16वीँ सदी मेँ भौगलिक परिस्थितियाँ ऐसी थीँ कि विलासपुर से श्रीनगर(गढ़वाल) जाने के लिये यमुना नदी पार करना होता था और पांवटा बीच मेँ पड़ता था ।
राजा भीमचंद को बारात लेकर इसी रस्ते से गुजरना था । बारत मेँ अस्त्र शस्त्रोँ से सज्जित हजारोँ सैनिकोँ को देखकर गुरु गोविँद सिँह का माथ ठनका ।
वो समझगये राजा भीमचंद के इरादे नैक नहीँ अतः सरक्षात्मक नजरिया अपनाते हुए राजा भीमचंद ,उनके पुत्र और चंद वरिष्ठ अधिकारीओँ को पावंट के निकट नाव से यमुना पार करने कि इजाजत तो दे दी ,लेकिन राजा भीमचंद की असली बारत यानी सैनिकोँ को एक घुमावदार लंबे रस्ते से गढ़वाल जाना पड़ा । इस घटना से युद्ध कि संभावनाएँ और बढ़गई ।
विवाह स्थल पर पहँचते ही भीमचंद ने पांवटा मेँ घटित घटना से राजा फतेहशाह को अवगत कराया । उसने कहा कि वह इस गुस्ताखी का बदला लेकर रहेगा । अपधे समधी की बात सुनकर फतेहशाह के माथे पर भी आक्रोश की लकीरेँ खिँच आई ।
विवाह स्थल पर अनेक पाहाड़ी राजा उपस्थित थे । रस्मेँ पुरी होते ही राजाओँ ने नवदंपति को तोहफे भेँट करना शुरु किए ।
जब दीवान नंदचंद जी , गुरु गोविँद सिँह द्वारा भेँट किया गया "ताम्बोल" फतेहशाह को देनेगये तो भीमचंद ने चेताया समधी जी इस उपहार को लेगेँ तो अछा नहीँ होगा ।
वक्त के नजाकत को देखकर फतेहशाह ने वह उपहार लौटादिया ।
पहाड़ीराजाओँ को ये माजरा समझनहीँ आ रही थी ! भीमचंद ने सबकी जिज्ञासाओँ को सुलझाते हुए उन्हे यह कहकर भड़काया कि गोविँद सिँह सभी क्षेत्रिय राजाओँ पर एकछत्रराज स्थापित करना चाहते है ।
भीमचंद पाहाड़ीराजाओँ को भड़काने मेँ सफल हो गया ।
शादी मेँ सामिल सभी राजाओँ ने एक संयुक्त प्रस्ताव पारित किया कि अब उनकी संयुक्त सेनाएँ गुरु गोविँद सिँह पर एक साथ हमला बोलेँगी ।
इस विवाहोत्सव मेँ किन्ही कारणवस नाहन के राजा मेदनी प्रसाद सामिल नहीँ हुए थे ।
नंदचंद ने पांवटा पहँचकर गुरुजी को शादी मेँ पारित प्रस्ताव का ब्यौरा दिया परंतु गुरु गोविँद सिँह जी को इससे कोई आचंबा नहीँ हुआ वे युद्ध के तैयारीओँ भेँ लगगये ।
उनदिनोँ गुरुजी के सेनामेँ 5000 से अधिक योद्धा थे जिनमेँ जीतमल ,संगेशाह ,गोपालचंद ,माहरीचंद ,गंगाराम ,किरपालचंद ,नंदचंद ,पुरोहित दयाराम तथा साहिब चंद अपनी वीरता के लिये विख्यात थे ।
कुछ पठान भी गुरु गोविँद सिँह के साथ थे ।
उधर पाहाड़ी राजाओँ की संयुक्त सेनाओँ मेँ कटोच के किरपाल ,गुलेर के गोपाल ,हिँदुर के हरिचंद ,चंदुल के गाजीचंद ,दाढवार व जसवाल के राजा ,गढ़वाल के राजा फतेहशाह व विलासपुर नरेश भीमचंद ने मिलकर युद्ध के लिये पांवटा कुच किया ।
