मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
शुक्रवार, 12 जुलाई 2013
ek prerak katha
लीलाधर ने लीला रची । अर्जुन मोहग्रस्त हो गये । उन्हे बचपन केदीन याद आने लगे । भीष्म पितामह से उन्होने युध्ध करने से मना कर दिया । प्रभु ने एक भक्त के गौरव बढाने के लिये और दुसरे भक्त की मोह भंग करने के लिये फिर लीला रची । उन्होने खुद की प्रतिग्याँ तोड कर भीष्म पितामह को मारने के लिये रथ के पहिये उठा लिये । तब भिष्म पितामह ने हात जोडकर भगवान से कहने लगे "हे प्रभु मुझे आप मारदेँ । किसी और के हात मरने से अछा है आप ही मुझे इस जीवन से मुक्त करेँ । धन्य है भारतवर्ष जाहाँ ऐसे वीरोँ ने जन्म लिया । जय भारती
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