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शनिवार, 22 अगस्त 2015

कथा पांवटा साहिब की... भाग 1

आनंदपुर साहिब मेँ एक बार गुरुगोविँद सिँह जी से मिलने तत्कालिन विलाशपुर राजा भीम चंद का आना हुआ ।
भीमचंद का वहाँ भव्य स्वागत हुआ ,
गुरुजी ने उन्हे दुसरे राजाओँ के द्वारा दिए गये नायाब उपहारोँ को दिखाया जिसमेँ #असम राजा द्वारा दिया गया सफेद हाथी "प्रसादी" भी था ।
राजा भीमचंद के मनमे प्रसादी को देखकर लोभ उत्पन हुआ जिसे गोविँद सिँह जी ताड़ गये परंतु अतिथी धर्म निर्वाह हेतु उन्होने कुछ नहीँ कहा !
अनकोँ उपहारोँ समेत भीमचंद जी स्व राज्य लौट तो आये परंतु उनके मन मेँ प्रसादी के पाने को पाने की लालसा बढ़गया था ।

1645 सदी मेँ गुरुगोविँद सिँह जी सिरमौर रियासत के मीरपुर गाँव मेँ ठहरे हुए थे
मीरपुर के शासक उन दिनोँ मेदनी प्रसाद थे , उन्हे पताचला कि गुरुजी उनके राज्य मे आये हुए है । मेदनी प्रसाद ने गोविदँ सिँह जी को अपने मंत्र शोभा राम के हातोँ नाहन आने का निमन्त्रण दिया । गुरुजी ने निमन्त्रण सहर्ष स्वीकार कर लिया ।
17 वैशाख को गोविँद सिँह जी नाहन पहँचे । राजा मेदनी प्रसाद ने उनका स्वागत सत्कार पश्चात झिझकते हुए अपना समस्या प्रकट किया ।
सिरमौर के पूर्व मेँ टिहरी गढ़वाल के राजा फतेहशाह के साथ राजा मेदनी प्रसाद का अनवन चल रहा था ।

तो मेदनी प्रसाद ने गुरुजी से आग्रह किया कि वे नाहन ओर श्रीनगर के सीमा पर एक किला बनवा देँ इससे फतेह शाह के मनमानी पर अंकुश लगसकेगा ।

गुरु गोविँद सिँह ने राजा को कहा जहाँतक हो सके मिलजुल कर रहेँ व मिलकर मोगल सत्ता के खिलाफ लढ़ेँ ।
मेदिनी प्रसाद कि इछाओँ को सम्मान देते हुए सिरमौर रियासत मेँ यमुना किनारे पाहाड़ोँ के बीच सुँदर वृक्षोँ से घिरा एक स्थल उन्हे बहुत पसंद आया । यहीँ वे अपने घोड़े से उतरे और अपने पाँव इस धरती पर टिकाए । गुरु गोविँद सिँह के यहाँ पाँव टिकाने के कारण ही इस क्षेत्र का नाम पाँवटिका पड़ा, जो बाद मेँ अपभ्रंस होकर पाँवटा साहिब पड़ गया !!

मेदनी प्रसाद ने गुरुजी के रहने के लिये यमुना किनारे एक स्थान बनवा दिया । गुरुजी अपने परिवार को भी यहाँ ले आये ।
यहीँ उनके बड़े पुत्र अजीत सिँह का जन्म हुआ ।
पाँवटा साहिब को पौराणिक काल से ही पवित्र माना जाता हे । ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम कैलास से अवतरित भगवन शिव को यहीँ ज्ञान प्राप्त हुआ था । उसके बाद वह कपालमोचन तीर्थ गे । देवी दुर्गावती भी कैलास पर्वत से उतरकर इसी मार्ग से स्वर्गलोक के राजा इंद्र के सहायतार्थ गई ।
यहीँ परशुराम का भगवन रामचंद्र से मिलन हुआ था । यहाँ से थोड़ी ही दुर ऋषि जमदग्नि की धर्म पत्नी रेणुका का सरोवर है । पावंटा से थोड़ी ही दूरी पर ऋषि मार्कण्डेय व कालपी ऋषि का तपस्थल है ।
स्थानीय लोगोँ मे ऐसी भी मान्यता प्रचलित हे कि यहाँ यमुना मे स्नान करने पर व्यक्ति हर पापोँ से सर्वथा मुक्त हो जाता है ।

बहरहाल गुरु गोविँद सिँह जी ने नाहन और श्रीनगर के बीच पाँवटा मेँ किला बनाया तो ये बात श्रीनगर के राजा फतेह शाह को नागवार गुजरा । वो गोविँद सिँह जी से मिलने पाँवटा आया और गुरुजी के व्यक्तित्व से प्रभावित हो गया ।
कहाँ वह झगड़ा करने आया था और कहाँ दोस्ती के बंधनोँ मेँ बंध गया ।
गुरुगोविँद सिँह ने मेदनी प्रसाद व फतेह शाह के बीच चलरहे मनमुटाव को दूर करते हुए उनमेँ संधि करवा दी । गुरुजी के मध्यस्दा पर फतेह शाह ने सिरमौर रियासत को उसके द्वारा दबाया हुआ भूभाग लौटा दिया ।
कुछ दिन पश्चात श्रीनगर नरेश फतेहशाह कि पुत्री का विवाह राजा भीमचंद के पुत्र के साथ होना निश्चित हुआ ।
ये भीमचंद वही था जिसके मनमेँ गुरुजी के हाथी को देखकर लालच आ गया था ।
फतेह शाह कि कन्या से विवाह तय होते ही उसने एक चाल चला ! अपने कुछ कारिँदे गुरु गोविँद सिँह जी के पास भेजकर उसने शादी के स्वागत समारोह के लिये प्रसादी हाथी को देने का अनुरोध किया ।
गुरु गोविँद सिँह को भीमचंद का युँ प्रसादी माँगना अछा नहीँ लगा सो उन्होने राजा के कारिँदोँ को खाली हाथ लौटा दिया ।
कारिँदो ने भीमचंद को उलटा सिधा कहकर और उकसाया वो यह सुनकर और आगबबुला हो उठा ।

बेटी की शादी का दिन निकट आते ही राजा फतेहशाह ने गुरु गोविँद सिँह को सपरिवार शादी मेँ पधारने का न्योता भेजा ।

उधर गुरुगोविँद सिँह को खबर मिला कि भीमचंद उनसे भीड़ने की तैयारी मेँ जुटा हुआ है ।

कहीँ शादी मेँ उन्हे देख कर राजा भीमचंद कोई बखेड़ा खड़ा न कर दे ,जिससे रंग मेँ भंग पड़ जाए .यह सोचकर गुरु गोविंद सिँह स्वयं शादी मेँ नहीँ गे और अपने दीवान नंदचंद के हाथ बहुमुल्य उपाहारोँ के साथ राज फतेहशाह के यहाँ भेज दिया ....

क्रमशः.....

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