हरिवंशपुराण मेँ नारदजी की उत्पत्तिकथा वर्णित है । उस कथा का सारांश यह है कि सृष्टि के आरम्भ मेँ ब्रह्माजी के सात मानस पुत्रोँ मेँ एक देवर्षि नारद थे , जो बडे भगवद भक्त थे । जिस समय आदि प्रजापति दक्ष ने मैथुनी सृष्टि रची और वीरणा नामक प्रजापति की आसिक्री नामी कन्याके गर्भ से पाँच सहस्र पुत्र, जो हर्यश्व कहलाते है , उत्पन्न किये एवं उनको सृष्टि बढ़ाने की आज्ञा दी , उस समय उन हर्यश्वोँ को देवर्षि नारद ने गर्भवास के दुःखोँ का वर्णन करते हुए सृष्टि कि बृद्धि होने से रोक दिया । फिर दक्षप्रजापति नेँ सवलाक्षोँ को सृष्टि कर इस कार्य के लिये प्रेरित किया । परंतु इन्हे भी देवर्षि नारद द्वारा परमाधाम की ज्ञानपोदेश प्राप्त हुआ और वे सभी परमगति प्राप्त हो गये । तब दक्षप्रजापति क्रोधित हो गये और नारदजी को श्राप दे दिया कि वे तत् क्षणात् भश्म हो जाय । नारदजी ने उन्हे अज मुख लाभ का श्राप देकर अभिशाप के आग मेँ जलगये ।
अब देवलोक मेँ हलचल मचगयी च्युँकि नारदजी के बिना देवोँ के प्राथना पर परमपिता ब्रह्मा नेँ दक्षप्रजापति को समझाते हुए कहा "हे प्रजापते ! आप नारद को जीवित किजिये । क्युँकि बिना नारद के सृष्टि का काम नहीँ चल सकता ।'
इसपर दक्षप्रजापतिने कहा-- नारद भश्म हुए शरीर से तो जी नहीँ सकता ,क्युँकि हमारा श्राप अन्यथा नहीँ होगा ,परंत्नु हम आपकी आज्ञा का उलंघन भी नहीँ कर सकता ! अतएब इस विषय पर दुसरे उपाय करता हुँ । यह कहकर दक्षप्रजापति नेँ अपनी एक कन्या ब्रह्माजी को दी और कि इसीके गर्भ से नारद का जन्म होगा । ब्रह्माजी नेँ उस कन्या को कश्यप को दे दिया । उसी कन्या के गर्भ से नारद का जन्म हुआ व वे आगे चलकर कश्यपनारद के नाम से जानेगये । कश्यप नारद कि यह कथा नारद पुराण मेँ नारद जी को ब्रह्माजी के मुख से सुनाया गया है ।
आभार :- गीताप्रेस गोरखपुर
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