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शुक्रवार, 8 अगस्त 2014

संस्कृत सप्ताह विशेष

7 अगष्ट से 13 अगष्ट तक के इन 7 दिन को संस्कृत सप्ताह के रुप मेँ हर साल मनाया जाता है । लोग आते भाषण देते सुनते और घर चले जाते ! बच्चोँ को अंग्रेजी स्कुलोँ मेँ पढ़ाते ताकि आगे चलकर मोटे अंक कि कमाई हो ! ठिक भी है दुनिया पैसा और पैसेवालोँ का है भले देश बिकजाय इन्हे क्या इनके पॉकेट तो गरम है । अरे इस देश में तो आजकल इंग्लिश बोलना शान की बात मानी जाती है । इंग्लिश नहीं आने पर लोग आत्मग्लानि अनुभव करते हैं (ENGLISH VINGLISH देखा है ? ) ! खैर छोड़िए अंग्रेजी कि बात लुटेरोँ का भाषा है इसकी यही औकात है । हाँ तो हम बात कर रहे थे संस्कृत भाषा के बारे मेँ , यह भाषा किसी देश या धर्म की भाषा नहीं हे । यह अपौरूष भाषा है , क्योंकि इसकी उत्पत्ति और विकास ब्रह्मांड की ध्वनियों को सुन-जानकर हुआ। यह आम लोगों द्वारा बोली गई ध्वनियां नहीं हैं । संस्कृत ऐसी भाषा नहीं है जिसकी रचना की गई हो। निःसंदेह रुषिमुनिओँ के द्वारा इस भाषा की खोज की गई है । भारत में आज जितनी भी भाषाएं बोली जाती है वे सभी संस्कृत से जन्मी हैं जिनका इतिहास मात्र 1500 से 2000 वर्ष पुराना है। उन सभी से पहले संस्कृत, प्राकृत, पाली, अर्धमागधि आदि भाषाओं का प्रचलन था । यह बात सर्व मान्य हे कि संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है । 'संस्कृत' का शाब्दिक अर्थ है परिपूर्ण भाषा तथा सुचरित्रवान सुशिक्षित समाज । संस्कृत पूर्णतया वैज्ञानिक तथा सक्षम भाषा है। संस्कृत भाषा के व्याकरण में विश्वभर के भाषा विशेषज्ञों का ध्यानाकर्षण किया है। उसके व्याकरण को देखकर ही अन्य भाषाओं के व्याकरण विकसित हुए है । इस भाषा के समस्त वर्णो के उद्भव संधर्व मेँ संस्कृत विद्वानों का मानना हे कि सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने। इस तरह सूर्य की जब 9 रश्मियां पृथ्वी पर आती हैं तो उनकी पृथ्वी के 8 वसुओं से टक्कर होती है। सूर्य की 9 रश्मियां और पृथ्वी के 8 वसुओं के आपस में टकराने से जो 72 प्रकार की ध्वनियां उत्पन्न हुईं, वे संस्कृत के 72 व्यंजन बन गईं। इस प्रकार ब्रह्मांड में निकलने वाली कुल 108 ध्वनियां पर संस्कृत की वर्ण माला आधारित हैं । इसके अलावा संस्कृत दुनिया अकेला इकलौता भाषा है जिसमेँ अभद्र शब्द नहीँ है और मानव गुप्तागोँ का भी आदर सहित वर्णन किया जाता है । कहा जाता है किसी देश की जाति, संस्कृति, धर्म और इतिहास को नष्ट करना है तो उसकी भाषा को सबसे पहले नष्ट किया जाए। मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी ।
1100ईसवीं तक संस्कृत समस्त भारत की राजभाषा के रूप सें जोड़ने की प्रमुख कड़ी थी। अरबों और अंग्रेजों ने सबसे पहले ही इस भाषा को खत्म किया और भारत पर अरबी और रोमन लिपि और भाषाको लादा गया। भारत की कई भाषाओं की लिपि देवनागरी थी लेकिन उसे बदलकर अरबी कर दिया गया,तो कुछ को नष्ट ही कर दिया गया। वर्तमान में हिन्दी की लिपि को रोमन में बदलने का छद्म कार्य शुरू हो चला है । संस्कृत को राजनीति से भी काफी नुकसान पहुँचा है और इसे ब्राह्मणों की भाषा के ठप्पे का भी सामना करना पड़ा है लेकिन संस्कृत एक उदार भाषा है जिसे कोई भी पढ़ सकता है और जो भी संस्कृत पढ़ेगा, उसके जीवन में सरलता आएगी । हालाकी भारत मेँ संस्कृत का भविष्य बहुत अच्छा नहीं दिखाई देता क्योंकि आज के युवा की रुचि मात्र फ़र्जी डिग्री लेने में है । कुछ युवाओं में व्यवसायिकता का असर हुआ है जिससे वो संस्कृत से दूर हुए हैं लेकिन भाषा की समृद्धता के कारण एक वर्ग संस्कृत से जुड़ा भी है । आज विदेशोँ मेँ संस्कृत पढ़ाया जा रहा है हमारे ग्रंथो से तथ्य निकालकर वे अपने नामपर पेटेटँ बना रहे है और हम उनके गरीब भाषा को आँख मुँद कर पढ़ रहे है ।