विहारके दशरथ_माँझीने कड़ी महनत और लगन के बलपर उनके गाँव सन्निकट पर्वत खोद कर रस्ता निकाल दिया था...
मिलिये ओड़िशाके दशरथ_पट्टनायकजी से.....
ओड़िशा_पाठागार_आ ंदोलन
के प्रवर्त्तक , प्रवाद पुरुष . प्रख्यात् संग्राहक व सारस्वत साधक श्री दशरथ पट्टनायक जी का जन्म नयागड़ जिल्ला पर 1907 को एक साधारण परिवार मे हुआ था !
ओड़िआलोग उन्हे प्यार से दाशिआ_अजा
[ओड़िआ शब्द अजा का अर्थ नानाजी है]
कह कर पुकारते है ।
वे ओड़िशा मे उनदिनोँ इतने प्रसिद्ध हुए कि उनके नामसे कहावत तक बन गया था !
"Dasa paisa ra raja dasiaa ajaa" [दश पैसे का राजा दाशिआ अजा या नानाजी]
वे सिर्फ 4थी कक्षा तक पढ़पाए थे । अंग्रेजीराज के समय उन्होने कई सरकारी नौकरी भी कि परंतु दशरथ नानाजी का मन नौकरी मेँ सन्तुष्ट न था !!
अन्ततः एक दिन वे सबकुछ छोड़छाड़कर अपने पाहाड़ी अनुर्वर गाँव लौट आये और खेतिबाड़ी आदि करते हुए साधारण किसान का जीवन बिताने लगे ।
उनदिनोँ दशरथ नानाजी को दोपहर मेँ किताबेँ पढ़ने शौक चढ़ा था ! इसी
किताब पढ़ने कि शौक से जन्म हुआ पुस्तक_भिक्षाका ओड़िशा यात्रा !
अर्धवस्त्रधारी रुप ,एक आँख खो चुके ,हाथ मेँ लाठी कन्धे पे झोला और आँखो मेँ सपने लिये
ओड़िशा के गाँव देहात सहर नगर का भ्रमण करते हुए नये पुरातन पुस्तक संग्रह करना उनका अब जीवन व्रत बनगया था । वे
जीवन के अवसर समय मेँ सारस्वत साधक बनगये थे ऐसा आजतक बहुत कम लोग करपाए है ।
रोज बड़े बड़े कवि लेखकोँ चिट्ठी पत्री लिखके उन्हे पुस्तक संग्रह_आंदोलन मे सामिल करने मे सफल हो पाए थे दशरथ नानाजी ।
उन्ही के प्रयाश से उदयपुर ,नयागड़ मे जातीय पाठागार ,संग्रहालय ,साहित्य संसद तथा गवेषणाकेन्द्र कि स्थापना हुई थी ।
उदयपुर स्थित जातीय पाठागार मे इस समय 1 लाख से अधिक नये पुरातन पुस्तकोँ के साथ साथ 42 विभागोँ मे शताधिक ताड़पत्र पोथी आदि संग्रृहित है ।
जाते जाते वे "दीपक ट्रष्ट" कि स्थापना कर 1997 मे दुनिया छोड़ गये थे ।
बर्तमान नयागड़ जिल्लापाल दशरथ नाना के सुयोग्य नाती इस ट्रष्ट के अध्यक्ष है । पुस्तक संग्रह इस ट्रष्ट का परम उद्देश्य है । —
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