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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

सोलंकी राकेश वी "शब्द" जी कि गुजराती कविता "જિંદેગી તું પક્કી વેપારી નીકળી" का हिँदी भावानुवाद

जीँदेगी तु पक्की व्यापारी निकली
हमारे खाते मेँ मुश्किलोँ कि उधारी निकली
भरपाई करते रहे हम तकलिफोँ कि
हमारी दिल कि ऐसी खुद्दारी नीकली ।
देता रहा मुसीबतोँ को जब जब जीँदेगी हमेँ
नसीब कि तबतब नादारी निकली
अकेला असहाय महशुश कि खुद को जब
परछाई कि तब गद्दारी निकली
आश था खुदा कि खुदाई पर हमेँ
खुदा कि भी लाचारी निकली
बुझाना चाहते थे तकलीफरुपी आग को मगर
हर क्षण एक चिँगारी निकली
निरर्थक जीँदेगी का अर्थ हमने तब समझा दोस्त
जब दुनिया हमारे मौत का जनाजा सजा के निकली
(सोलंकी राकेश वी "शब्द"
जी कि गुजराती कविता "જિંદેગી તું પક્કી વેપારી નીકળી" का हिँदी भावानुवाद)