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गुरुवार, 30 जनवरी 2014

हताशा और ओड़िशा

आज भारत मेँ ओड़िआओँ का कदर नहीँ हे । मेँ हर क्षेत्र मेँ देखता हुँ पर मुझे मरे राज्य को प्रतिनिधीत्व करनेवाले नेता या नायक सर्वभारतीय स्तर पर नहीँ हे और जो हे उन्हे उतना मान नहीँ मिलता । ना तो कोई राष्ट्रिय फिल्म ऐसा हे जो ओड़िआ और ओड़िशा का संस्कृति को दुसरे भाषाभाषिओँ से पहचान करासके ! आप भारत भर मेँ पुछ लिजिये 100 मेँ से 10 होँगे जिन्हे ओड़िशा के वारे मेँ थोड़ा वहुत मालुम हो । वीरोँ के इस भुमि को आज गरीवी और भुकमरी के लिये जाना जाता हे । भारत सरकार ओड़िआओँ के साथ सौतेला सा वर्ताप करता आया हे चाहेँ वो किसी भी पार्टी का सरकार हो । सर्वभारतीय स्तर पर हमारे संस्कृति को पिछड़ा हुआ और आदिवासी संस्कृति मानकर अपमानित किया जाता हे । दुसरे राज्योँ के मुकाबले ओड़िशा को बहुत कम सहायता मिलता हे । 2 महिने पहले ओड़िशा मेँ आया चक्रवात से काफि क्षति पहंची थी भारतसरकार ने 1000 crore देने का वादा किया था और अबतक सिर्फ 250 crore हीँ मिलपाया हे । केंद्र मेँ सरकार किसी कि भी बनेँ ओड़िआओँ का हाल ऐसा हि रहेगा क्युँ कि ना तो हम अपने मान के प्रति सचेतन हे और ना हमेँ इस जाति कि परवा हे । आर्मि मेँ एक से एक जातिओँ का रेजिमेँट हे मराठि पंजबी गुर्खा पर ओड़िआ ? ये तो लढ़ना भुलगये अब इनके हात मेँ अस्त्र कहाँ ? जो हमेँ गरीब,अनपढ़,दुर्वल और हारे हुए समझ रहे है उनके लिये ऐ लाईन काफी हे " जान लो चुप हे आजकल सोये नहीँ तलवार अभी भी हे बस ललकार कि देर हे "