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गुरुवार, 26 नवंबर 2015

गोपाल कि दीर्घशंका थिओरी

आज से कुछ चारसौ पाँचसौ साल पहले ‪ पूर्वोत्तर‬भारत मे गोपाल नामधेय एक चतुर व्यक्ति का जन्म हुआ था ।
वो बड़े चालक चतुर व्यक्तिओँ मे से एक थे
और अपने इसी चालाकी के चलते गोपाल को राजा कृष्णचंद्र देव ने राजसभा का विदूषक नियुक्त किया था ।
एक दिन सभा कार्य चल रहा था
तभी राजा के मनमे एकाएक एक प्रश्न उदय हुआ....
"मानव को सबसे अधिक खुसी कब होती है ?"
काफी तर्क वितर्क के बाद भी कोई निष्कर्ष नहीँ निकल पाया...
उसदिन गोपाल राजसभा मे अनुपस्थित याने आपसेँट थे....
अगले दिन गोपाल राजसभा मे राजाजी से मिलने आये तो
राजाने ये प्रश्न पुछ ही लिया....
गोपाल ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा
" दीर्घशंका कर लेने के पश्चात् सबसे अधिक खुशी का अनुभव होता है "
राजा का चेहरा गुस्से से लाल हो गया
भला इस आदमी को खाने और छोड़ने के अलावा कोई काम नहीँ सुझता क्या ?
राजा वौखलाये गोपाल को बुराभला कहा और वहाँ से उठकर चलेगये
गोपाल ने राजाजी का मुडअफ् देख माफी माँग ली
व आप चिन्तित मन घर लौटे....
आखिर ऐसा क्या किया जाय....?
कि राजा को ये बात समझ आये.....
बहुत सोचविचार बाद गोपाल को एक ब्रिलिएंट आइडिया आया
एकदिन राजा जी को जैसे तैसे बातोँ मे फँसा कर विदूषक गोपाल चित्रोत्पला नदी मे जलविहार करने ले गये !
राजा जी को भरपेट खिलाया जाय इसका प्रवन्ध किया गया था ।
अब जलविहार करते करते राजा को बीच मझधार मेँ ही तेज 2 नं लगगया
नौका मेँ एकतरफ राजा झटपटा रहे है वहीँ गोपाल जानबुझकर नाव को किनारे तक जाने नहीँ दे रहे थे ।
अन्ततः गोपाल ने नाव किनारे पर लगा लिया
और राजा औन्धे मुँह झाडिओँ मे चलेगये
दिर्घशंका के पश्चात् राजा बड़े
हर्षित् हो लौट रहे थे तभी
गोपाल उनके पास पहचँकर कहने लगा
राजाजी अब आपको कितना खुसी महशुश हो रहा है ????
राजा गोपाल का आशय समझ जाते है और उन्हे प्रशंसाओँ के साथ स्वर्णमूद्राओँ से भरा थैली देते है !!!
[ये प्रसंग 'गोपालिआ भांड कथा' पुस्तक से लिया गया है !!
गोपाल किरदार दरसल तेनालीरामन् का ओड़िआ वर्जन है , "गोपाल" किरदार ‪#‎ उत्कलीय‬कथा ‪#‎ साहित्य‬का सर्वत्र परिचित प्रशिद्ध काल्पनीक चरित्रोँ मे से एक है]

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