के मालतीगड़ अधिकार कर लिया ।
मालतीगड़ कि अधिष्ठात्री व्याघ्रदेवी को ले जा कर के कुलाड़गड़ मे पुनः स्थापना किया गया । मालतीगड़ के और एक मंदिर से विरंञ्जी नारयण कि मूर्ति को बुगुड़ा नामक क्षुद्र नगर के मंदिर मेँ पूजा गया ।

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मालतीगड़ को पुराणोँ मेँ खासकर जैनग्रंथोँ मेँ कोटितिर्थ कहागया है
जो आधुनिक गंजाम निकटस्थ आसिका नगर मेँ स्थित है ।