मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
मंगलवार, 20 अगस्त 2013
पुराणो के विना हिन्दुधर्म ?
हम सब यह अछि तरह जानते है की पुराणो का आधार वेद है । वेदोँ मेँ सर्व प्रथम देवता और दानवोँ का वर्णन किया गया है । अगर हम पुराणो को गलत कह दे तो हमारे आधे दर्शन गलत प्रमाणित हो जायेगेँ । पुराण का अर्थ पुरातन, आप इन्हे केवल श्तुल रुप मेँ देख रहे है परंतु इसमेँ जीवन जीनेँ की सारे साधन व्यवस्तित है । पुराणो को केवल पुरातन इतिहास या पुस्तक समझलेना गलत होगा । अपितु इसमेँ विज्ञान और दर्शन के गृढ़ तत्व मौजुद है जिन्हे जानलेने के वाद व्यक्ति आत्मज्ञानी हो जाता है । पुराण मेँ व्यक्ति को केवल दरवाजा दिखाया गया है । उसे अपने ज्ञान और बुद्धि द्वारा वो द्वार खोलना होगा तभी वो उन्हे प्राप्त करलेगा जिन्हे पा लेने के वाद और कुछ शेष नहीँ रह जाता ।
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