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गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

अलीवावा और 544 चोर



आजकल के नेताओँ मेँ कोई शरम लिहाज तो वचा नहीँ हे । संसदभवन को अखाड़ा और नाटक मंच समझनेवाले नेताओँ को आखीर कौन समझाये ? यहाँ तो खुद आम इंसान सच्चाई का सामना करने से ड़रता हे । अन्ना केजरी जगमोहन ममता मोदी राहुल आपस मेँ लढ़ते रहते है क्युँ कि समाज उनको बढ़ावा दे रहा हे । दुर्वल मानसीकता के लोग खुद पिछे रहते तबतक जबतक उन्हे कोई नायक नहीँ मिलजाता ! इन लोगोँ को किसी के उपर तो गुस्सा निकालना ही है बस अलग अलग पार्टि बनालेते और एक दुसरे पर आरोप प्रत्यारोप और किचड़ उछालते रहते । इन चोरोँ के सरदारोँ को कोई नहीँ समझाता कि यह उनका बाप का माल नहीँ जो बो फिजुल खर्च करते हे । समाज के अस्थायी नौकर खुदको अगर राजा महाराजा समझनेलगे तो हो गया रावणराज ! कभी धुप न पड़नेवाले एसी रुम मेँ बैठकर इस गरीब देश को चलानेवालोँ को क्षेत मेँ काम कर रहे गरीब किसान की मजबुरी का क्या ग्यान होगा । चाय बेचनेवाला टैकसी चलानेवाला और किसान जिस दिन भारत का प्रधानमंत्री बनेगेँ तब शायद कुछ बदलाव आये । 544 चोरोँ के पीछे आजकल चुनावी भुत लगा हे इसलिये ये लोग एक दुसरे को निचा दिखाने मेँ लग गये है । और इनके चमचे .....आजकल चमचोँ का इज्जत ज्यादा हे । जितना प्रचार करोगे उतने मिठाई खाओगे । हाय रे .....ये गुलामी का दौर कब खत्म होगा ?