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रविवार, 17 मई 2015

योद्धाओँ कि जाति पाइक जाति

पाईक paika ओड़िशा का एक जाति है बर्तमान समय मेँ यह मुख्य रुप से तिन अलग अलग उपजातिओँ मेँ बँटगया है ।
1.खंडायत
2.बेणायत
3.पहरी - काळिँजि
इसके अलावा वाणुआ और ढ़ेँकिया भी पाईक कहलाते है

1.युद्धक्षेत्र मेँ तलवार चलानेवाले सैनिक
2.बेणायत घोड़े व हाथी पर लढ़नेवाले
3.कौतवाल व पहरादेनेवाले पहरी
4. युद्धक्षेत्रोँ मेँ तीरंदाजी करनेवाले बाणुआ कहलाते थे

5.आतर्कित ढ़ाल बर्छे से हामला करने वाले ढ़ेँकिया कहलाते ।
पाईक/Paika शब्द मूलतः संस्कृत से आया है जिसका अर्थ है पदातिक/Padatika meaning [[ the infantry, and hence the name of the dance is battle (paika) dance (nrutya)]] .

ओड़िशा मेँ गंग साम्राज्य Gango empire And gajapati गजपति राजत्व काल को स्वर्णयुग कहाजाता है ।
तब ओड़िशा का विस्तार गंगा से गोदावरी तक था
और साम्राज्य बचाने का जिम्मेदारी पाईकवीरोँ पर होता था । पाईक Paika नियमित योद्धा नहीँ थे परंतु वे नियमित अभ्यास करते थे आज भी गाँव के Paika akhada पाईक आखड़ाओँ मेँ युद्धाभ्यास होता है परंतु आज यह केवल कुछ एक क्षेत्रोँ मेँ देखने को मिलता हे खासकर उनगाँव मेँ जहाँ क्षेत्रिय कूल वहुतायत मेँ पायेजाते हो । पाईक PAIKA शान्तिकाल मेँ राजा द्वारा प्राप्त भूमि पर खेति करते थे और युद्ध कि घोषणा पर युद्धभुमि मेँ जाकर लढ़ते थे
। पाईकोँ नेँ लम्बे समयकाल तक मुगलोँ,तुर्क तथा मराठीओँ से लोहा लिया परंतु 16वीँ सदीके बाद
*श्री चैतन्य आदि द्वारा भक्तिवाद का प्रचार
के वजह से लोग आलसी व अंधभक्त बने
*जलवायु मेँ उतारचढ़ाव से लगातार सुनामी आनेलगा और कलिंगसागर कहलानेवाला जलराशी गहराई खोनेलगा जिससे ओड़िशा मेँ चक्रवात और बाढ़ कि स्थिति उत्पन हो गई । च्युँकि पाईकोँ का गुजारा खेती से चलता था उनको इस प्राकृतिक आपदा से भारी नैराश्य और नुकशान हुआ ।
* पुरी खोर्दा कटक ढ़ेकानाल गंजाम पारलाखेमुंडी अनगुल आदि क्षेत्र के राजघरानोँ मेँ आपसी कलह भी एक पाईकोँ मेँ आपसी मतभेद का मूल कारण है
अठारवीँ सदी तक पाईकोँ का पुरा का पुरा संगठन अलग अलग उपजातिओँ मेँ बँटचुका था परंतु 1803 मेँ अंग्रेजोँ का ओड़िशा पर चढ़ाई से स्वाभिमानी ओड़िआ जाति खासकर पाईकोँ मेँ पुनः एकता आनेलगा । 1803 से 1819 तक ओड़िआ जाति अंग्रेजोँ के खिलाफ लढ़ती रही 1857 से 40साल पूर्व हुए इस विद्रोह को पाईक विद्रोह कहाजाता है ।
यह भारत का सर्ब प्रथम ज्ञात विद्रोह था इसके नेता थे बक्सी जगबंधु ।
वो भारत के पहले ऐसे शहीद है जिन्हे अंग्रेजोँ द्वारा कटक की एक बरगद के वृक्षशाखा मेँ फांसी दिया गया था ।

