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बुधवार, 10 फ़रवरी 2016

***पारलाखेमुण्डि मे उपनिवेशवाद के खिलाफ सशस्त्र संग्राम्

अंग्रेजोँ ने 1767-68 मे दक्षिण ओड़िशा
के पारलाखेमुण्डि

(बर्तमान के गंजाम गजपति जिल्ला )

राज्य पर हमला करदिया
हमले के जवाब मे स्थानीय राजा
# जगन्नाथ_नारायण_देव तथा उनके अधिनस्त जमिदार तथा # विशोइ # दोरा
# दोरत्नम् सर्द्दारोँ ने अंग्रेजोँ का प्रतिरोध किया ।

परंतु पारलाखेमुण्डि राजा
1768 मे अंग्रेज # कर्णेल_पिच् के हातोँ
# जेलमुर मे परास्त हुए ।

उन्होने अंग्रेजोँ के खिलाफ
कटक के तत्कालिन # मराठा सरकार से सहायता माँगा था
लेकिन मराठीओ ने सामरिक सहायता देने से साफ मना करदिया था
च्युँकि उन्हे युद्ध न करने के लिये अंग्रेजोँ से तगड़ा रकम् मिले थे ।

युद्ध मे हारने के बाद अंग्रेज राजा जगन्नाथ नारायण को मारनेवाले थे के
तभी उनके कुछ आदवासी विशोइ सर्द्दारोँ ने उन्हे सकुशल बचालिया....

अब राजा और उनके समर्थक अनुचर वागी बनेँ
1768 से 1770 तक राजा जगन्नाथ नारायण ने
अंग्रेजोँ को उनके पारलाखेमुण्डि राज्य मे खजाना वसुलने नहीँ दिया

इससे व्रिटिश इष्ट इंडिया के आला अधिकारी वेहद खफ़ा हो गये और विद्रोह कुचलने के लिये अपने सबसे ताकतवर रेजिमेँट भेजदिया था
राजा जगन्नाथ नारायण देव
मरते दमतक अंग्रेजोँ से लढ़ते रहे
और अंततः वीरगति को प्राप्त हुए ।

~~~उनके मृत्यु पश्चात
अंग्रेजोँ ने राजपुत्र
# गजपति_देव को पारलाखेमुण्डी का नूतनराजा के रुपमे स्वीकृति दिया !

हालाँकि गजपति देव स्वयं को
स्वतंत्र समझते थे
परंतु अंग्रेजो ने जब उनके राजकार्य मे अपना हस्तक्षेप किया
दोनो पक्षोँ मे संबन्ध तिक्त हुए ।

1773 मे जगन्नाथ नारायण देव के पुत्र गजपति देव ने अंग्रेजोँ के खिलाफ अपने समर्थकोँ के साथ मिलकर विद्रोह किया
था परंतु हारकर अंग्रेजोँ के हातोँ 1774 मे वंदी बने ।

गजपति देव को अंग्रेजोँ ने विशाखापट्टनम् मे वंदी बनाए
रखा ।

अगले 6 वर्षोँ मे
यानी 1774 से 1780 तक
समुचे दक्षिण ओड़िशा क्षेत्रमे
विशोइ और दोरा आदिवासी संप्रदाय के सर्द्दारोँ ने अंग्रेजोँ का
निन्द हराम करदिया था
अंततः 1780 मे अंग्रेजोँ को मजबुरन गजपति देव को कारागार से मुक्त करना पड़ा था
और इसतरह से गजपतिदेव को पुनः पारलाखेमुण्डि की राजगदी हासिल हुई थी ।

हालाकिँ अंग्रेजोँ के खिलाफ
आदवासीओँ ने विद्रोह जारी रखा
1799 मे अंग्रेजोँ ने एक आदिवासी नेता को मारदिया
जिससे समुचे क्षेत्र मे विद्रोह हुए ।

राजा गजपतिदेव ने भी विद्रोहीओँ का साथ दिया
जिससे अंग्रेजोँ ने गजपति देव और उनके पुत्रोँ को # मुसलिपट्टनम् मे पुनः वंदी बना दिया था !

1800 से 1803 तक पारलाखेमुण्डि मे अंग्रेजोँ ने इतना खुन वाहाए कि मिट्टी बंजर हो गयी
और
लगातार तिन वर्षोँतक आए अकाल से स्थानीय प्रजा देश छोड़ जाती रही
और उधर राजपरिवार निश्वः हो गया.....

इसतरह से एक लम्बी उतारचढ़ाव वाले नाटकीय घटनाक्रम से गुजरते हुए
अंग्रेज
पारलाखेमुण्डि का विद्रोह दमन
कर पाए थे ।

आगे चलकर
1830 मे इस क्षेत्रमे पुनः विद्रोह हुए
इसबार विद्रोहीओँ के शिकार बने कंपानी मेनेजर जमिदार पद्मनाभ देव !

पद्मनाभ देव अंग्रेजोँ के हातोँ बिकचुका था
उसने इस क्षेत्र के प्रजाओँ पर वर्षोँ अत्याचार किया

पर वो कहते है न

एक दिन पाप का घड़ा भर ही जाता है

1830 मे विद्रोहीओँ ने जमिदार के घर व कचेरी को आग के हवाले करदिया

1832 तक विद्रोही अंग्रेजोँ को मुँहतोड़ जवाब देते रहे

उसी साल मद्रास सरकार द्वारा जर्ज एडवार्ड रसेल को
विद्रोह दमन के लिये भेजागया !

Edward Russel ने अपने सेना को अर्डर दे रखा था
जहाँ भी हतियारधारी योद्धा दिखे जान से मार दो !

कोई दया नहीँ कोई क्षमा नहीँ ।

पहले पहल वो नाकाम् रहा
और तब उसने अपना गुस्सा आमजनता पर उतारा....

हजारोँ लोग कत्लेआम् हुए
लाखोँ वेघर हुए
इससे कुछ एक विशोइ दोरा सर्द्दारोँ ने आत्म समर्पण करदिया व ज्यादातर विद्रोही उत्तरओड़िशा चलेगए !!

अंग्रेजोँ को लगा उन्होने विद्रोह दमन करलिया
अनगिनत लाशोँ के एवज् पर ही सही ।

1856-57 मे सिपाही विद्रोह के समर्थनमे यहाँ पुनः विद्रोह हुए

इस विद्रोह के कर्णधार रहे राधाकृष्ण दण्डसेना
विद्रोहीओँ ने अंग्रेजोँ को सहायता करनेवाले
देशद्रोही जातिद्रोहीओँ के घर जलादिए और लुटपाट मचाया ।

तब इस विद्रोह को दमन करने के लिये Captain wilson ने शवरोँ के परिवारोँ को निशाना बनाया

अनेकानेक शवर गाँव जलादिए गये
अपने ही लोगोँ पर हो रहे
बलात्कार हत्या और अत्याचार का विभत्स रुप
देख विद्रोह और भड़का
इसबार विद्रोहीओँ ने अंग्रेजोँ का सिधा मुकावला किया
लेकिन हारगये ।

राधाकृष्ण दण्डसेना और उनके कुछ विद्रोही साथी को अंग्रेजोँ ने फाँसी पर चढ़ा दिआ था .....

-Extra shot-
च्युँकि जगन्नाथ नारायण देव के पुत्र गजपति देव ने अंग्रेजोँ के खिलाफ लम्बी लढ़ाई लढ़ी थी
अविभक्त गंजाम जिल्ला से अलग होने पर इस पारलाखेमुण्डि क्षेत्र अंतर्गत
भूमिखंड का नाम गजपति रखा गया......