ब्लॉग आर्काइव

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

अंधविश्वास हि धर्म को मार सकता हे.....

हमेँ उन मान्यताओँ को मानना चाहिये जो विज्ञान सम्मत हो जैसे देवी काम क्रोध मोह माश्चर्य और अहंकार का बलि चाहति हे और यह सब दुर्गुण आ जाने पर इंसान पशु बन जाता हे । लेकिन बाद मेँ लोगोँ नेँ श्लोक और धर्मवाक्योँ का गलत मतलब निकालकर स्वार्थ साधन मेँ लग गये जिससे पृथ्वी मेँ अधर्म बढ़गया और आज से करिबन 3600 साल पहले महाभारतकाल मेँ पृथ्वी 3 डिग्री उत्तर कि और ढ़लगया जिससे अरव और उत्तर अफ्रिका मेँ साहारा मरुस्तल बनगया ।(अरव मेँ पहले अरवी घोडे मिलते थे जो काफी मजवुत और ताकतवर होते थे....शोधकर्ताओँ को मध्यप्राच्य से कई जीवोँ के अवशेष मिलेँ जो साबित करता हे कि कभी अरव और साहारा मरुस्थल हराभरा था )


बाद मेँ अरव मेँ बचेहुए लोगोँ मेँ 1000 वर्षखंड मेँ अंधविश्वास इतना फैला कि लोग धीरे धीरे जोराष्टर धर्म (संभवत: यह धर्म राक्षसोँ का होगा क्युँ कि पुराने लेखोँ मेँ राक्षस वेद के वारे मेँ वताया गया हे और जोराष्टर धर्म ग्रथों मेँ ज्यादातर भुत प्रेत और राक्षसी विद्याओँ का वर्नन हे ...आगे चलकर इस धर्म से इहुदी और इस्लाम धर्म बना और इहुदी धर्म से ईसाई धर्म ) को छोडकर नये धर्म बनाने लगे


। अंधविश्वास हि धर्म को मार देता हे और आज जोराष्टर धर्म लुप्त हो गया हे और इससे प्ररित 3 नये धर्म आ गये । असल मेँ सारे धर्मोँ मेँ तत्व एक हे परंतु अलग अलगा भाषा , प्रांत और अलगाववाद के वजह से हमेँ वो दिखनहीँ पाता ।

हिँदु धर्म मेँ विज्ञान का संगम

विना विज्ञान धर्म अंधा है और विना धर्म के विज्ञान लंगडा हे । कार्तिक मेँ मछली और मांस नहीँ खाते । क्युँ कि कार्तिक मेँ जीवोँ को वसंत रोग होता हे । फागुन मेँ होली खेला जाता हे पहले के जमानेँ मेँ प्राकृतिक रंगोँ से और होली खेलते थे और इन रंग के शरीर पर लगने पर चर्म खराब नहीँ होता था अपितु इस से मेँ औषधिय गुणो से चर्म को धुप से राहत मिलते थे । पहले के जमानोँ मे शिव जी को दुध चढ़ाकर चढ़ाकर लोग बाद मेँ उसे प्रसाद के रुप मेँ ग्रहण करते थे और आजकल वही दुध Total waste जाता हे । हिँदु धर्म मेँ विज्ञान भी हे अंधश्रद्धा भी । जरुरत हे अंधश्रद्धा को मिटाकर सिर्फ विज्ञान सम्मत कार्योँ को किया जो हमारे धर्म मेँ सालोँ से पाला जाता रहा हे । आज महाशिवरात्रि है और महाशिव रात्रि मेँ दीप जलाने तथा उपवास करने पर धार्मिक तौर पर तो फायदा होता हि साथ मेँ क्युँ कि यह कालरात्रि हे और इस दिन दुनिया शिवजी के त्रिशुल से जला था *(ग्रीक ग्रंथोँ मेँ मिलता जुलता प्रसंग आता हे कि ग्रीक युद्ध देवता नेँ दुनिया को अपने त्रिशुल से जला डाला था )* इसे पालन करना चाहिये इससे हम अपने पूर्वजोँ को याद भी कर लेते हे । विज्ञान कि मानेँ तो इसदिन चंद्र कि गुरुत्वाकर्षण सबसे कम होनेँ के वजह से खाना नहीँ खानेँ चाहिये वरना शरीर मेँ कई तरह के रोग हो सकते हे । इसलिये सभी दोस्तोँ से निवेदन हे वो महाशिव रात्रि जरुर करेँ हर तरह से यह प्रामाणिक हे । हिँदु धर्म को विज्ञान के सहारे देखिये वो महान और सर्व श्रेष्ठ लगेगा परतुं अगर बिना परखे जांचे आप किसी भी ढ़ोगीँ बाबा और तांत्रिक कि बातोँ मेँ आ जायेगेँ तो आपका भी क्षति धर्म का भी .....