अभी युद्ध होने ही वाला था कि गोविँद सिँह जी के सेनामेँ सामिल पठान सैनिक एकाएक पैँतरा बदलकर दुशमन से जा मिले ।
हारामखोर पठानोँ ने पहाड़ीराजाओँ के ये पट्टी पढ़ाया कि गोविँद सिँह का असली ताकत हम पठान थे अब उन्हे हराने मेँ कोई मुस्किल नहीँ है ।
पठान सैनिकोँ द्वारा ऐन वक्त पर विश्वासघात करने से गोविँद सिँह को दुःख हुआ परंतु इसी बीच उन्हे 700 छापामार युद्ध मे माहिर पठान सैनिक मिलगये । इससे गुरुजी के सेना का मनोबल दुना हो गया ।
6 अप्रेल 1687 को पांवटा साहिब के निकट भंगाणी के मैदान मेँ पहाड़ी राजाओँ की सेनाओँ और गुरु गोविँद जी के सेना मेँ युद्ध छिड़गयी ।
घमासान युद्ध हुआ ,
गुरु ने पहला हमला उन विश्वासघाती पठानोँ पर किया ।
युद्ध मेँ एकवार ऐसा लगा कि पहाड़ी सेना कि जीत हो जायेगी । च्युँकि हिँदुर नरेश हरिचंद आक्रमक बने हुए थे परंतु उनके साथीदार राजाओँ को हार ही नसीब हुआ ।
जसवाल व दाढ़वार के राजा रणक्षेत्र से भाग खड़े हुए । चंदेल के राजा ने भी हार मान लिया और तभी गुरु गोविँद सिँहजी के एक तीर ने हरिचंद को मोत की गोद मेँ सुला दिया ।
इससे भीमचंद व फतेहशाह युद्ध क्षेत्र से पलायन कर गये
ओर इस प्रकार गुरु गोविँद सिँह व उनके सेना ने भंगाणी के मैदान मेँ सबके छक्के छुड़ादिये ।
भंगाणी के जिस मैदान मेँ यह युद्ध हुआ था वहाँ आज भंगाणी साहिब के नामसे भव्य गुरुद्वारा बना हुआ है ।
इस गुरुद्वारा का निर्माण 1825 मेँ बसवा सिँह नामक एक श्रधालु द्वारा बनवाया गया है ।
कहाजाता है कि भंगाणी युद्ध मेँ विजयोल्लास स्वरुप गुरुजी ने एक उत्सव आयोजन करवाया था जिसमेँ नाहन के राजा मेदनी प्रसाद भी सामिल हुए थे ।
इस उत्सव को आज भी प्रतिवर्ष फाल्गुन पुर्णिमा को होल्ला महोल्ला के रुप मे मनाया जाता है । उत्सव मेँ गुरु ग्रंथ साहिब की शोभ यात्रा पांवटा साहिब के विभिन्न क्षेत्रोँ से निकाली जाती है ।
गुरुद्वारा साहिब मेँ निशान साहिब पर नया वस्त्र पहनाया जाता है । गतकाबाजी इस उत्सव का मुख्य आकर्षक होता हे,जिसमेँ कुशल योध्या अस्त्र शस्त्र विद्या का प्रदर्शन करते है । इस उत्सव मेँ शहरी व ग्रामीण लोक जीवन की मिली जुरी झाँकी देखने को मिलती है ।
***** #उत्तरप्रदेश और #हरियाणा की सीमाओँ से सटा #पांवटासाहिब का यह गौरवमय इतिहास सभी #हिन्दु याद रखेँ हृदयगंम करेँ .इससे सीख लेँ
और मिलजुलकर रहेँ ****
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