हमेँ उन मान्यताओँ को मानना चाहिये जो विज्ञान सम्मत हो जैसे देवी काम क्रोध मोह माश्चर्य और अहंकार का बलि चाहति हे और यह सब दुर्गुण आ जाने पर इंसान पशु बन जाता हे । लेकिन बाद मेँ लोगोँ नेँ श्लोक और धर्मवाक्योँ का गलत मतलब निकालकर स्वार्थ साधन मेँ लग गये जिससे पृथ्वी मेँ अधर्म बढ़गया और आज से करिबन 3600 साल पहले महाभारतकाल मेँ पृथ्वी 3 डिग्री उत्तर कि और ढ़लगया जिससे अरव और उत्तर अफ्रिका मेँ साहारा मरुस्तल बनगया ।(अरव मेँ पहले अरवी घोडे मिलते थे जो काफी मजवुत और ताकतवर होते थे....शोधकर्ताओँ को मध्यप्राच्य से कई जीवोँ के अवशेष मिलेँ जो साबित करता हे कि कभी अरव और साहारा मरुस्थल हराभरा था )बाद मेँ अरव मेँ बचेहुए लोगोँ मेँ 1000 वर्षखंड मेँ अंधविश्वास इतना फैला कि लोग धीरे धीरे जोराष्टर धर्म (संभवत: यह धर्म राक्षसोँ का होगा क्युँ कि पुराने लेखोँ मेँ राक्षस वेद के वारे मेँ वताया गया हे और जोराष्टर धर्म ग्रथों मेँ ज्यादातर भुत प्रेत और राक्षसी विद्याओँ का वर्नन हे ...आगे चलकर इस धर्म से इहुदी और इस्लाम धर्म बना और इहुदी धर्म से ईसाई धर्म ) को छोडकर नये धर्म बनाने लगे । अंधविश्वास हि धर्म को मार देता हे और आज जोराष्टर धर्म लुप्त हो गया हे और इससे प्ररित 3 नये धर्म आ गये । असल मेँ सारे धर्मोँ मेँ तत्व एक हे परंतु अलग अलगा भाषा , प्रांत और अलगाववाद के वजह से हमेँ वो दिखनहीँ पाता ।
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