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बुधवार, 17 अगस्त 2016

पुर्तगालीओँ का भारत खोज

1400 ई तक युरोप के लोग भारत और उसके पूर्व स्थित द्वीपोँ मेँ जाने के बहुत इच्छुक थे ।
इन पूर्वी द्वीपोँ से आता था
रुई रेशम चीनी मसाले और बहुत सारी अन्य चीजेँ जिनकी युरोपवासियोँ को बेहद जरुरत होती थी ।
ये सब चीजेँ दूर दराज के देशोँ से जमीन द्वारा युरोप पहँचता था ।
बीच मेँ आनेवाले हरेक देश टैक्स वसुलता था ।
इससे पश्चिम युरोप पहुँचते पहुँचते
यह चीजेँ बहुत मंहगी हो जाती थीँ ।

युरोप का सबसे पश्चिमी देश पर्तुगाल मे ये पूर्व कि सामान आते आते इनकी दाम दुगना हो जाता था ।

1418 मेँ एक पुर्तगाली राजकुमार हेनेरी ने दिमाग दौड़ाया ।

क्युँ न हम समुद्र के रास्ते से भारत जाएं ?
क्युँ न हम अफ्रीका का चक्कर लगाते हुए भारत जाएं ?

अफ्रिका कितनी दूर था और उसका कितना विस्तार था ?
यह किसी को भी नहीँ पता था ।
इसे पता करने का एक ही तरीका था
वहाँ पानी के जाहाज भेजकर !

हेनेरी ने पुर्तगाल के दक्षिण पश्चिमी कोने पर एक जहाज केँन्द खोला । वहाँ से उसने जहाजोँ को भेजना शुरु किया ।
हरेक जहाज पहले की अपेक्षा अफ्रीका के तटीय किनारे पर कुछ और आगे जाता था ।

राजकुमार हेनरी को अब लोग
हेनरी द नैविगेटर के नाम से बुलाने लगे ।

1460 मे उसका देहान्त हो गया ।
पर तब तक पुर्तगाली जहाज अफ्रीका तट के किनारे कई हजार किलोमीटर तक जा चुके थे ।

अछा पहले के जमानेँ मे युरोपियन सोचते थे
भूमध्य रेखा के उसपार जाना
नामुनकीन है ।
च्युँकि वो उत्तर से दक्षिण कि ओर भूमध्य रेखा के जितने करिब जाते
गर्मी उतना बढ़ता चला जाता था ।
पूर्तगालीओँ ने हार नहीँ मानी लेकिन अब भी वो भूमध्य रेखा से काफी दूर थे ।
वो उम्मीद कर रहे थे कि अफ्रिका का विस्तार भूमध्य रेखा तक नहीँ होगा और उन्हेँ अत्यन्त गर्गी का प्रकोप नहीँ सहने होगेँ ।

कुछ समय तक तो अफ्रीकी
तट ने उन्हेँ पूर्व कि ओर सफर करने के लिए मजबुर किया
पर उसके बाद वो जहाजोँ को फिर से दक्षिण की ओर ले जाने मे सफल हुए ।
1482 मेँ पुर्तगाली नाविक
#दियोगो_काओ भूमध्य रेखा को लांघकर उसके आगे आने मे सफल रहे ।
और ऐसा करने वाले वे पहले युरोपिय थे ।



[[ISAAC ASIMOV कि पुस्तक
"हमेँ आंटार्कटिका के बारे मेँ कैसे पता चला ?"
से !!]]