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शनिवार, 10 अगस्त 2013

भारतीय धर्मग्रन्थ और विज्ञान

भारतीय धर्मग्रन्थो मेँ ऐसे वैज्ञानिक रहस्य छुपा है जो कि आज भी प्रासंगिक है । परंतु अधिकांश लोग क्युँ की शास्त्र और पुराणो का तात्विक अर्थ निकालने मेँ असमर्थ हे इनके गहरायी योँ को समझ नहीँ पाते और अपने अल्प ज्ञान से धर्म कि व्याख्या करने लगते हे । बड़े दुःख कि वात है भारत हिन्दुवहुल राष्ट्र होते हुए भी हिन्दु धर्म को उतना मान नहीँ मिलता जबकि सनातन हिन्दु धर्म के समस्कंद दुनिया मेँ कोइ धर्म हि नहीँ है ।

सुप्रभात

सुप्रभात मित्रोँ । आप लोगोँ से एक निवेदन है कृपया अपने मातृभाषा तथा राष्ट्रभाषा का भी प्रयोग कर लिया किजिये । क्युँ की प्रति दिन करोडोँ good morning good evening good night के msg और post होते रहते है परंतु आप मेँ से कितने व्यक्ति यह गर्व से कह सकता है मेँ अपने मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा मेँ भी लिख सकता हुँ या मैने कभी post किया था ?

क्या और क्युँ के चक्कर मेँ

क्या हम मेँ अब पहले जैसा दम नहीँ । क्या हमारे सारे पुरुषार्थ व्यर्थ है । शासक दल का कहना यह है क्युँ की पाक और चीन की संयुक्त शक्ति हमसे अधिक है हम युद्ध करना छोड देँ ? वीरोँ के इस भारत भुमि मेँ क्या एक भी अछा नेता नहीँ हे जो चतुर,दुरदर्शी होनेँ के साथ साथ देशभक्त हो ? हमारे नेता वयानवाजी तो कर लेते है पर उन वातोँ को पुरा करने के लिये ना तो उनके पास समय रहता और न ही इछाशक्ति । दुर्वल नेताओँ को शासन का वागडोर दे देना क्या हमारे मूर्खता को प्रदर्शित नही करते ? निसंदेह भारत मेँ राजनीति सदियोँ से चलता आ रहा है परतुँ कायरता पुर्ण राजनीति सायद अब होनेँ लगे हेँ । जबतक राजनेताओँ के मन मेँ राष्ट्रभक्ति जाग्रत न होगी तबतक देश को जगाना मुसकिल लग रहा है ।

कल और आज मेँ इतने भिन्नता क्युँ ?

मुझे भारत का भविष्य अंद्धकारमय लगने लगा हे । 7 साल पहले का भारत और आज के भारत मेँ कई सामाजिक वदलाव देखा जा रहा हे। भारतीय सामाजिक व्यवस्ताओँ का निरतंर दुर्वल हो रहे हाल से साफ पता चल रहा हे समाज अब पश्चिमी सभ्यताओँ के सँस्पर्श मेँ दुषित होनेँ लगा हे । कभी भारतवासी परिश्रमी उद्योगी और सज्जन हुआ करते थे । समाज मेँ अपराध और अनैतिकता बढ़ रहा है और इन अपराध को वाकायदा पव्लिसिटी भी मिलरहा हे । ईस से निराश हताश और सताये हुए व्यक्ति अकसर गलत रस्ते पकड लेता है ।नतिजा देश के साथ साथ समाज का भी नुकसान कर वैठता है ।सिर्फ कानुन वना लेने से इन गम्भीर विषयोँ पर विजय प्राप्त नहीँ कि जा सकती । हमेँ पहले समाज को गंदे कर रहे उन पाश्चात्य संस्कृती को अपने जीवनचर्या से मिटाना होगा जिनके हम आदि हो चुके है । याद रहे जब कोई समाज अपने भाषा और संस्कृति को त्याग देता है उसका अधोगति तभी से आरम्भ हो जता है ।

करलो लाखोँ हिस्से भारत के ।

कर लो लाखोँ हिस्से भारत के । वना लो कितने और पाकिस्तान । फिर लडतेरहना आपस मेँ । वेडा गर्क हो इस देश का तुम्हारा क्या जाता हे । तेलेगाँना तो वननेवाला ही हे ।। तुम भी अलग हो जाओ किसी नाम के साहारे ।। गुज्जर,सौराष्ट्र,वुँदेलखँड आदि अलग अलग देश बना के ।। फिर काटते रहना एक दुसरे को नहा देना खुन के नदी मेँ हिन्दोस्तान को ।। एक और महाभारत जो वाकी है ।। अलग ना होगे तो युद्ध कैसे होगा ।। वैशक लढो पर देश के लिये ।। पहले पाक से तो निपट लो देश के लिये ।। अलग तो होना हि है भाषा जाति धर्म के नाम पर ।। देश मेँ क्या रखा है ? तुम तो जिते हो सिर्फ एक नाम के लिये ।। (जो हमेशा अलग होने कि वात करतेहै उनसे मूर्ख और कोइ नहीँ । क्या ग्यारेन्टी है गोरखालाँड,कश्मिर वनने के वाद पाक और चीन इनहे आजाद समझेगेँ ये तो यहि चाहते हि है कि हम आपस मेँ लड मरेँ और वो हमारे देश को हतियाले । वीरोँ जागो ! देखो तुम्हारा दुशमन तुम्हे तुम्हारे संस्कृति को ध्वस्त करेदेना चाहता है और तुम इनके वहकावेमेँ आ कर एक दुसरे को मारने पे उतारु हो ? ) जय भारती जय भारत @

धर्म और राजनीति 1

जो लोग यह कहकर पल्ला झाड लेते है मुझे राजनीति और धर्म से कोई सरोकार नहीँ मुझे लगता है ईनसे बढ़कर बेवस और लाचार कोइ और नहीँ है । धर्म के द्वारा मनुष्य एक जीवन जीं सकता है ।और उसको अपने अधिकार प्राप्त करने के लिये राजनीति का ज्ञान भी होना चाहिये । इन दोनोँ के विना मनुष्य जीवन का क्या अर्थ निकलते है ? केवल मात्र एक यन्त्र कि तरह पैसा कमाते कमाते मर जाओ । धर्म के प्रति लोगोँ का आस्ता डगमगाने लगा है ।उन्हे लगता है धर्म राजनीति का एक अंश हे और हमेँ ऐसे तत्वोँ से दुर रहना है । परंतु सत्य तो यह हे राजनीति धर्म का ही एक नगन्य अंश हे जो आज दुषित होने लगा हे । कमजोर इनसान क्या युद्ध करगेँ ? यह तो मरने के लिये डरेगेँ ।

मेँ भी देशभक्त

देशभक्त तो हम वचपन से थे ।। पर पहले सिने मेँ सिर्फ धुआँ उठता था और आज आग हि आग भरा है ।। बचपन मेँ हम गांधी जी कि जय नेहरु कि जय करते थक जाते और कोई वड़ा तीर मारा हो जैसे सोचते ।। और आज इनकी सच्चाई जान लेने के वाद ईनके नाम लेने से पहले एक वार जरुर सोचते हे ।।कल हम सेकुलार थे हर धर्म को मानते थे और आज राष्ट्रवादी है सारे धर्म को जानते हे ।। कल हमनेँ जय जय कार किया था किसी गद्दार के लिये और आज हम जय करते है सेना और भगवान के लिये ।। कल लोग हमसे चिढते थे हमारे बकवास के लिये आज देखो इस पागल के पोस्ट मेँ कितने कॅमेंट मिले ।।

कदम कदम वढाये जा

*****... कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा
ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा
शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से फिर कभी ना डर
उड़ाके दुश्मनों का सर, जोशे-वतन बढ़ाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...
हिम्मत तेरी बढ़ती रहे, खुदा तेरी सुनता रहे
जो सामने तेरे खड़े, तू ख़ाक मे मिलाये जा
कदम कदम बढ़ाये जा ...
चलो दिल्ली पुकार के, क़ौमी निशां सम्भाल के
लाल किले पे गाड़ के, लहराये जा लहराये जा
कदम कदम बढ़ाये जा...@श्री राम सिंह ठाकुर जी द्वारा लिखा गया यह गाना सुनने के वाद मन मेँ स्वतः देशप्रेम जाग्रत हो जाता है । मेरे जीवन मेँ जब मैने कोई विपत्ति का सामना किया करता । यह गाना सुन लेने भर से मेरे अंदर नुतन आशा और जोश भर जाता है । मेरे लिये यह सिर्फ एक गाना नहीँ अपितु समग्र भारतीयोँ के हृदय का स्पन्दन है । भारत आज मुसकिल द्वौर से गुजर रहा है युवको मेँ देशभक्ति कम धनभक्ति वढ़ रहा है ऐसे मेँ भारत को इसी तरह के देशभक्ति गीतोँ की जरुरत हे । (जय भारत जय भारती)

धर्म की सच्चाई

सारे मुसलिम पेहले ये जान ले की उनका धर्म का जन्म कहाँ हुआ ? अरब मेँ और अरव क्या है एक रेगिस्तान । वाहाँ पे ना तो तुलसी,वरगद जैसे पैड उग सकते है । वाहाँ का जलवायु भारत से संपुर्ण भीन्न है और यही कारण है की वाहाँ जन्मे इसाई,ईहुदी,मुस्लिम धर्म उत्तर पूर्व एसिआ के धर्मो से अलग हे । यह सिद्ध हो चुका है की दुनिया का सबसे पुरातन धर्म सनातन हिन्दु धर्म को आधार मानते हुए दुसरे धर्मो का जन्म हुआ । जोराष्टर धर्म से ईहुदी.इसाई और मुसलिम धर्म का जन्म हुआ और इन चारो धर्म मेँ कई समानता देखी गयी हे । पहले सारे विश्व मेँ एक ही धर्म माना जाता था । फिर इनसानोँ ने अपने फायदे के लिये उनमेँ अंधविश्वास भरना शुरु किया जो हर धर्म मेँ मिल जायेगा । मध्य प्राच्य और पश्चिमी देशो मेँ यह अंद्धविश्वास आज भी जीवित है । धीरे धीरे दुनिया का जलवायु वदलाव लगे और अरब जो पहले हराभरा प्रदेश हुआ करता था वंजर रेगिस्तान मेँ वदलने लगा । 5000 साल पहले पृथ्वी ने अपना चुम्वकीय क्षेत्र परिवर्तित किया था जिसके फल स्वरुप पुरे उत्तर आफ्रिका और अरब रेगिस्तान वनगया । इस से वाहाँ के जन जीवन परगहरा असर हुआ । धर्म शास्वत परंतु परिवर्तनशील है और इसके नियम वदलते रहते है । जो इस वात को गहरायी से समझ लेगा वो वास्तव मेँ ज्ञानी पदवाच्य हे । मगर हम इनसान अपने श्वार्थ के लिये एक दुसरे सेलढ़ते रहेगेँ क्युँ की उस ईस्वर नेँ हमारी परीक्षा लेने के लिये ही तो भेजा है....अंत मेँ इतना कहुगाँ "विना विज्ञान के धर्म अंद्धा और विना धर्म के विज्ञान लंगडा होता है"