ब्लॉग आर्काइव

बुधवार, 19 नवंबर 2014

आर्पानेट से इंटरनेट तक.....

अमरिका और रसिआ के बीच चलनेवाला कोल्ड वार के कारण कई वैज्ञानिक खोज हुए । उनमे प्रमुख था इँटरनेट (पुरानाम इँटर नेटवर्क) उनदिनोँ दोनोँ देशोँ को एक दुसरे से भय व अविश्वास था । इसलिये हर प्रकार कि सुरक्षा ज्यादा से ज्यादा मजबुत करने कि प्रकिया चलता था । उस जमाने मेँ कंप्युटर की आगमन हो गया था और आमेरीकि सरकार कि संरक्षण विभाग सहित अन्य विभागोँ मेँ कंप्युटर से काम शुरु हुआ था ।
वाशिँगटन मेँ स्थित अमेरिकन संरक्षण संस्थान मेँ बैठे अमरिकन धुरंधरोँ को डर लगा कहिँ रसिया कि कोई शस्त्र पेँटागन तक पहचँजाय और महत्वपूर्ण कंप्युटरोँ का नाश हो जाय तो ? अगर ऐसा होता है तो तमाम खुफिया जानकारी,शस्रोँ ने कमान्ड देनेवाली सुविधा ,परमाणु शस्त्रोँ कि चावी आदि नष्ट होनेपर अमरिका को इससे बहुत बड़ा खामी उठानी पडेगी ।
अमेरिकन सरकार नेँ इसपर सोचविचार करते हुए कम्प्युटर नेटवर्किगं के जानेमाने इंजिनियर पोल वेरन को बुलाकर उन्हे पेन्टागन का काम सोँपा । उनके मदद के लिये वेल्श कम्प्युटर सायन्स के डोनाल्ड वेल्श और लिँकन लेवोरेटरी के विज्ञानी लोरेन्स रोवर्ट भी सामिल हुए । इन तिनोँ के नेतृत्व मेँ बने इस टुकडी का कुल 14 सदस्य थे और उन्हे ऐसे नेटवर्क कि खोज का काम सोँपा गया था जो खुफिया और सुरक्षित हो । पेन्टागन नी दुसरी खुफिया प्रोजेक्ट कि तरह यह भी एक गुप्त प्रोजेक्ट था ।
इस 14 सदस्योँ वाली गुप्त समिति का नाम "आर्पा"(Advance research project) रखागया था । इसी क्रम मेँ इन्हे पताचला कि ऐसे नेटवर्क कि खोज वोल्ट,वार्नेक और न्युमेन(B.B.N.) नामके विज्ञानीओँ ने पहले से हि कर लिया है । आर्पा के सदस्योँ ने इनके मदद से ऐसे नेटवर्किगं बनाने का काम शुरु करदिया । बाद मेँ बस एक हि काम बाकी रहगया कम्युटर्स को आपस मेँ जोडना । ये काम टेलिफोन वायर के जरिए किया गया । लिनियार्ड क्लिनोर्के की लेवोरेटरी मेँ एक दुसरे से 15 फीट दुर रखेगये दो कम्प्युटर इतिहास के साक्षी बनने के लिये तैयार थे । इसमेँ विज्ञानीओँ को सफलता मिला और इसे देखने के लिये वहाँ 20 लोक मौजुद थे । ये शुरुवात था , अब वारी थी दुर रखेगये कम्प्युटरोँ को आपस मेँ जोडने कि,
इसी क्रम मेँ केलिफोर्निया और स्टेनफोर्ड युनिवर्सीटी मेँ रखेगये कम्प्युटरोँ के बीच संपर्क स्थापना करने मेँ बड़ा सफलता हता लगा । बाद मेँ अमरिकी सरकार नेँ इस खोज कि जानकारी दि गयी और इसे आर्पा और नेटवर्क को मिलाकर आर्पानेट नाम दिया गया । बाद मेँ यही आर्पानेट दुनिया मेँ इटंरनेट के नाम से जानागया (Inter+Network)

