जग वैरागी साधु संसारी लोगोँ को पागल लगते है ।
ऐसे ही कभी कहीँ एक साधु हुआ करते थे !
वो प्रायः मौन रहते
तब भी जब कोई उनके भेषभुषा को देखके व्यंग्य वाण चलाए
अथवा पागल समझते हुए पत्थर मार उन्हे क्षताक्त करे !
एक दिन वे साधु किसी गाँव मे
भिक्षान्न संग्रह
पूर्वक लौट रहे थे कि
उन्होने देखा कोई कुत्ता
उनके पिछे पिछे चला आ रहा है ।
उन महात्मा ने उस आवारा कुत्ते पर सवार हो साथ लिए एक वरगत के पैड के निचे भिक्षान्न भोजन करना शुरुकरदिया ।
दुपहरिआ मे
धुप से बचने के लिए वहाँ कुछ लोग आराम कर रहे थे
वो लोग इस नज़ारे को देख सहसा ठहाके लगाके हसने लगे....
अब साधु ठहरे मनमौजी राग द्वेष रहित
वे भी हँसने लगे
लोग हैरान !!!
अन्त मे साधु ने कहा
विष्ण्युपरि स्थितो विष्णुः
विष्णु खादति विष्णवे ।।
कथं हससि रे विष्णो ।
सर्वं विष्णुमयं जगत् ।।
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