आज कर्पुर उड़गया है बस महक बचा है
आज भी कटक ,मयुरभंज ,अनगुल ,ढ़ेकानाल ,नयागड़ ,जाजपुर ,पुरी आदि क्षेत्रोँ मेँ आखड़ाघर है लौँड़े समर अभ्यास कम गप्पे मारने जाते है

विभिन्न पुजापर्व मेँ पाईक तलवारकला पदर्शन होता हे
इसे CHAOU नृत्य कहाजाता है । ओड़िशा के अंश रहचुके सरेईकेला खरसुँआ आदि क्षेत्रोँ मेँ भी पाईकोँ का समुह निवाश करता है ये पहरी कूल के पाईक है जिनका कार्य होता था राज्य कि सीमा सुरक्षा करना ।

ISCKON इस्कॉन कि सच्चाई

इस्कॉन ISCKON या अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ(International Society for Krishna Consciousness.)क्या सही मायने मेँ एक धार्मिक संगठन है या भारतीयोँ के भगवन ,भक्ति और भावनाओँ से करोड़ोँ कमाकर अपना संस्था चलानेवाली अमरीकी कंपनी ?
हम सब जानते हे कि इसे 1933में न्यूयॉर्क पर भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने प्रारंभ किया था । देश-विदेश में इसके अनेको मंदिर और विद्यालय है । शुरवात मेँ इस संस्था कि बागड़ोर एक संथ के हाथ मेँ था अब विदेशीओँ के हाथ मेँ ! भारतीय संत कभी धर्म को लेकर विजनेस नहीँ करते ये तो । इस्कॉन कि उन मंदिरोँ मेँ चढ़ाये जा रहे चंदे और नगदी से यह संगठन दिन व दिन और शक्तिशाली धार्मिक संस्था बनराहा है । Oh my god फिल्म मेँ कथानक के जरिये इस संस्था पर हीँ प्राहार किया गया था । धर्म के नाम पर फ्राँचाईजी बनाना कोई नईबात नहीँ है मध्यप्राच्य और युरोप के पैगम्बरोँ ने 2000वर्ष पूर्व इसकी शुरुवात करदि थी ।
अब सवाल हिँदुओँ का है क्या इस्कॉन उनके लिये लाभकारी है ?
मानसिक लाभ मिलचुके भक्त इसके गुण गाते पायेगये है जबकि भारतीय बुद्धिजीविओँ नेँ इसे संदेहास्पद माना ।
फेसबुक के धर्मधुरंधर कभी मंदिर न जानेवाले भगवा भक्तोँ को यह लेख अनुचित ही लगेगा च्युँकि वे आँख बंदकर अंधे होना का ढ़ोँग करने मेँ माहिर है ।
यहाँ सवाल आस्था का नहीँ है अपितु आस्था के नाम पर लोगोँ के भावनाओँ से खेलकर पैसे कमाये जा रहे हे । आपको मंदिर मेँ जाना हे तो बिना फ्राँचाईजी वाली मंदिर मेँ जायेँ इस्कॉन मेँ जाकर आप अपने ही देश का पैसा बिना किसी लाभ के विदेशीओँ को मुफ्त मेँ दे देते है
भगवन हर जगह है

