ब्लॉग आर्काइव

शनिवार, 4 मार्च 2017

निशाचर जिंदावाद

संस्कृत में एक कहावत है

"या निशा सर्वभूतानाम्
तस्मात् जाग्रति संयमीः ।"

प्राचीनकाल मे अपने परिवार तथा जनवस्ती को हिंस्रजन्तुओं से रक्षा करनेवालों के लिए.....
घर के पालतू कुत्तों के लिए
तथा निरंतर तप करनेवाले मुनि ऋषिओं के लिए संभवतः ऐसे कहावत प्रचलन मे आया हो ...

आजकल इंटरनेट के जमाने मे यह कहावत काफी हद् तक अर्थहीन हो गया है
परंतु आज भी इस कहावत को जीवित रखने को कुछ लोग व जीव यत्नवान है....

कुत्ते तो पिछले ७०००० साल से इंसानो के साथ है ही
उल्लु व चमकादड भी रात्रीको ही खाद्य अन्वेषण मे लगे रहते है । उनके लिए
दिन के अपेक्षा रात कहीं अधिक
सुरक्षित होता है ।

मानवों में गरीब मजदुर लोग नाइट सिफ्ट करते समय सयंम बरतते है
निद्रा के लिए मशीन तोड फोड नहीं देते.....
इसलिए #निशाचर प्राणिओं का सत्कार होना चाहिए
च्युंकि इन्होने जीवों कि उस आदिम संस्कृति को आज भी जीवित रखा हुआ है
है कि नहीं 😂😂😂😂😂
जय निशाचर जय हो 😉😉