मेँ अपने मन का दास कलम का कर्मचारी हुँ जो मन मेँ आया लिखदिया । कोई पागल कहे तो मुझे क्या ? कहता है तो कहने दो ।।
ब्लॉग आर्काइव
सोमवार, 4 जुलाई 2016
बंगाल कि रानी रासमणी
कोलकत्ता के प्रशिद्ध दक्षिणेश्वर काली मंदिर से आप सभी परिचित होगेँ
लेकिन क्या आप जानते
है ......
इसकी प्रतिष्ठात्री एक नारी थी ।
स्वर्गीया रानी रासमणी माडे
ने यह मंदिर बनवाया था !
अति दरिद्र कैवर्त परवार मे इनका जन्म हुआ
ये अपनी युवाकाल मे परम रुपवती थीँ !
कोलकत्ता के ही एक अमीर युवक रामचंद्र माडे का
दिल इन पर आ गया !
दोनोँ ने
उस समय कि कट्टरवादी समाज से लड़ झगड़ के व्याह रचाया
कुछ काल तक उनका
दाम्पत्य जीवन सुखमय रहा
लेकिन 1836 साल मे रामचंद्र जी इन्हे और दुनिया को छोड़ गए ।
साधारण स्त्री होती तो इतने सारे विपत्तिओँ के आगे दाम तोड़ देती
लेकिन विचक्षण बुद्धि
संपन्न रासमणी खुद झुकी
न किसी को झुकने दिया !
बाल्यकाल गरीबी मे बिता था
इसलिये इन्हे गरीबोँ का दुःख दर्द का एहसास था
अतः धर्मपरायणा तेजस्वनी
गरीबोँ के उपकार व्रत मे दीक्षिता हो गई !
कुछ वर्षोँ मे देवी रासमणी माडे कोलकत्ता सहर मे इतनी प्रसिद्ध
हो गई कि
साधारण जनता उन्हे रानी माँ
पुकारने लगे ।
राजपरिवार कि न होकर भी
इनकी परोपकारिता दानशीलता
से प्रभावित हो
लोग
उनको रानी उपाधी
प्रदान किए थे !
परवर्त्तीकाल मे अनेकानेक लोगोँ को ख्रिस्तियन होते देख
रानी रासमणी माडे ने हिन्दु धर्म परम हित साधनार्थे
कई छोटे बड़े मंदिरो का निर्माण करवाया
जिसमे दक्षिणेश्वर काली मंदिर अन्यतम है ।
ध्यान रहे यह वही मंदिर है
जहाँ श्री रामकृष्ण परमहंस जी
पूजक होने के साथ साथ उद्योगी
बालकोँ को सनातन धर्म के विषय मे शिक्षा भी देते थे !
आगे चलकर इन्ही श्रीरामकृष्ण परमहंस जी के पाद पद्म मे ज्ञान आहरण कर
बिबेकानन्द विश्व प्रसिद्ध हुए !
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