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रविवार, 19 अप्रैल 2015

श्रीमाता उर्फ मिरा अलफासा

श्रीमाँ फ्रासंसी मूल की भारतीय आध्यात्मिक गुरु थी । हिँदु धर्म लेने से पहलेतक उनका नाम था मीरा अलफासा । उन्हे श्री अरविँद माता कहकर पुकारा करते थे इसलिये उनके दुसरे अनुयायी भी उन्हे श्रीमाँ कहने लगे । मार्च 29 1914 मेँ श्रीमाँ पण्डीचेरी स्थित आश्रम पर श्री अरविँद से मिली थीँ और उन्हे भारतीय गुरुकूल का माहौल अछा लगा था । प्रथम विश्वयुद्ध के समय उन्हे पण्डिचेरी छोड़कर जापान जाना पड़ा था । वहाँ उनसे विश्वकवि रविन्द्रनाथ टैगोर से मिले और उन्हे हिन्दुधर्म की सहजता का एहसास हुआ । 24 नवेम्बर 1926 मेँ मीरा आलफासा पण्डिचेरी लौट कर श्रीअरविँद की शिष्या बनीँ । श्रीमाँ के जीवन की आखरी 30वर्ष का अनुभव एक पुस्तक मेँ लिखा गया है इसका मूल अंग्रेजी नाम है The Agenda । श्री अरविन्द उन्हे दिव्य जननी का अवतार कहा करते थे । उन्हे ऐसे करने का जब कारण पुछागया तो उन्होनेँ इसपर The mother नाम से एक प्रबन्ध लिखा था ।
श्रीमा / मिरा अलफासा का बचपन पैरिस मेँ कटा था ।
1878 मेँ पैरिस मेँ मूल तर्किस् इहुदी पिता मरिस Maurice तथा इजिप्टियन माता माथिलडे के गोद मेँ उनका जन्म हुआ था । माटेओ (Matteo) उनका एक बड़ा भाई भी था । मिरा अलफासा के जन्म से पूर्व उनके पितामाता अपना देश छोड़ कर फ्रासँ चले आये थे । बचपन का आठसाल उन्होने 62 boulevard Haussmann नामक जगह पर बिताया था ।
अपने बाल्यकाल का अनुभव के बारे मेँ मिरा आलफासा नेँ एक किताब मेँ बताया है ।
5 वर्ष के उर्म मेँ वो खुदको दुसरे दुनिया से आयी समझती थीँ
और 13 वर्ष तक आते आते वो तन्त्रमंत्र आदी अदभुत विद्याओँ का अभ्यास करने लगीँ थी ।
14 वर्ष के उम्र मेँ उनका दाखिला एक कला केन्द्र मेँ हुआ ओर एक वर्ष वाद उन्होने एक रहस्यमय पुस्तक लिखा था The Path of Later On (Alfasa ୧୮୯୩). उसी वर्ष वो अपनी माता की साथ इटली गइ । 16 वर्ष की उम्र मेँ मिरा अलफासा नेँ Ecole des Beaux Arts नामका नाटक कंपनी मेँ काम किया । वहाँ उन्हे सभी "the Sphinx") बुलाया करते थे । 1987 मेँ मिरा आलफासा प्रशिद्ध इटालियन कुक् Gustave Moreau के छात्र हेनेरी मोरिसेट से विवाह बंधनोँ मेँ बंधगयी । विवाह पश्चात मिरा और हेनरी 15 Rue Lemersiar मेँ रहने लगे । इस बीच पैरिस कलाकेन्द्र मेँ उन्होने अपना योगदान दिया । युँ देखाजाय तो मिरा अलफासा वेनसेट नेँ 20वर्ष के अपने अपने प्रारम्भिक जीवन मेँ उछ्छतम शीखर पर पहचँगयी थीँ । कुछ दिन के अतंराल मेँ उनको स्वामी विवेकानंद का लिखा एक पुस्तक मिला । यहाँ से उनके मनमेँ भारतीय संस्कृति सभ्यता और धर्म को जानने की उस्छुकत्ता बढ़ा । 2 वर्षवाद उन्होने एक भारतीय और एक फ्राँसीसी को गीता पढ़ने के लिये प्रिरित किया । तब मिरा नेँ गीता का फ्रेँच अनुवाद ही पढ़ा था वो उतना उत्कृष्ट न था पर वो इसका मर्म और उद्देश्य समझगयी थीँ । 1898 मेँ वे आंड्रे नामक पूत्र का माता बनीँ ।
मिरा कहती है की 1904 मेँ एक कृष्णवर्ण एसिआई व्यक्ति का चहरा दिखा उन्होने उन्हे कृष्ण कहा । 1905 मेँ मिरा Max Théon नामक एक साधक से मिलीँ और दुसरीबार मिलने के लिये अपने पति मोरिसेट के साथ Tlemcen, Algeria स्थित उनके वासभवन मेँ गई थीँ । वहाँ उन्होने थिअन और उनकी पत्नी से आध्यात्मिक साधना आदि के वारे मेँ शिक्षा प्राप्त हुआ । आखिरकार 1908 मेँ उन्होने अपने पति मोरिसेट को तलाक दे दिया और नियमित आध्यात्मिक साधनाओँ मेँ रत हो गई ।
[[विकिपिडिया मेँ आज मेरे द्वारा आदित्य महार जी का मिरा अलफासा जी पर ओड़िआ लेख का हिन्दी अनुवाद का योगदान दिया गया ]]

आम का शब्दिक परिचय

कुछ दिन पहले फलोँ के राजा "आम"(Mango) के लिये संस्कृत शब्द प्रयोग पर किसी के लेख कर भारी वहस छीडगया था । संस्कृत मेँ आम के लिये एक शब्द है चुतक और इसका एक रुप है ‪#‎ चुत‬!
वैसे संस्कृत मेँ आम के लिये कई शब्द प्रयोग किया गया है जैसे
स्त्रीप्रिय,अम्लफल,चामरपुष्प,राजफल,वसन्तद्रु,आम्रफल,मधूली,सुमदन,प्रियाम्ब,मधुद्रुम,फलोत्पति,पिकराग,पलालदोहद,वृद्धवाहन,वसन्तदूत,चुतक,लक्ष्मीश,माकन्द,कामेष्ट,कीरेष्ट,कोकिलावास,गन्धबन्धु"
आदि कई नाम पायेजाते है । तो केवल एक शब्द के लिये इतना भेजामारी करने से क्या फायदा जबकी इस फल का कई नाम प्रयुक्त हो चुके है ?
हिन्दी साहित्य मेँ इसके अनेक नाम पायाजाता हे, जैसे सौरभ, रसाल, चुवत, टपका, सहकार, आम, पिकवल्लभ आदि ।
गुजराती मेँ केरी (કેરી) ,ओड़िआ मेँ आम्ब+अ (ଆମ୍ବ) , मलायलम मेँ माव् (മാവ്) ,तेलुगु मेँ
भारतीय मामिडि(మామిడి) , इटली मेँ आम को Pelem , और इंडोनेशिया मेँ MANGA कहाजाता है ।
अंग्रेजी मेँ Mango शब्द पर्तुगिज शब्द माङ्ग सेँ गया है और यह माङ्ग शब्द मूलतः मलायलम शब्द "माव्" का परिबर्तित रुप है । पुर्तुगालीऔनेँ आम को ले जा कर युरोप को इस फल के बारे मेँ परिचय दिलाया था ।