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सोमवार, 10 अगस्त 2015

कवीरदास जी की टंक तोराणी

भारत मेँ एक प्रसिद्ध साधु हुए हेँ मुलक दास जी , वे प्रयाग नजदिक #कड़ागाँव मे जन्मे थे । एक दिन नियति ने उनसे उनकी पत्नी व पुत्री को छीन लिया । मृत्यु पश्चात् उनका परिवार कहाँगया अर्थात् उनकी गति ब्रह्मलोक मेँ हुआ अथवा अन्य लोकोँ मे ये जानने कि जिज्ञासा ने मुलकदास जी को साधु बनादिया ।
उनके गुरु श्रीरामानन्दचार्य
जी व गुरुभाई है श्री तुलसी दास जी !

मुलक दास जी ने मन की जिज्ञासा हल करने हेतु समुचे भारत का भ्रमण कर लिया ।
अन्त मेँ वे जगन्नाथ पुरी आये ,जगन्नाथजी कि दर्शन करते ही उनका मन शान्त हो गया और वे यहाँ पुरीधाम कि प्रशिद्ध श्मशाँनस्वर्गदार निकट आस्रम बनाकर रहने लगे । धीरे धीरे उनके यहाँ भी गुरुशिष्य परंपरा चलपड़ा । मुलकदास जी पर भगवत् भक्ति का रंग कुछ युँ चढ़ा कि वे प्रत्यह खिचड़ी बनाकर भगवनजी को भोगलगाने लगे । उनके
शिष्य इस भाव से सर्वथा
अनजान ही रहे !!!
मलुकदास जी ने ही अपने गुरुभाई संत कवीर दासजी को जगन्नाथपुरी आमन्त्रण किया था । अब कवीरदास थे मूर्तिपूजा की घोर विरोधी कैसे भी समझा बुझाकर मलुकदासजी ने उन्हे श्रीजगन्नाथ दर्शन हेतु राजी कर लिया ।
कबीरदास ने जब भगवनजी का दर्शन किया उनके मनमेँ परिबर्तन आ गया । उनके मुख से एकाएक निकलगया
"ठाकुर भले विराजो जी" ।
फिर उन्होने उसदिन यह भजन गाया और इसे सुनकर मलुक दास जी भी प्रभुचिन्तन मेँ निमग्न हो गये ।
कवीर दास जी अब रोज श्रीविग्रह दर्शन करने लगे । उन्होने
श्रीमंदिर मेँ बननेवाली महाप्रसाद को भी ग्रहण कर लिया । एक दिन कवीर दास जी ने सोचा क्युँ न इस महाप्रसाद मेँ जल मिलाकर इसे भक्तोँ को पिलाया जाय !!!!
शुभकार्य मेँ देरी किसबात कि !
यही हुआ कवीर दास जी का वह "महाप्रसाद जल" आगे चलकर श्रीक्षेत्र पुरी मेँ "टंक तोराणी" के नामसे प्रसिद्ध हुआ । जगन्नाथ पुरी मेँ
मलुक दास जी कि आश्रम निकट कवीरजी का ध्यान समाधी है । वहाँ उनके दो शिष्य रैदास व अमिमाता का भी समाधी हे ।
उनके नाम से प्रचलित कवीरचौरा मठ कि और से भक्तोँ को आज भी टंक तोराणी/महाप्रसाद जल पिलाया जाता है ।।