गाँधीजी के बाद नेहरुजी को मारने के हुए थे कई प्रयाश

आजकल भारत मेँ ऐसे युवापिढ़िओँ का उदय हुआ है जो मानता हे कि देश के प्रथम पधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु और महात्मा गान्धी ही देश विभाजन के एकमात्र जिम्मेदार है ! राजनीति के धुरन्दरो नेँ पिछले 10 वर्षोँ मेँ और खासकर पिछले 2 वर्षोँ मेँ इंटरनेट का इस्तेमाल इन्हे बदनाम करने के लिये किया और आज आलम यह है कि इनके नेता भारत मेँ बहुमत से चुनेगये और विदेश यात्राओँ मेँ व्यस्त है । इंटरनेट मेँ सर्च करते ही नेहरु व गाँधीजी के बारे मेँ कई कॉन्स्पीरसी थियरी पढ़ने को मिलजायेगा जैसे :- गाँधीजी के हत्या के पिछे नेहरुजी का हात था , सुबास चंद्र वोस जी के गायव होने के पिछे नेहरुजी का हात था , श्यामाप्रसाद मुखर्जी कि मौत नेहरु के कारण हुआ आदि !
मुझे तो डर हे किसी दिन ये लोग नेहरु व गांधीजी को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम विफल होने का जिम्मेदार न बना लेँ !
हिन्दुधर्म के नामपर राजनीति करनेवाले लोगोँ को इतिहास मेँ कोई रुचि नहीँ है वे चाहनेपर उसको तोडमरोडकर पैस कर सकते है । क्या कभी इन इंटरनेट वीरोँ ने नेहरुजी के हत्या प्रयाश के बारे मेँ कुछ लिखा या बताया ?
संभावना कम है ,पर हकिकत यह है कि गाँधीजी की हत्या करनेवाले कट्टरवादीओँ को नेहरु भी उतने हि खटक्कते थे । 1950 का दौर भारतके लिये मुश्किलोँभरा था । एक तरफ भारत मेँ लगातार शरणार्थीओँ का आना लगाहुआ था तो वहीँ सीमाविवाद, धार्मिक रक्तपात से देश रक्तरंजित हो गया था । ऐसे मेँ भारत के कुछ हिदुँ संगठनोँ ने भारत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल लिया । हिँदु महासभा और राष्ट्रिय स्वयं सहायक संघ ने भारत को हिँदुराष्ट्र वनाने के लिये कमर कस ली । गाँधीजी को रस्ते से हटाने के बाद नेहरु उनके हट लिस्ट मेँ आ गये थे । 1950 मेँ हिँदुमहासभा के भूतपूर्व प्रमुख कि धरपकड के बाद भारत सरकार उंगली उठने लगी । तब सरदार पटेल ने संसद मेँ इसपर जबाव देते हुए कहा था कि जिन कट्टरवादीओँ नेँ गाँधीजी की हत्या कि कोशिश कि थी वे अब नेहरु को मारने के प्रयाश मे लगे हुए थे परंतु खुफिया जानकारी के कारण पोलिस नेँ इसे नाकाम करदिया । सरदारजी की मृत्यु के बाद 1953 मेँ नेहरुजी को मारने का एक और प्रयाश निष्फल हुआ । पंडित नेहरु अमृतसर एक्सप्रेस से मुँबई लौट रहे थे तब मुंबई थी लगभग 55 किलोमिटर दुर कलवन नजदिक रेल्वे ट्रेक पर बॉम लगाया गया था । परंतु पटरी पर पेट्रोलिंग करनेवाले पोलिस बल को ये बॉम दिखगया,गोलिवारी हुई और अपराधी भागखड़े हुए ।
1955 मार्च 12 मेँ नागपुर के रिक्शिचालक वावुराओ कोहली ने अपने चाकु के द्वारा नेहरु को मारने की प्रयाश हुआ । नेहरु के सहायक रहचुके "एम .ओ. मथाई"जी नेँ MY DAYS WITH NEHRU मेँ लिखा है कि कोहली एक प्रकार को पोल्टिकाल थिँकर थे . वे दृढ़तापूर्वक मानते थे कि कंग्रेस कि सरकार वहुमत से राज कर रहा है और इसमेँ उसकि कोई बाहदुरी नहीँ । कोहली कि धरपकड के बाद उसे अदालती कारवाई मेँ जुलाई 28 1955 के रोज प्रधानमंत्री के हत्या प्रयास के लिये आइ.पि.सी धारा 307 के अंतर्गत छ वर्ष कि सजा ए कैद मिला था ।

आज भारत पर संघपरिवार का राज है । हिँदु कट्टरवादीओँ का एक पुरा का पुरा फौज फेसबुक व ब्लॉगिगं के दुनिया मेँ मनगढ़न कहानी परोस रहा है । ऐसे मेँ साधारण पाठक को चाहिये कि वो इंटरनेट मेँ लिखगये लेखोँ को आँख बंदकरके यकिन न करेँ वरना एक दिन आयेगा जब हमारे समाज व देश मेँ कट्टरवादीओँ का राज होजायेगा और साधरण जनता को अन्याय सहन करना होगा ।