नदी पार करने के बाद सब यात्री देव दर्शन के लिए वहां के मंदिर पर पहुंचे और दर्शन करने के बाद वापस नदी किनारे आ गये । दरअसल , उन्हें उसी दिन वापस नदी पार जाना था , क्योंकि मंदिर पर रुकने की कोई व्यवस्था न थी और न ही वहां भोजन की कोई व्यवस्था थी । उधर अंधेरा भी उतरने को और वे अंधेरे में किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहते थे । मल्लाह अपनी नाव के साथ वापस जाने को तैयार था , लेकिन अब वह फी यात्री पांच रुपये मांग रहा था । " यह क्या ? " धर्मानंद को फिर हैरानी हुई । " उधर से आये तो केवल एक रुपया फी यात्री मांगा , और अब पांच रुपये फी यात्री मांग रहे हो ! तुम्हारा मतलब है , अब हम तुम्हें तीन रुपये के बजाय पंद्रह रुपये दें ? हद कर रहे हो ! " " ' आप परेशान क्यों होते हैं , हुज़ूर ! आपको भी अब यह इत्ती सी बात बतानी पड़ेगी ? यह तो धंधे का भेद है " उत्तर देते हुए मल्लाह मंद - मंद मुस्करा रहा था । -
(किशन आर्य)
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