मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
शनिवार, 10 अगस्त 2013
क्या और क्युँ के चक्कर मेँ
क्या हम मेँ अब पहले जैसा दम नहीँ । क्या हमारे सारे पुरुषार्थ व्यर्थ है । शासक दल का कहना यह है क्युँ की पाक और चीन की संयुक्त शक्ति हमसे अधिक है हम युद्ध करना छोड देँ ? वीरोँ के इस भारत भुमि मेँ क्या एक भी अछा नेता नहीँ हे जो चतुर,दुरदर्शी होनेँ के साथ साथ देशभक्त हो ? हमारे नेता वयानवाजी तो कर लेते है पर उन वातोँ को पुरा करने के लिये ना तो उनके पास समय रहता और न ही इछाशक्ति । दुर्वल नेताओँ को शासन का वागडोर दे देना क्या हमारे मूर्खता को प्रदर्शित नही करते ? निसंदेह भारत मेँ राजनीति सदियोँ से चलता आ रहा है परतुँ कायरता पुर्ण राजनीति सायद अब होनेँ लगे हेँ । जबतक राजनेताओँ के मन मेँ राष्ट्रभक्ति जाग्रत न होगी तबतक देश को जगाना मुसकिल लग रहा है ।
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