भूपेन्द्र सिँह का जन्म 4 फरवरी 1940 को अमृतसर मेँ हुआ था उनके पिता अम्रृतसर मेँ म्युजिक के प्रोफेसर थे तो छोटी सी उर्म मे ही वे अपने पिता के साथ आ गये दिल्ली ! जाहिर है उन्हे संगीत कि तालिम पिता द्वारा प्राप्त हुआ । दिल्ली मेँ पढ़ाई खत्म करके वे अल इंडिया रेड़िओ से जुड़े और वतौर म्युजिसन और सिँगर काम करने लगे ।
अल इंडिया रेड़िओ ने वाहदुर शाह जाफर पर जब एक कार्यक्रम बनाया उसमेँ भूपेन्द्र सिँह ने वहादुर शाह जफर कि एक गजल रेकोर्ड कि जो दिल्ली वालोँ ने खुब पसंद किया । ये गज़ल थी
"लगता नहीँ है दिल मेरा उजड़े दयार मेँ" !
उन्ही दिनोँ रेडिओ प्रड्युसर सतीश भाटिया के पार्टी मेँ भूपेन्द्र जी और उनके हुनर से मदन मोहन रुबरु हुए ।
इससे भूपेन्द्रजी को फिल्म हकीकत मेँ मदनमोहन ने पहला ब्रेक दिया ।
इस फिल्म मेँ महम्मद रफी ,तलत् महम्मुद और मन्ना डे के साथ उन्होने अपना पहला गीत रेकोर्ड किया । ये गीत था
"हो के मजबुर उसने मुझे भुलाया होगा ज़हर चुपके से दवा जानके खाया होगा"
इत्तेफाक से ये गाना उन्ही पर फिल्माया गया था ।
"ऋत जबाँ जबाँ
इसके बाद भूपेन्द्र सिँह आरडी बर्मन के साथ बतौर गिटारिस्ट जुड़े !
दम मारो दम गाने मेँ बजे गिटार
उन्ही के द्वारा बजाया गया था ।
इसके बाद तो उन्होने अन्य म्युजिसन के साथ भी काम किया । आरडी बर्मन के साथ दोस्ती के कारण उन्हे
फिल्म "परिचय" मेँ
लता जी के साथ
डुएट गाने का मौका मिला । गीत के वोल थे
"बीते न बिताये रैना"
भूपेन्द्र को पहला सोलो संग गाने का मौका खैयाम ने दिया था ।
फिल्म थी आखरी खत
ओर गीत था
"ऋत ऋत जबाँ जबाँ रात महरबाँ"
भुपेन्द्र सिँह जी द्वारा गाये गये ज्यादातर यादगार गीत गुलज़ार के कलम से निकले है जैसे
दिल ढ़ुँढ़ता है फुरसत के रात दिन
नाम गुम् जायेगा चेहरा ये याद आयेगा ,
एक अकेला इस सहर मेँ
कभी किसी को मुक्कमल जाहाँ नहीँ मिलता" आदि ।
मिड 80के दशक मेँ भूपेन्द्र ने बंगाली सिँगर मिताली मुखर्जी से शादी कर ली और इन दिनोँ
वे साथ साथ स्टेज सो करते व आलबम् निकालते है ।
भूपेन्द्र जी की लम्बी उम्र कि कामना करते है
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