पाईक paika ओड़िशा का एक जाति है बर्तमान समय मेँ यह मुख्य रुप से तिन अलग अलग उपजातिओँ मेँ बँटगया है ।
1.खंडायत
2.बेणायत
3.पहरी - काळिँजि
इसके अलावा वाणुआ और ढ़ेँकिया भी पाईक कहलाते है
1.युद्धक्षेत्र मेँ तलवार चलानेवाले सैनिक
2.बेणायत घोड़े व हाथी पर लढ़नेवाले
3.कौतवाल व पहरादेनेवाले पहरी
4. युद्धक्षेत्रोँ मेँ तीरंदाजी करनेवाले बाणुआ कहलाते थे
5.आतर्कित ढ़ाल बर्छे से हामला करने वाले ढ़ेँकिया कहलाते ।
पाईक/Paika शब्द मूलतः संस्कृत से आया है जिसका अर्थ है पदातिक/Padatika meaning [[ the infantry, and hence the name of the dance is battle (paika) dance (nrutya)]] .
ओड़िशा मेँ गंग साम्राज्य Gango empire And gajapati गजपति राजत्व काल को स्वर्णयुग कहाजाता है ।
तब ओड़िशा का विस्तार गंगा से गोदावरी तक था
और साम्राज्य बचाने का जिम्मेदारी पाईकवीरोँ पर होता था । पाईक Paika नियमित योद्धा नहीँ थे परंतु वे नियमित अभ्यास करते थे आज भी गाँव के Paika akhada पाईक आखड़ाओँ मेँ युद्धाभ्यास होता है परंतु आज यह केवल कुछ एक क्षेत्रोँ मेँ देखने को मिलता हे खासकर उनगाँव मेँ जहाँ क्षेत्रिय कूल वहुतायत मेँ पायेजाते हो । पाईक PAIKA शान्तिकाल मेँ राजा द्वारा प्राप्त भूमि पर खेति करते थे और युद्ध कि घोषणा पर युद्धभुमि मेँ जाकर लढ़ते थे
। पाईकोँ नेँ लम्बे समयकाल तक मुगलोँ,तुर्क तथा मराठीओँ से लोहा लिया परंतु 16वीँ सदीके बाद
*श्री चैतन्य आदि द्वारा भक्तिवाद का प्रचार
के वजह से लोग आलसी व अंधभक्त बने
*जलवायु मेँ उतारचढ़ाव से लगातार सुनामी आनेलगा और कलिंगसागर कहलानेवाला जलराशी गहराई खोनेलगा जिससे ओड़िशा मेँ चक्रवात और बाढ़ कि स्थिति उत्पन हो गई । च्युँकि पाईकोँ का गुजारा खेती से चलता था उनको इस प्राकृतिक आपदा से भारी नैराश्य और नुकशान हुआ ।
* पुरी खोर्दा कटक ढ़ेकानाल गंजाम पारलाखेमुंडी अनगुल आदि क्षेत्र के राजघरानोँ मेँ आपसी कलह भी एक पाईकोँ मेँ आपसी मतभेद का मूल कारण है
अठारवीँ सदी तक पाईकोँ का पुरा का पुरा संगठन अलग अलग उपजातिओँ मेँ बँटचुका था परंतु 1803 मेँ अंग्रेजोँ का ओड़िशा पर चढ़ाई से स्वाभिमानी ओड़िआ जाति खासकर पाईकोँ मेँ पुनः एकता आनेलगा । 1803 से 1819 तक ओड़िआ जाति अंग्रेजोँ के खिलाफ लढ़ती रही 1857 से 40साल पूर्व हुए इस विद्रोह को पाईक विद्रोह कहाजाता है ।
यह भारत का सर्ब प्रथम ज्ञात विद्रोह था इसके नेता थे बक्सी जगबंधु ।
वो भारत के पहले ऐसे शहीद है जिन्हे अंग्रेजोँ द्वारा कटक की एक बरगद के वृक्षशाखा मेँ फांसी दिया गया था ।
आज कर्पुर उड़गया है बस महक बचा है
आज भी कटक ,मयुरभंज ,अनगुल ,ढ़ेकानाल ,नयागड़ ,जाजपुर ,पुरी आदि क्षेत्रोँ मेँ आखड़ाघर है लौँड़े समर अभ्यास कम गप्पे मारने जाते है
।
विभिन्न पुजापर्व मेँ पाईक तलवारकला पदर्शन होता हे
इसे CHAOU नृत्य कहाजाता है । ओड़िशा के अंश रहचुके सरेईकेला खरसुँआ आदि क्षेत्रोँ मेँ भी पाईकोँ का समुह निवाश करता है ये पहरी कूल के पाईक है जिनका कार्य होता था राज्य कि सीमा सुरक्षा करना ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें