ब्लॉग आर्काइव

सोमवार, 15 जुलाई 2013

आनन्द

मनुष्य का जन्म धरती पर इसलिए होता है कि वह अपने आत्मस्वरूप को पहचान ले और अपने आत्मिक आनंदका अनुभव कर ले। इसी आनंद की अनुभूति के लिए वह बाहर भागता फिरता है। और उसे प्राप्त करने के लिए जिन-जिन सहारों को वह हीरा समझकर पकड़ता है, हाथ में आते ही वे पत्थर सिद्ध हो जाते हैं। संयोगवशात् ही उसको कोई ऐसास्थान मिलता है जो उसके व्यथित, थके हुए हृदय को शांति और शीतलता का अनुभव करा पाये और वह स्थान है'महापुरुषों का सत्संग'।
सत्संग तार देता है, कुसंग डुबो देता है। इसलिए आप भी यदि सत्संग में जाओगे, अच्छा संग करोगे और सदग्रन्थों का अध्ययन करोगे तो आपका चरित्र उज्जवल होगा और जीवनऊँचा बनेगा।
श्री हनुमान प्रसाद पोद्दारजी

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