और्व ऋषि जन्म व सम्यक जानकारी

महाभारत के बनपर्व मेँ ‪#‎ और्व‬ऋषि के बारे मेँ एक कथा है वो इस प्रकार है:-
और्व अतिप्राचीन और प्रसिद्ध ऋषि है । प्राचीन काल मेँ क्षत्रिय ,भृगुवंशीओँ के यजमान हुआ करते थे । किसी कारणवश क्षत्रियोँ का पुरोहित भृगुवंशीओँ से कलह हुआ इससे क्षत्रिय कुल कोधावेग के चलते सती ब्राह्मणीओँ का अपमान करने लगे । क्षत्रियोँ के इस अत्याचार से त्रस्त च्यवन ऋषि कि पत्नी आरुसी नेँ जंगल कि और पलायन किया ।
उस अवला नारी के रक्षा हेतु स्वयं देवराज इंद्र उनके पिछे पिछे अनुधावन कर रहे थे ।
आसन्न विपत्ति से भयभीत उस नारी के उदर पर वृक्षशाखा आघात के कारण और्व ऋषि का आविर्भाव हुआ । समय से पहले भूमिष्ट होने के कारण और्व ऋषि पर माया का कोई प्रभाव न लगा परंतु अपने माता की इस दुर्गति देखकर तभी से और्व रुषि के मनमेँ क्षत्रियोँ के लिये वैरभाव का उदय हुआ ।
वो अपने क्रोधानल मेँ पृथ्वी भस्म करने को उद्यत हुए तो उनके पूर्वजोँ ने उन्हे ऐसा न करने का उपदेश दिया
शान्त होनेपर और्व ऋषि नेँ वो क्रोधानल सागर को दे दिया ।
आगे चलकर समंदरी विद्युत को इसलिये बाडवानल और और्वानल आदि कहाजानेलगा । और्व ऋषि के वंश मेँ रुचिक ऋषि का जन्म हुआ था ।
रुचिक ऋषि जमदग्नी के पिता था भगवन विष्णु के पाचँवे अवतार भगवन श्री पर्शुराम के दादा थे ।

राजकपुरजी का रमैयावस्तावैया गीत की पिछे की कहानी

SHRI 420 का ये सदावाहार गाना आज भी उतना लोकप्रिय हे जितना कल था । इसकी लोकप्रियता देखिये पिछले दिनोँ Ramiya vastaveiya नामसे बॉलीवुड़ मेँ एक फिल्म भी बना था । इस गीत के म्युजिक इसके बोल लिखे जाने से पहले बनाये जा चुके थे । सिच्युएसन कुछ ऐसा हुआ कि राजकपुर जी को इस गीत को जल्दवाजी मेँ सुटिँग करना था । राजकपुरजी नेँ इस फिल्म के संगीत निर्देशक शंकर_जयकिशन जी को इस गीत के जल्द से जल्द तैयार करने की बात कही । शंकरजयकिशन तेलगु भाषा के जानकार थे वो हमेशा डमी संग से म्युजिक सुनाया करते थे । इस गीत का म्युजिक भी उन्होने डमी संग के जरिये राजकपुरजी को गा कर सुनाया । यहाँ जब उन्होने रमैया वस्तेवैया शब्द का इस्तेमाल किया वो राजकपुर जी को अछा लगा और इसतरह से रमैया वस्तावैया का ये गाना बना । अब मन मेँ स्वतः प्रश्न उठता हे की ये रमैया वस्तावैया का मतलब क्या है ? दरअसल यह वाक्य तेलुगु भाषा का है रमैया अर्थात् "राम या रामा" नामवाचक शब्द और वस्तावैया का अर्थ है "क्या तुम वापस आओगे"

