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शनिवार, 14 जून 2014

ओड़िशा मेँ रजपर्व

आज से ओड़िशा मेँ रजपर्व ⛅ शुरु हो गया हे हालांकी कल से रज पर्व प्रारम्भ हो चुका हे लेकिन आज से तिन दिन सरकारी छुट्टी मिलता है । ओडिशा एक कृषिप्रधान राज्य होने के साथ-साथ यहां की कला और सांस्कृति समृद्ध है । ⌛ रज उत्सव इस महान सांस्कृति की महत्ता को दर्शाता है। इस पर्व के जरिये धरती माता और नारी जाति के महत्व पता चलता है, जिससे रज उत्सव की प्रासंगिकता आज भी है । यहां के हर घर में आनंद और उल्लास के साथ यह उत्सव मनाया जाता है । पोड़ो पिठा ,मंडा पिठा, आरिसा पिठा , चकुली , काकरा तथा बरा आदि पारम्परीक मिटाई बनाकर लोग इस त्योहार को और दिलचस्प बनादेते। इन तीन दिनोँ मेँ सहर और खासकर गाँव मेँ लोग भिन्न भिन्न स्थानिय खेलभी खेलते और मजा लेते हे । गंजाम मेँ रजपर्व पर लोग जुआ और ताश खेलते हे और कहीँ कहीँ तो ताशके टुर्नामेँट भी होता हे । आजकल ज्यादातर क्रिकेट और ताश के टुर्नामेँट हो रहा हे। पुरातनकाल मेँ रजपर्व पर लोग शतरंग , पाशा और बगुड़ी ( कवड्डी ) खेलते थे ! हम ओड़िआ मानते हे की यह तीन दिन बसुमाता अर्थात पृथ्वी ऋतु स्नानperiodical cycle(Raja Svala) करती हे और यह मान्यता प्राचीन काल से आर्यो मेँ प्रचलित थी आज भी हे । आज भी युपी विहार मेँ इसदिन मिट्टी की खुदाई नहीँ होती न हल चलाये जाते ।ऋकवेद मेँ पृथ्वी को माता तथा नारी कहा गया हे , और वैदिक काल से लोग इसे मानते चलेँ आये हे । ओड़िशा के ग्रामीण इलाकोँमेँ औरते चमड़े से बने चप्पल नहीँ पहनती और ज्यादातर नंगेपाऊँ चलती हे ताकी पृथ्वीमाता को कष्ट न हो ❄ । रजपर्व मेँ लोग पेड़ोँ से पत्ते , पुष्प और फल नहीँ तोड़ते और न तो औरतेँ सब्बजी काटते या मसाला बनाते हे । यह पर्व औरतोँ का पर्व हे, रजपर्व मेँ कई तरह का झुला बनया जाता हे जैसे "पटादोली" ,बाऊँस दोली आदि । रजपर्व मेँ औरतेँ छुला झुलते हुए कई तरह के गानेँ भी गाती हे जैसे.,
"Banaste dakila gaja ,
Barasake thare Asichi Raja
Asichi Raja lo gheni nua Sajabaja." अर्थात् बन मेँ बुलाता गज (हाथी) साल मेँ एक बार आता हे रज ! लेकर नये सजबाज (पुरे तैयारीओँ के साथ ) !
इन गानोँ मेँ वो अपने दुःख दर्द हाल को बता देते है । भारतीय संस्कृति का ये अनोखा तौहार ओड़िशा , बंगाल ,छतिशगड़ ,झाड़खंड़ और आंध्रा मेँ मनाते तथा चौथे दिन इस पर्व के समापन पर खेतोँ से लाये गये मिट्टी को पूजा जाता है ।