मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
शनिवार, 10 अगस्त 2013
कल और आज मेँ इतने भिन्नता क्युँ ?
मुझे भारत का भविष्य अंद्धकारमय लगने लगा हे । 7 साल पहले का भारत और आज के भारत मेँ कई सामाजिक वदलाव देखा जा रहा हे। भारतीय सामाजिक व्यवस्ताओँ का निरतंर दुर्वल हो रहे हाल से साफ पता चल रहा हे समाज अब पश्चिमी सभ्यताओँ के सँस्पर्श मेँ दुषित होनेँ लगा हे । कभी भारतवासी परिश्रमी उद्योगी और सज्जन हुआ करते थे । समाज मेँ अपराध और अनैतिकता बढ़ रहा है और इन अपराध को वाकायदा पव्लिसिटी भी मिलरहा हे । ईस से निराश हताश और सताये हुए व्यक्ति अकसर गलत रस्ते पकड लेता है ।नतिजा देश के साथ साथ समाज का भी नुकसान कर वैठता है ।सिर्फ कानुन वना लेने से इन गम्भीर विषयोँ पर विजय प्राप्त नहीँ कि जा सकती । हमेँ पहले समाज को गंदे कर रहे उन पाश्चात्य संस्कृती को अपने जीवनचर्या से मिटाना होगा जिनके हम आदि हो चुके है । याद रहे जब कोई समाज अपने भाषा और संस्कृति को त्याग देता है उसका अधोगति तभी से आरम्भ हो जता है ।
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