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मंगलवार, 16 अगस्त 2016

स्वतंत्रता संग्राम के संकल्प

आओ स्वतंत्रता दिवस मे
ये संकल्प लेँ
1.
कभी जातिवाद के जाल मे फँसकर
आपस मे नहीँ झगड़ेगेँ
दलित सवर्ण के झगड़े नहीँ होने देगेँ न ऐसी छोटी सोच को बढ़ावा देगेँ ।
2.
हस्ताक्षर करते समय मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रयोग करेगेँ
3.
आज कहीँ वक्तव्य देने हो तो
भारतीय भाषाओँ मे ही भाषण देगेँ
4.
जाहाँतक हो सके भारतीय संस्कृति परंपराओँ का सम्मान करेगेँ ।
5.
किसी प्रान्त या क्षेत्र विशेष ,भाषा व वोलीओँ का मजाक नहीँ उड़ाएगेँ ।
किसीको चिँकि ,भैया ,मालिया,कालिया नहीँ कहेगेँ ।
6.
भारत कि अखण्डता बनाए रखेगेँ,
विहारी हो गुजराती हो या पंजाबी सभी का सम्मान व आदर करेगेँ !
7
.न भ्रष्ट होगेँ न भ्रष्टाचार होने देगेँ ।
घुस देगेँ न घुस खाएगेँ
8.
अंधे सेकुलारी नहीँ बनेगेँ
सच्चे सेकुलारी बनेगेँ
आजम, औविसी जैसे मूर्ख राजनेताओँ का विरोध भी करेगेँ
कलाम जैसे सच्चे राष्ट्रभक्तोँ का
आदर व सहायता भी करेगेँ ।
मैँ नहीँ कहुगाँ तुम प्याँट सार्ट उतारके
धोती पहन लो या तिरंगा लैके गाँव गाँव सहर सहर घुमते फिरो
लेकिन यदि तुमने इतना भर कर लिया
तुम आजाद हो !
आजाद मुल्क मे
आजादी के जश्न मे 100% हिस्सा ले रहे हो ।

~वाघा जतिन कि बलिदान~

बंगाल ,कुष्टिया जिल्ला के वाघा जतीन ने हसपताल मे स्वयं अपना बलीदान
दे दिया था अंग्रेज के हातोँ पकड़े जाने पर भी
अंग्रेज नहीँ दे पाए उन्हे यातनाएँ
या फाँसी !!
वालेश्वर जिल्ला चषाखंड गाँव मे
युवकोँ का एक टोली अंग्रेजी फौज के उस ओर के रस्तोँ से गुजरने के इंतेजार मे था
कुछ घँटो
बाद
अंग्रेज आए
तो गुफा मे छिपे
युवकोँ ने
बंदे मातरम कि गुंज के साथ उनपै टुट पड़े और अंधाधुन गोलीवारी कर दी
पहले पहल अंग्रेज तितर वितर हो गये
लेकिन जतिन और उनके साथीओँ के पास सीमित
गोली थी
धीरे धीरे इनकी गोली खत्म हो रही थी वहीँ अंग्रेज सैनिकोँ ने भी काउँटर आटाक् शुरुकरदिया ।
और फिर
कुछ मिनट तक गोलीवारी के बाद
एक गोली चित्तप्रिय को लगा
वो गिर पड़ा
वहीँ विरेन्द्र , जौतिष तथा 2 अन्य युवक घायल हुए ।
जतिन्द्र यानी बाघा जतिन
के कंधो पर गोली लगी
दायेँ हाथ मे गोली लगी
एक गोली से बचने के चक्कर मे वो उछले
चट्टान मे टक्कर के वजह से उनके माथे मे से खुन निकलने लगा
फिर भी वो गोली दागे या रहे थे
दागे या रहे थे
अन्ततः ये वीर युवक चारोँ तरफ से घेर लिए गये
एस पि रेगार्ट ने उन्हे धरलिया
वालेश्वर हसपताल मे बाघाजतिन घटोँ वेहोश पड़े रहे
उनके कंधा हात से गोली निकाल लिया गया था
कई जगह क्षताक्त हुए थे
उनपै पट्टी बाधां गया था
बाघा जतिन को होश आया
वो सब समझ गये
उन्होने अट्टहास किया
और सारी पट्टिआँ खोल दी
वो हँसते रहे
उधर उनके अंगो से खुन बहता गया बहता गया
और इस तरह
कभी बचपन मे जंगल मे वाघ को चित् करदेनेवाले
यतिन्द्र नाथ ने स्वयं कि बलिदान देकर के अंग्रेजोँ के जीत को हार मे बदल दिया था !
(अब अंग्रेज उनको ठिक होने के बाद फाँसी ही देनेवाली थी लेकिन स्वाभिमानी यतिन्द्र नाथ को ये मंजुर न था)