राहुल गांधीजी का तेवर

इनदिनोँ बुढ़ापे की कगारतक पहचँचुके राहुलजी अपनी बचीकुची जवानी की जोश को बिना होश के बिजेपी पर दिखा रहे है । अब ये सिर्फ भगवनजी जानते होगेँ की राहुलजी का ये तेवर - TEVER Film देखकर बदला या ये बाबा रामदेवजी द्वारा बनायेगये पुत्रजीवक बुटी का Sideefects है ।
राहुल जी नेँ हाल ही मेँ जो All time hit shows का पदर्शन किया वो केजरु सर जी का Hangover भी हो सकता है परंतु हमेँ उससे क्या लेनादेना हम राहुलजी को अध्ययन करने निकले है ।
1 साल मेँ राहुलजी ने बिजेपी के लिये प्रचार किया और आखिरकार बिजेपी को ऐतिहासिक जीत दिलाई
परंतु कुछ अंधभक्तोँ ने इसका श्रेय साहेब को दे दिया ।
नाराज हो राहुलजी कुछ दिन मौन रहे
वो आत्मसमीक्षा करने हेतु भगवनजी का ध्यान करने लगे
तबतक इस मंदबुद्धि बिजेपी सरकार नेँ उनके चरित्र की जासुसी की
राहुलजी फिर भी चुपरहे
कुछ न बोले उधर पार्टीवाले इसबात पर हायतोबा मचारहे थे
इसबीच राहुलजी आत्मचिँतन करने पतानहीँ कहीँ अंतर्ध्यान हो गये या पालनकर्त्ता विष्णु जी से मिलने ब्रह्मलोक गये थे ये बतना मुझ साधारण मानव के लिये नित्यान्त कष्टसाध्य है ।
फिर एकाएक 56 दिन की अज्ञातवास के पश्चात उन्होने आते ही जिसतरह से मोदी सरकार पर वार किया वो काफी सराहनीय है । पंजाब की रेलयात्रा करते हुए उन्होने गांधीजी कि याद दिलाई , GENRAL बोगी मेँ बैठकर उन्होने लालची व गरिबोँ को IMPRESS किया और इसतरह से पार्टीवाले तथा कुछ विरोधीओँ को भी खुस करदिया मनमेँ उम्मिद जगादिया ।
अब सुटबुट पर हालिया टिप्पणी देकर वो देश मेँ पुनः पुरातन पहनावा को अपनाने की
कारगर अभियान चलाने कि कोशिश कर रहे तो अंधभक्त उनपर खफा है ।
पतानहीँ इस देश के लोग कब स्वदेशी द्रव्य व संस्कृति को महत्व देगेँ
स्वदेशी आंधोलन को पुनः जीवित करनेवाले महान आत्मा श्री राहुल गांधी जी को हम दूर से नमन करते हुए इस लेख कि समाप्ति करते है ।

एडलोफ हिटलर का बचपन

एड़ोल्फ हिटलर बालपन मेँ अत्यन्त अंतर्मुखी थे ,पढ़ाइलिखाई मेँ कमजोर हिटलर का हमेशा स्कुलमेँ मजाक उड़ाया जाता था । व्यक्तिगत जीवन के बारे मेँ प्रायः एडलोफ हिटलर आजीवन चुप रहे परंतु उनके मिजाजी सरमुखत्यार छबि दृढ़ बनने से पहले 1923 मेँ ज्योर्ज सिल्वेस्टर नामके एक अमरिकन पत्रकार को एक साक्षातकार दिया था ।
1923 मेँ जब जर्मनी प्रथम विश्वयुद्ध कि पेनाल्टी भरभर कर थकचुका था और राष्ट्रिय राजनीतिमेँ हिटलार का कोई बृहत्त क्षमता न था ऐसे हालातोँ मेँ भी हिटव दुनिया पर राज करने की हुँकार कर रहे थे । जब पत्रकारोँ ने उनके एतादृश आत्मविश्वास कारण पुछा तो हिटलर नेँ एक किस्सा सुनाते हुए कहा
"बाल्यकाल से ही मेँ अलगथलग रहाकरता था स्कुल मेँ मारे IQ का मजाक उडाया जाता था तब मेरी उदासी दूर करने के लिये मेरी माँ मुझे कहानी शुनाया करती घोड़े पर चढ़कर लढ़नेवाला राजकुमार राक्षसोँ को मारनेवाला देवता आदी कहानी मेँ पात्र व कथानक बदलजाते थे परंतु उन कहानीओँ मेँ हिरो का नाम हमेशा एडोल्फ ही होता था !!!"
हिटलर का कठिन चुनौतिओँ के आगे लढ़ते रहनेवाली जुनुन कहाँ से आया था आप समझगये होगेँ ।
हिटलर की माता आखरी दिनोँ मेँ विमार व मशरुफ हो गयी थी ।
एडलोफ हिटलर की माता ब्रेस्ट कैँसर से पीडित थीँ और इसके निदान के लिये पर्याप्त धन घर मेँ न था । एडलोफ नेँ अपनी माता को तड़पता हुआ नजदिक से देखा था उन्होने निकट मेँ रह रहे एक डॉक्टर को अपनी माता को बचाने की गुहार करने लगे तो वो डॉक्टर एडवाँस मे पैसा माँगने लगा । मुस्किलोँ के इन दिनोँ मेँ कई दोस्तोँ ने उनका साथ छोड़दिया था उनमेँ से ज्यादातर JEWS थे ।
जर्मनी के कर्ताधर्ता बनने के पश्चात यहुदीओँ से वैर का एक कारण इहुदी मित्र और डोक्टर भी थे जिन्होने मुस्किलोँ के वक्त उनका हाथ छोड़दिया था । माता का बत्सल्य पुत्रको पराक्रम करने के लिये प्रेरित करता है और माता के साथ हुए दूर्वव्यवहार का खुन्नस की चरमसीमा पर भी पहँचसकता है

