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बुधवार, 29 जुलाई 2015

बामण्डा राजा सार् वासुदेव सुढ़लदेव एक संक्षिप्त परिचय प्रथम भाग

ये बर्तमान सम्बलपुर जिल्ला की बामण्डा क्षेत्र मेँ बासुदेवपुर गाँव कि बात है ।
1890 अंग्रेजी साल मेँ 80 वर्ष का एक बृद्ध ,
कन्या पक्ष को 250 रु की लालच देकर के अपना व्याह रचाने जा रहा था ।
जिस कन्या के साथ वो शादी करनेवाला था उसका उम्र केवल मात्र 8 वर्ष था ।
किसी तरह ये बात बामण्डा राजा सार् वासुदेव सुढ़लदेव जी को पताचला ।
वे तुरंत वहाँ पहँचे और उस शादी पर रोक लगाया । यहाँतक कि उस बृद्ध व्यक्ति द्वारा उत्कोच दियेगये धन को कन्यापक्ष को देते हुए
बृद्ध व्यक्ति पर व्यग्यं के बाण चलाते हुए बामण्डा राजा ने कहा

"ये अपने बृद्धावस्ता मेँ शादी का यह मुकुट पहनकर क्या आप निकट भविष्य मेँ आनेवाली उस भयंकर मृत्यु को टाल जायेगेँ ? आप तो महायात्रा के यात्री है फिर ये क्षणीक मोह मेँ भला क्युँ घिरगये ???"
बृद्ध ये सुनकर निर्वाक हो गये लज्जित हो गये ! फिर
1893 मेँ बामण्डा (Sambalpur) राजा सार् बासुदेव सुढ़लदेव जी ने
अपने राज्य मेँ बृद्ध विवाह प्रथा निषिध कि थी !
1903 मेँ एक विज्ञप्ति के जरीये कन्या का सर्वनिम्न 12 वर्ष व वर का 14/15 वर्ष वाली कानुनी घोषणा किया गया था ।

अपने #चिलिका खण्डकाव्य मेँ ओड़िआ कवि राधानाथ राय जी नेँ वासुदेव सुढ़लदेवजी कि प्रशंसा करते हुए लिखते है

"Pahilani ghora taamsi jaamini
phutiba utkal bhasa kamalini
a ghora jamini abasaan sansi
kabyatara rupe bira
gangabansi
udile prathame
bamanda raajana
basudeb biswa kalyanbhajana "

वे एक परोपकारी राजा तथा ओड़िआ भाषा को अन्धकार से उजाले कि और ले जानेवाले प्रभावशाली कवि थे !
उन्होने हीँ परवर्ती साहित्य साधकोँ के लिये सारस्वत साधना हेतु प्रेरित किया था ।
नशीले द्रव्योँ पर उन्होने संबलपुर क्षेत्रमेँ निषेधाज्ञा लगया था । कम्भु खाँ नामसे एक कनेष्टस ने राज आदेश अवज्ञा की तो कार्य से निलम्बित किया गया तथा उसके खिलाफ संबलपुर हितैषिणी मेँ खास लेख छपाया गया था ।
ये संबादपत्र को कुछ आलोचक राजा जी का मानस पुत्र बताते है समाज को चीरजाग्रत करना था इसका परमोद्देश्य ।
सतीदाह प्रथा , कुलिप्रथा या दासत्वप्रथा , छृआँछुँत व जातपात जैसे सामाजिक व्याधी उन्मुलन के लिये बामण्डा राजा ने प्रयत्न किया था ।
उन दिनोँ दासत्वप्रथा के चपेट मेँ फाँसकर लोगोँ को सुदूर आसाम भेजदियाजाता था । सुढ़ळदेव वासुदेव जी ने पल्टिकाल एजेँटोँ से दासत्व प्रथा बंद कराने के लिये मजबुर करदिया ।
ख्रीस्तियन धर्मप्रचारक P.E. Heberlet का हिन्दुधर्म के प्रति भ्रान्त धारणाओँ का तिव्र समालोचना व खण्डन करते हुए उनकी सोच बदलने मेँ कामियाब हुए थे । उनदिनोँ उत्कल दिपिका पत्रिका मेँ ये लेख अंग्रेजी व ओड़िआ मेँ छपा था ।
बाद मेँ हेवर्लेट ने क्षमा याचना कि तो राजा ने उन्हे माफ करदिया था ।
मरहट्ट व अंग्रेजी राज काल मे संबलपुर क्षेत्र ओड़िआ माषा कम हिन्दी भाषा पर ज्यादा निर्भर करने लगा ।
वासुदेव सुढ़लदेव जी के चैष्टा के वजह से संबलपुर प्रान्त मेँ आज कुछ लोगोँ छोड़दिया जाय तो अधिकाँश लोग ओड़िआ भाषा समझते है ।

1872 मेँ राजा ने बामण्डा मेँ पहला विद्यालय कि स्थापना की थी और 1894 तक यहाँ 13 विद्यालय खुलचुके थे ।
1895 संबलपुर मेँ हिन्दी के बदले ओड़िआ को राजभाषा का दर्जा मिला तब मध्य ओड़िशा मेँ हर राजकाज अंग्रेजी हिन्दी मे हो रहा था ।

व्यासकवि फकीर मोहन सेनापति जी ने वासुदेव सुढ़ल देव जी के प्रंशसा मेँ "Abasara baasare" काव्य मेँ लिखा है

Bhasa joge chinna chinna thila ae utkal
bandhila aekata sutre tume hin kebal
kalpalata sammilani utkal desha re
prathama re uptabija tumbha hrudaya re
tumhara patrika labhiachi
uchastana
tumbhe aeka karijaan kabi nku sammana !

[[भावार्थ]]

भाषा आधार पर खण्ड खण्ड था ये उत्कल
बांधा एकता के सुत्र मेँ तुमने हीँ केवल

कल्पलता सम्मिलनी उत्कल देशे मे
प्रथम अंकुरोद्गम हुआ तुमरे मन मेँ
तुम्हारी पत्रिका को मिला सबसे उँचास्थान
तुम्हे ही जानते हो कैसे होता है कविका सम्मान ।

सम्बलपुर हितैषिणी के सँपादक विद्यारत्न द्वारा गढ़ागया गंजाम सम्मिलनी आगे चलकर उत्कल सम्मिलनी नामधारण पूर्वक ओड़िआ भाषा संस्कार रक्षक बनकर उभरता है ।

क्रमशः.....