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गुरुवार, 26 नवंबर 2015

लोरी.....

रात का वक्त है नयी नयी माँ बनी गाँव कि कन्याएँ बहनेँ माताओँ का फिक्र तबतक कम नहीँ होता जबतक उसका राजा बैटा चैन कि नीँद सो नहीँ जाता ।
और बचेँ भी बड़े प्यारे होते है
तब तक रोते रहेगेँ जबतक माँ लोरी न सुना देँ
अब
बच्चा जब रोता हे माँ उसे ‪#‎ लोरी‬सुनाती और बच्चे शान्त हो जाते । लोरी
संस्कृत भाषा कि लोळ (लोल) शब्द का परिवर्तित रुप है । ज्यादातर भाषाविद मानते कि लोल से लोली हुआ और फिर लोरी हुआ होगा !
लोरी को
अंग्रेजी मे Nursery rhyme कहाजाता है ।
रविन्द्र नाथ टैगोर ने इस तरह के गीतोँ को
"छेले भुलानो छड़ा" कहा
वहीँ सम्बलपुरी या कोशली भाषा मे इसे "छुआ भुरुआ गीत" कहाजाता है ।
ऐसा नहीँ है कि
Nursery rhyme शब्द का ओड़िआ समकक्ष शब्द नहीँ था...
था परंतु ज्यादातर स्थानीय लोग इन गीतोँ को शिशु गीत या बाल गीत कहाकरते थे । आज 100 से 150 साल पहले ओड़िआ
पल्लीकवि नन्दकिशोर वल ने इन गीतोँ को ‪#‎ नानावाया_गीत‬कहा जो ओड़िशा मे अब सर्वाधिक प्रचलित शब्द बनाहुआ है ।
लोल शब्द का संस्कृत अर्थ बच्चोँ को झुलाना नचाना आदि है
वैसे हिन्दीभाषी लोग लोरी को पालने के गीत भी कहते है ।
असाम मे इसे नीचुकानि गीत व धावर काम कहाजाता है ।

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