दिखावा उतना करो जितने की औकात है

मैनेँ अपनी गाँव की एक लड़की का नाम माताजी को मेरी शादि के लिये सुझाया । लड़की एक तो पड़ोशी थी उपर से #खंडायत जाति की तो घरवाले शादि के लिये तैयार हो गये ।
माताजी ने मेरा मन रखने के लिये उसकी माँ से बात की परंतु उस लड़की की माँ ने कहा की मेँ सभी रिस्तेदारोँ से सलाह विचार करके बताती हुँ ।
वक्त बितता गया और इसबीच मेँ
दो महिनोँ बाद गाँव गया तो उस लड़की कि माँ मिलने आयी फिर उसके एक आद रिस्तेदार भी मिले ।
उनके बातोँ से पताचला मानोँ वो मेरा मजाक उड़ा रहे हो और नसिहत्त दे रहे हो अपनी हालात सुधारने के लिये ।

आजकल घर कि मालिहालत उतना ठिक नहीँ ,बहन कि शादि मेँ काफी खर्चा हो गया था । मेरे पिताजी भी डाइवेटिस से पीड़ित है ,मेँ थोड़ा पतला और क्रोधी स्वभाव का हुँ शर्मिला भी ।
अतः हमेँ ये सब झेलना पड़ा


आज के दौरमेँ लौँड़ो के पास गर IPHONE 6 व वैँक एकाऊँटमेँ थोड़े से पैसे है तो आपका कद्र होता हे बाकी लड़का कितना ही गुणवान हो कोई फर्क नही पड़ता ।

कल लड़की की माँ ने मेरी माताजी को चिढ़ाने के लिये कहा मेरी बेटी के लिये #Gurujunga गाँव से शादि का रिस्ता आया है और तो और लड़केवाले उल्टा हमेँ पैसे देगेँ ।



अब मुझे लगता हे ये थोड़ा ज्यादा हो गया :-D :-D :-D
*दशवी फैल
*तंबाकु खानेवाली
*अड़ियल लड़की
के मातापिता भी साधारण कृषक है और लड़की उतनी सुंदर भी नहीँ की लड़केवाले रुपियापैसा देकर शादी करवायेँ

मैँ उसे बचपन से पसंद किया करता था परंतु वक्त के साथ साथ उसने तंबाकु खाना शुरुकरदिया और उसके हालियाँ बर्ताप भी बदलने लगा है । ऐसेमेँ आज माताजी ने आज जब फोन करके यह बात बताया मैँ 10 मिनिटतक हँसने लगा ।
:-D :-D :-D :-D

उस लौड़िँआ कि परिवारजनोँ को फेसबुक के जरिये बताना चाहुगाँ
दिखावा उतना ही करो जितनी कि तुम्हारी औकात है च्युँकि भगवन किसीकि घमंड को नही साहाकरते ।